वक़्त
वक़्त
यूँ तो एक घरेलू महिला के पास सिर्फ घर का काम करने के अलावा और कोई काम नहीं रहता परंतु अगर वो अपनी पर आ जाए तो वक़्त भी उसके आगे हारने लगता है।
मैं घरेलू बनकर जीना नहीं चाहती थी और एक लेखिका के रुप में अपनी पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं था।अक्सर मैं लिखने में इतना व्यस्त हो जाती थी कि सब भूल जाती थी और बहुत सा काम अधूरा रह जाता था , इसी वजह से रोज़ अपने पति की डांट खानी पड़ती थी। वक़्त रोज़ भागता जाता था और मैं उसे पकड़ती रह जाती थी।
धीरे - धीरे मैने वक़्त को हराना सीख लिया। अब मैं हर काम का एक समय निर्धारित करने लगी। सिर्फ उसी निश्चित समय में उस काम को करती और बाकी समय आराम। कुछ समय बाद मैने ये महसूस किया कि वक़्त मुझसे हार गया और मैं जीत गई।
उद्देश्य - निर्धारित समय में किया गया काम वक़्त को भी हरा देता है।