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Gita Parihar

Abstract

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Gita Parihar

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वसुधैव कुटुंबकम्

वसुधैव कुटुंबकम्

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'वसुधैव कुटुम्बकम्'  विचार की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है।इसके दो शब्द एक,' वसुधा' जिसका अर्थ है-पृथ्वी और दूसरा 'कुटुम्ब' जिसका अर्थ है-परिवार, दोनों मिलकर बनता है,‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जिसका अर्थ हुआ ,सम्पूर्ण विश्व एक परिवार है। इस धरती पर रहने वाले सभी मनुष्य और जीव-जन्तु एक ही परिवार का हिस्सा हैं।आजके परिपेक्ष्य में यह अवधारणा बहुत प्रासंगिक है।

मूलत: वसुधैव कुटुम्बकम की सोच भारतवर्ष के प्राचीन ऋषिमुनियों की थी, जिसका उद्देश्य था –सब मिलजुल कर रहें, सब का सह-अस्तित्व हो।

 सभी मनुष्य समान हैं इसलिए सभी का कर्तव्य है कि वे परस्पर एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ें।उनमें वैचारिक मतभेद हो सकते हैं किंतु वे एक दूसरे के विकास में बाधा न बनें। यही रूप जब वैश्विक स्तर पर निर्मित किया जाए ,तो वह वसुधैव कुटुंबकम कहलाता है।

भारत की राष्ट्रीयता का आधार ही वसुधैव कुटुंबकम है।भारत समूचे विश्व को एक परिवार के रूप में देखता है। भारत की पहचान एक सहिष्णुतावादी राष्ट के रूप में स्थापित है।अनेकता में एकता हमारी राष्ट्रीय पहचान है।भारत के मूल में उदारता है,तभी

 हिंदू, बौद्ध, मुस्लिम,सिख,जैन और ईसाई परस्पर सद्भावना के साथ भारत में रहते हैं।

‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओतप्रोत होने के कारण ही, कालान्तर में भारत ने हर जाति और हर धर्म के लोगो को अपनाया, लेकिन औद्योगीकरण और उपनिवेशवाद ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का ह्रास कर एक नई अवधारणा राष्ट्रवाद’ को जन्म दिया, जो राष्ट्र तक सीमित थी।

आज भी दुनिया में अधिकतर राष्ट्रवाद हावी है। इसमें व्यक्ति केवल अपने राष्ट्र के बारे में सोचता है, सम्पूर्ण मानवता के बारे में नहीं।आज मनुष्य धर्मजाति, भाषा, रंग,संस्कृति आदि के नाम पर इतना बँट चुका है कि वह सभी के शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व के विचार को ही भूल चुका है। जगह-जगह पर हो रही हिंसा, युद्ध और वैमनस्य इसका प्रमाण है।

आज मनुष्य की संवेदनाएँ भी कम हो गई हैं। आज व्यक्ति प्राथमिकता के क्रम में परिवार को पहले,फिर पड़ोस,शहर,देश या राष्ट्र और अंत में संसार को रखता है।‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एक अवधारणा ही बनकर रह गई है।

आज विश्व अलग-अलग समूहों में बँटा हुआ है, जो अपने-अपने अधिकारों और उद्देश्यों की पूर्ति में लगे हैं। सबका उद्देश्य विकास करना है।सबका विकास तभी संभव है जब सभी मतभेद भुलाकर वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति को अपनायें। 

 कुछ राष्ट्र इस बात को समझते हुए परस्पर सहयोग बढ़ाने लगे हैं , परन्तु अभी इस दिशा में बहुत काम करना बाकी है जिस दिन संसार के सभी लोग अपने सारे विभेद भुलाकर एक परिवार की तरह आचरण करने लगेंगे, उसी दिन सच्ची मानवता का उदय होगा और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्' सही मायने में चरितार्थ होगा।


  



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