मर्यादा और नैतिकता का सच
मर्यादा और नैतिकता का सच


"शादी करोगी मुझसे?"
उसके ये शब्द सुनकर मैं हैरानी से उसकी ओर देखने लगी। कुछ पल के मौन के बाद मैंने गंभीरता से कहा,
"क्या आप जानते हैं कि आप क्या कह रहे हैं? पहली बात, यह उम्र मेरी शादी की नहीं बल्कि मेरे बच्चों की शादी की है। दूसरी बात, मेरे पति जीवित हैं और मैं एक हिंदू स्त्री हूँ। हमारे धर्म और समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है, जिसमें निष्ठा और मर्यादा सबसे महत्वपूर्ण हैं। व्याभिचार हमारे संस्कारों के विरुद्ध है।"
वह थोड़ी देर सोचकर बोला, "लेकिन मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"
मैं मुस्कुराई और हल्के-फुल्के अंदाज में जवाब दिया, "अगर हमारी तकदीर में साथ लिखा होता, तो हम इसी जन्म में मिलते। अब अगर भाग्य ने हमें अलग राहों पर रखा है, तो इसे स्वीकारना ही सही होगा। अगले जन्म की बातें अगले जन्म में देखेंगे।"
वह कुछ क्षण के लिए खामोश रहा, फिर बोला, "तो कम से कम मिलती तो रहोगी ना मुझसे?"
मैंने शांत स्वर में कहा, "मैं ज्यादा बाहर नहीं जाती, इसलिए मिलना संभव नहीं होगा। और वैसे भी, कुछ रिश्ते दूर रहकर ही मर्यादा में रह सकते हैं।"
वह चुप हो गया, और मैं भी। शायद एक रिश्ता बनने से पहले ही खत्म हो गया, और मैं अपने घर लौट आई।
सीख जो हमें नहीं भूलनी चाहिए
इस घटना ने मुझे एहसास दिलाया कि उम्र चाहे कोई भी हो, नैतिकता और मर्यादा हमेशा सबसे ऊपर होनी चाहिए। कई बार लोग अपने आकर्षण या भावनाओं में बहकर सही-गलत का अंतर भूल जाते हैं, लेकिन यह समझना जरूरी है कि किसी की ज़िंदगी में ज़बरदस्ती दाखिल होना या किसी के रिश्ते को तोड़ने की कोशिश करना केवल स्वार्थ ही है।
सच्चा प्रेम केवल पाने का नाम नहीं, बल्कि सम्मान और त्याग का दूसरा नाम है। अगर कोई सच में किसी की परवाह करता है, तो वह उसके सुख और सम्मान का भी ख्याल रखेगा, न कि उसे समाज और रिश्तों के बंधन से तोड़ने की कोशिश करेगा।
हमें अपने संस्कारों और नैतिक मूल्यों को समझते हुए सही निर्णय लेने चाहिए, क्योंकि जो गलत है, वह गलत ही रहेगा – चाहे कोई भी तर्क दिया जाए।