गोद
गोद
माँ ने कातर नजरों से अपने बेटे की ओर देखा , आज उसने कई साल बाद माँ को अपनी गोद में उठाया था। इससे पहले कि माँ के जख्म फटते ,उसने तुरंत ही उन्हे गाड़ी में ठूसा और कचहरी की ओर बढ़ चला। माँ सारे रास्ते पीड़ा से करहाती रही। कचहरी पहुँचते ही माँ को ये बताया गया कि उन्हे जज के सामने क्या कहना है |
पूरे दो घंटे के इंतजार के बाद माँ ने जज साहब के सामने पेश होते ही कहा , " हुजूर , मैँ अपने पूरे होशो - हवास में अपनी ये जमीन अपने बड़े बेटे के नाम कर रही हूँ। इतनी ही देर में माँ के रुके हुए जख्म अदालत में ही फट गए। चारों ओर खून की धारा बहने लगी। बेटे ने वहीं से एक कपड़ा उठाकर माँ के ज़ख्मों पर बाँधा और गाड़ी में वापस ठूस घर की ओर चल दिया। रास्ते में बेटा बहुत खुश था कि ज़मीन अब उसके नाम हो गई , और माँ अपने बेटे की गोद में समा कर फूली नहीं समा रही थी , शायद उसे अब अपने खुले हुए ज़ख्मों से रिसते खून का दर्द भी अब बर्दाश्त हो रहा था।
घर पहुँचते ही बेटे ने सबसे पहले रास्ते से खरीदा हुआ मिठाई का डब्बा अपनी पत्नी को थमाया और माँ को जैसे ही गोद में भरने लगा तो देखा कि माँ तो कब की उसे छोड़कर दूसरी दुनिया में जा चुकी थी ||