भूख
भूख
माँ की आवाज़ सुनते ही पिंकी दौड़कर अंदर जाती थी और खाने की थाली पर बुरी तरह टूट पड़ती थी। ये पन्द्रह सोलह साल की उम्र होती ही ऐसी है - एकदम मस्त, बस खेलो - कूदो, पढ़ो और खाना खाओ। पिंकी को घर में शाम को सबसे पहले खाना खाने की आदत थी, यहाँ सात बजे नहीं कि पिंकी की थाली तैयार।
समय बदला और समय के साथ बहुत कुछ और भी। सयानी होते ही पिंकी का विवाह हो गया। ससुराल क्या होता है .... उसने अपने एक अलग अनुभव से ही सीखा।यहाँ सात बजते मगर खाना उसे नहीं मिलता ... रिवाज ही कुछ अलग था। पहले घर के मर्द खाना खायेंगे और फिर उसके बाद सास को दो, फिर बरतन साफ करो और आखिर में जाकर खुद खाना खाओ। इक्कीस साल की उम्र में भला इतना सब्र कहाँ किसी से होता है। कुछ दिन तो पिंकी ने भी यही सब किया मगर एक दिन उससे भूख बर्दाश्त नहीं हुई और वो अपने ससुर को खाना देने से पहले खुद खा गई। बस फिर इतनी खरी - खोटी उसे सुनने को मिली कि बेचारी ने अपनी भूख को मारना शुरु कर दिया।
धीरे - धीरे समय का पहिया आगे बढ़ा। पिंकी के भी दो बच्चे हुए, अब पहले पति और बच्चों को खिलाओ और फिर बाद में खुद खाओ। सात बजे से रात के खाने का समय भी सरक कर ग्यारह बजे का हो गया। पति को शराब पीने की आदत थी, पहले वो अपने गम हलके करते और फिर खाना खाते। इसी परिवार में पले बड़े तो संस्कार भी वही सब मिले। अगर सीधे शब्दों में पहले खाना खाने पर आपत्ति नहीं उठा पाते तो अपने शब्दों को टेड़ा करके किसी ना किसी रुप में कह ही देते थे। पिंकी को भी अब तक भूखा रहने की आदत हो ही गई थी।कुछ सालों बाद पता चला कि पिंकी को ज्यादा भूखा रहने की वजह से मधुमेह जैसी बीमारी ने घेर लिया है। अब पिंकी खाना खाने से पहले दवाई भी खाती और चिकित्सक के कहने के अनुसार खाना भी बहुत थोड़ा।
अब जब भी पिंकी अपने मायके जाती है तो माँ पहले की तरह ही सात बजते ही पूछती है, " खाना खायेगी ?"और पिंकी अपने अंदर कुछ गटकते हुए धीरे से कहती है, " माँ मैं इतनी जल्दी खाना नहीं खाती .... सच पूछो तो अब मुझे भूख ही नहीं लगती। अगर ये दवाई नहीं खानी होती तो मैंने कब का खाना खाना छोड़ दिया होता।"