वसंत
वसंत
कला, ”देखो मोटर चला दो पानी आ गया होगा...।”
“आज चाय नहीं मिलेगी क्या?”
विमल जी, प्रतिदिन पत्नी को यह कह कर उठाते।
कला, झल्लाते हुए कहती। अरे! ”कभी ख़ुद भी तो कुछ कर लिया करो!”
सुबह की शुरुआत नोक झोंक से ही होती।
पूरा घर, नाते -रिश्तेदार सभी कला के इर्द-गिर्द और कहे का अनुसरण आँख मूँद कर करते...।
घर में उल्लास का वातावरण था। कोई मेहंदी लगा रहा था तो कोई पार्लर जाने की तैयारी...शादी की पचासवीं वर्षगाँठ का उत्सव मनाने के लिए कला ने सभी रिश्तेदारों को बुला लिया था। आज वसंत पंचमी के दिन ही पाणिग्रहण हुआ था हमारा। वासंती साड़ी में कला को देखा तो सहसा मन वासंती हो गया” इस उम्र में भी सुंदर लग रही हो” कहने पर लजा गई थी कला।
कला, उठो ! ”आज कितना सो रही हो?” जाओ देखो तो विहान क्यों रो रहा है? दो साल का मेरा पोता जो ऑस्ट्रेलिया से चार साल बाद बेटा बहू के साथ कल ही आया था। मगर कला तो अपनी कला दिखा कर पचास वसंत का साथ निभा, सबको बुला कर ख़ुद अंतिम सफ़र पर निकल गई थी...।
