achla Nagar

Romance

4.5  

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यादें

यादें

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दरवाजे पर दस्तखत हुई उसकी माँ ने उसे आवाज़ लगाई, "सीमा देखना कौन आया है"।यह उन दिनों की बात है जब दरवाजे पर घंटी नहीं होती थी मैं बड़बड़ाती हुई उठी कि सोनू (उसका छोटा भाई )तो बाहर आँगन में ही खेल रहा है वो नहीं खोल सकता क्या? दरवाज़ा खोला तो सामने डाकिया खड़ा था खत उसी के नाम का था,जैसे ही खोला तो वह शर्म से लाल हो गई अरे वाह! यह तो मेरे प्यारे मोहन का खत है तो वह अपने दुपट्टा में छुपा कर अपने कमरे में चली गई और कमरा अन्दर से बंद कर लिया।


 उसका दिल बल्लियों की तरह उछल रहा था वो पहले एक कुर्सी पर बैठ गई फिर उसने एक ठंडी साँस ली फिर उसने जब खत पढ़ा तो पढ़कर आत्मविभोर हो गई, उस लिफाफे मे से एक गुलाब का फूल उसकी आगोश में आकर गिरा और खत में नीचे लिखा था,"अरे मेरी प्रयांगनी यह फूल नहीं हैं यह मेरा दिल है जो तुमसे मिलने को आतुर हो रहा था इसीलिए मैने तुम्हारे पास भेज दिया है"। सीमा ने उसे आज भी अपने पास संभाल कर रखा है। 


आज पूरे चालीस साल बाद सीमा को 'गुलाब दिवस' पर मोहन की याद आ गई।वो झट से उठी और कुर्सी पर चढ़ कर अलमारी के उपर से अटैची उतारी जिसमें उसने आज भी वो गुलाब एक किताब में रखा हुआ था जब उसने उस गुलाब को देखा तो वह पुरानी मीठी यादों में खो गयी वह फूल बिल्कुल सूख गया था पर उसकी याद अभी भी ताज़ा थी मानो कि वो अभी कल की ही बात है फिर उसकी खुशी से आँखें नम हो गई, पर क्या करती लाचार थी अपनी ख़ुशी या ग़म किसी से नहीं बाँट सकती थी।


 प्यार तो मोहन से करती थी परन्तु अपने माता - पिता की ख़ुशी की खातिर राजेश से शादी कर के बरसो पहले अपने ससुराल आ गई थी। अब सीमा का भी अपना परिवार है उसके बच्चे भी अब बड़े हो गए है राजेश भी बहुत अच्छे हैं, उन्होंने कभी भी किसी चीज़ की कमी नही होने दी। वक्त कब इतना गुज़र गया पता ही नहीं चला। 


आज ना जाने कैसे फिर बेचैन हो गई जब राजेश ने आफ़िस से फोन करके बोला,"सीमा तुम तैयार रहना, आज शाम को हम बाहर चलेंगे"।उसने भी हाँ कह कर फोन रख,पर आज उसे अचानक दिल के किसी कोने से मोहन की याद आ गई, इतने ही फिर राजेश का फोन आ गया और बोला,"आधे घंटे तक घर पहुँच रहा हूँ तुम तैयार हो क्या"? सीमा बोली,"हाँजी मैं बिल्कुल तैयार हूँ"। सीमा ने फिर अपने आँसू पोछे और उस लिफाफे को एक बार फिर सीने से लगाया और बड़े प्यार से उसी अटैची में रख दिया और अपने अंदर के अंतरध्वंध को शांत कर के तैयार होने चली गई जैसे कुछ हुआ ही न हो और तैयार होते समय गाना गुनगुनाने लगी...........

 "सजना है मुझे सजना के लिए"............


 यही तो नारी शक्ति है जो अपने अंदर का ज्वालामुखी किसी को भी नहीं दिखाती, सब कुछ अपने अंदर समां लेती है। धन्य है एसी नारी जाती।


 समस्त नारी जाती को सलाम..............


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