Lokanath Rath

Tragedy

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Lokanath Rath

Tragedy

यादें.. अतीत की...

यादें.. अतीत की...

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रस्मीता ठाकुर एक नामी पत्रकार लंदन से हवाई जहाज मे बैठ गयी. उसे पहले दिल्ही जाना है और वहाँ से सीधे कानपुर जाना है. आज सुबह खबर मिली कि उसकी प्यारी दीदी, सबसे बड़ी दीदी रचना ठाकुर का निधन हो गया. ये खबर भी सारे भारतीय इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनल मे आ रहा था. पिछले हप्ते रचना ठाकुर की एक कार्टून को लेकर बहुत चर्चा हो रही थी. रस्मीता को विश्वास नहीं हो रहा है कि उसकी दीदी अब इस दुनिया मे नहीं रही. अपने आप को संभाल के वो बैठ गयी. आँखों से आंसु बहने लगे. आंसुओ को पोछते पोंछते उसने आँख बन्द कर ली. उसे वहाँ जल्दी पहुंचना है. उसको लग रहा था जैसे कुछ तो गड़ बड़ी हुई है.... जाकर शायद कुछ पता कर सकती...... सोचते सोचते वो अपनी जिन्दगी का कुछ यादें अतीत की मे खो गयी.....


रस्मीता ठाकुर आजकल एक बहुत बडे न्यूज़ चैनल की जानी मानी पत्रकार है. अभी वो लंदन मे रहती है. रस्मीता की परिवार मे वो लोग तीन बहने हैं. उसकी रचना दीदी सबसे बड़ी है और लगभग चालीस की थी. उनसे छोटी रंजना, जो अभी करीब पैंतीस साल की है और उनके पति और बच्चों के साथ मुंबई मे रहती है. और घर मे सबसे छोटी है रस्मीता ठाकुर, जिसकी उम्र तीस साल है. बचपन मे तीनो बहुत ख़ुश थे. उनकी पिता जाने माने लेखक अविनाश ठाकुर. उनका घर कानपुर में है. उनकी पढ़ाई सबसे अच्छी स्कुल मे हुई है. रस्मीता को याद है वो डरावनी रात, जब वो सिर्फ दस साल की थी. उस रात उनके पिता माता की एक दुर्घटना मे हॉस्पिटल मे मौत हो गयी थी और बड़ी दीदी रचना उनको ले के घर आयी थी. रस्मीता को तब कुछ समझ मे नहीं आरहा था, की ये मौत कैसे हो गई और अब कैसे और किससे वो अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए जिद करेंगी. तब उसकी बड़ी दीदी उसको और रंजना दीदी को उनकी बाहो मे ले ली थी. लगा जैसे उसमे प्यार और एक विश्वास भरा भरोसे की संकल्प वो ले रही थी. अभी भी रस्मीता को याद है तीनो बहनो ने मिलके पिता माता के किर्या कर्म किया. तब रचना कालेज मे पढ़ रही थी. रंजना दसवीं मे और खुद रस्मीता चौथी कक्षा मे थी.

जब पिता माता की देहांत हुआ घर की सब ज़िम्मेदारी रचना ने अपने कन्धे पर ले ली थी. होनी पढ़ाई को छोड़ दी और घरपे दसवीं कक्षा के बच्चों को पढ़ाने लगी. इस टूशन से रचना घर की खर्चा के साथ साथ अपनी दोनों छोटी बहेनो की पढ़ाई को भी देखने लगी. रचना एक अच्छी कलाकार थी. उसको स्कूल मे पेंटिंग के लिए बहुत पुरस्कार भी मिल चुके. रचना अपनी पिता अबिनाश से कैच कार्टून बनाना सीखी थी. कभी कभी तो वो अपनी पिता की लेख को कार्टून के जरिये दिखाती थी. बचपन की ये आदत अभी भी उससे याद थी. वो समय मिलते ही कुछ कार्टून बना लेती थी. समय के साथ साथ सब कुछ बदलने लगा. रंजना कालेज जाने लगी, रश्मिता की पढ़ाई अच्छी चलने लगी. देखते देखते रंजना इतिहास मे स्नातकोत्तर परीक्षा पास कर ली. रस्मीता दसवीं की परीक्षा की तैयारी मे थी. तब रंजना को मुंबई मे एक कॉलेज मे अध्यापिका की नौकरी मिल गयी. इधर रचना की कार्टून अब अख़बार मे छपने लगी. उसके कार्टून अब रचना को धीरे धीरे एक सामाजिक कार्यकर्ता का रूप देने लगे. समाज मे रचना कासम्मान और पहचान होने लगी. उसके साथ साथ खुद की कमाई भी अच्छी होने लगी.

जब रस्मीता कॉलेज मे इंटर मे थी तब उसकी रंजना दीदी की शादी मुंबई की एक अध्यापक रमेश चंद्र से हो गई. अब कानपुर मे सिर्फ रचना और रस्मीता. रचना ने रस्मीता को कोई चीज की कमी कभी महसूस नहीं होने दी. रचना ने माँ, बाप, बहेन, दोस्त सबका प्यार रश्मिता को दी. रस्मीता एक पत्रकार बनना चाहती थी. रचना उसके लिए उससे प्रेरित करते रही. जब रस्मीता की ग्रेजुएशन ख़तम हुआ, उससे आगे पढ़ाने के लिए रचना लंदन भेज दी. रचना शादी नहीं की थी. वो रंजना और रस्मीता को अपनी बच्चे मानकर खुद की जिन्देगी मे बहुत कुर्बानी दे चुकी थी. कार्टून के जरिये समाज मे बहुत जागरूता रचना सृस्टि करने की कोशिश कर रही थी. अन्याय, धोखा, रिस्वतखोर, इन सबके खिलाफ अपनी कार्टून के जरिये बहुत आवाज उठाने लगी थी. रचना सिर्फ कानपुर नहीं पूरे देश मे बहुत नाम कमा चुकी थी. देश के लोग रचना की बहुत इज्जत करते थे. जब रस्मीता साल मे एकबार अपनी प्यारी बड़ी दीदी से मिलने आती थी तो उसकी दीदी की काम से बहुत प्रभावित हुआ करती थी. वो कभी कभी रात को रचना से बहुत सवाल करती थी अपनी जानकारी के लिए. दोनों एकसाथ मिलके रंजना के पास जाते थे. रंजना को तब तक एक बेटा हो चुका था. रचना ने उसका नाम बिक्रम रखा था. रस्मीता अपनी पढ़ाई ख़तम करके लंदन मे एक अच्छी बड़ी मीडिया मे पत्रकारिता करने लगी. रस्मीता को याद है, जिस दिन उसे नौकरी मिली थी उस दिन उसकी बड़ी दीदी रचना बहुत ख़ुश हुई और खुशी से रोने लगी थी. वो रोते रोते बोल रही थी, "अब मेरे दोनों बच्चे अपने पैर पे खड़े हो गये. दोनों बड़े हो गये. हे ईश्वर दोनों को आशीर्वाद देना, सदा उनके साथ देना ".

रचना ने बहुत लोगो की मदद की है. उसने कभी किसी का नुकसान नहीं किया. पर समाज के कुछ लोग नाखुश थे. अचानक उसकी रचना दीदी की मौत रस्मीता को एक बड़ा सदमा दिया है . अब अपनी आँखों के आंसू को रोक दी रस्मीता. वो अपनी यही "यादे अतीत के " सहारे अपने आप को एक बचन दिया कि वो उसकी दीदी की मौत को ऐसे भूल जाने नहीं देगी. उसकी मन मे उठ रही बहुत सवालों का उसको जवाब ढूंढ़ना है...... अपनी बड़ी दीदी की अधूरे सपनो को पूरा करना है.....उसकी सारे यादें.... अतीत की.... बार बार उसको जैसे कह रही थीं वो है और उसका साथ देगी!


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