क्या एक साथ सोने से ?
बन जाता है दिल का रिश्ता ?
किसने कहा ?
उसी ने जो सोया था मेरे साथ |
वो कहता कि हम साथ सोये ,
और एक साथ जागे भी ....
भागे तो भी एक साथ ,
इसलिये हमारा है दिल का रिश्ता |
मगर मैं नहीं मानती ,
एक साथ सोने से .....
कभी नहीं बनता कोई भी ,
दिल का रिश्ता |
साथ सोना कभी कभी ,
एक शारीरिक भूख होती है ,
तो कभी हालातों की शायद ,
कोई मजबूरी होती है |
दिल का रिश्ता कभी भी ,
एक साथ सोने से नहीं बनता ,
ये बनता तब .....
जब कोई दूसरे में पूर्ण रुप से गलता |
मगर हम तो गले ही नहीं ...
ना आधे ना पूरे बस रहे अधूरे ,
फिर बताओ भला कि कैसे बना ?
हमारा दिल का रिश्ता ?
मगर कभी कभी सच लगती है ,
उसकी कही हर एक बात ,
सच में एक साथ सोने से ,
बन जाता है दिल का रिश्ता |
हम झुठलाते रहते हैं ,
मगर दिल अंदर ही अंदर ,
दुखता है तड़पता है और ,
बन जाता है दिल का रिश्ता |
एक ऐसा रिश्ता जो टूटता नहीं ,
जिसमे आग, हवा , पानी सब होता है ,
वो रिश्ता बड़ा अजीब होता है ,
तभी तो होता है दिल का रिश्ता |
सारी रात आप अकेले सो नहीं पाते ,
उन साथ बिताये लम्हों की ,
फिर से एक बार मिल जाने की ,
उम्मीद को अपने दिल में सजाते |
कभी तन्हाई में खुद से मुस्कुराते ,
तो कभी गुस्से से पागल हो झुँझलाते ,
देखो इसी को तो कहते हैं .....
दिल का रिश्ता |
ये बना तभी जब हम साथ सोये ,
एक दूसरे के सांसों को खुद में पिरोये ,
कितना खूबसूरत एहसास था सच वो ,
जिसमे बन गया हमारा दिल का रिश्ता ||