Praveen Gola

Tragedy

4.5  

Praveen Gola

Tragedy

माँ का वजूद

माँ का वजूद

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"मम्मी आप मेरे साथ मत चलो। आप बात को समझ क्यूँ नहीं रही हो .... हमारे कॉलेज के डायरेक्टर एक आदमी है , और वैसे भी मैं अब कोई बच्चा नहीं रहा .... मास्टर्स कर रहा हूँ , मास्टर्स। " गुस्से में भरे हुए तोषित ने जवाब दिया। मैं अवाक सी खड़ी उसके हर शब्द का अपने ज़हन में आकलन करती रही।

अगले दिन उसके पापा कॉलेज अकेले ही चले गए। मैं घर में बैठी बस यही सोचती रही कि आजकल कॉलेज के डायरेक्टर भी कितने चरित्रहीन होते जा रहे हैं कि बड़े बच्चों को अपनी मम्मी को साथ ले जाते हुए भी डर लगता है।

शाम को प्रदीप ने मुझे आवाज दी और सख्त आवाज़ में पूछा ," तुम कब तक अपने लड़के की गलतियों पर पर्दा डालती रहोगी ? तुम्हे पता भी है कि डायरेक्टर साहब कितने भले आदमी हैं , उन्होने बताया कि तुम दो बार उनसे मिल चुकी हो और फिर भी मुझसे झूठ कहती रहीं। "

" मगर मैं .... मगर मैं .... मैं तो आज तक कभी इसके कॉलेज गई भी नहीं। " मैने जवाब दिया।

प्रदीप गुस्से से तोषित को आवाज़ मारकर बोले ," ये क्या कहती है .... अब बताओ ज़रा सच क्या है ?"

तोषित बोला , " पापा मुझे माफ कर दो। मैं आप लोगों से बहुत डर गया था , सच ना पता चले इसलिये मैं अपने दोस्त की मम्मी को अपनी मम्मी बनाकर कॉलेज ले गया। "

मेरे पैरों के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई। ये सब फिल्मों में देखते थे मगर असल ज़िन्दगी में भी ऐसा होगा ये कभी नहीं सोचा था। आज एक बेटे ने जीते जी अपनी माँ के वजूद को मिटा दिया था।



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