वो सतरंगी पल
वो सतरंगी पल
नींद में भी आराम नहीं, जागना भी मुश्किल, क्या करू इस तड़प का तु ही बता दे ऐ दिल। ’ सजनी हर बार खुद से यही सवाल करती और जवाब पाने के वजाए बेकरार हो जाती। उसके लिए तो सारी इच्छाएं और सारी कामनाएं पिया मिलन और जल्दी से मिलन की आरजू तक सीमट कर रह गई थी। पलकों के अन्दर की दो आँखें, कभी खुशी में तो कभी गम में नम हो जाती।
मिलन तो दोनों का रोज ही हो जाया करता था, मगर जुदायी की छोटी सी घड़ी भी बहूत लम्बी प्रतीत होती।
सजनी और साजन, दोनों के ही अपने अपने नाम थे मगर दोनों को एक दुसरे को सजनी और साजन के नाम से ही पुकारा जाना पसन्द था।
बसन्त का सुहाना मौसम, हरी-भरी मखमली मुलायम घास में, अपने साजन की गोद में सिर रखकर सजनी रसानुभव कर रही थी कि तभी सजनी के दिल में एक सवाल पनपा और उसने पुछा ’’ अच्छा मेरे साजन ये तो बताओ कि मैं हर रोज तो तुम्हारे ही धर से ही गुजरती हूँ, तुम्हारा ध्यान भी मुझ पर पड़ता है, मगर तुम्हारी आँखें अजनबी सी क्यों प्रतीत होती है ? ’’
अब साजन, सजनी की गोद में सिर रखकर ठंडी आहें भरते हुए बोला ’’ ये कैसी बात कर रही हो सजनी, तुम क्या चाहती हो, कि अपने घर वालों को समय से पहले ही हमारे बारे में बता दूँ। देखती नहीं कि मेरी मम्मी भी वहीं खड़ी हमको देखते रहती है। ’’ अब सजनी, साजन की बाँहों में थी। अब सजनी ने कहा ’’ बहानेबाज कहीं के, अच्छा ये तो बताओ कि यहाँ से जाने के बाद कितनी बार, अपनी सजनी को याद करते हो ? ’’
साजन इस सवाल से थोड़ा सकपका गया और उंगलियां गिनते हुए बोला ’’ चार-पाँच बार तो याद कर ही लिया करता हूँ। ’’ साजन के बाँहों की पकड़-जकड़ इतनी बढ़ी कि दोनों के सीने के बीच फंसी ठंडी हवा गर्म हो गई। सजनी खुद को बाँहों के जकड़न से ढीली करके आश्चर्य से बोली ’’ तीन-चार बार ? मतलबी कहीं के। मैं तो तुम्हें पन्द्रह-बीस बार याद कर लिया करती हूँ। ’’ सजनी की आँखों से बनावटी गुस्सा स्पष्ट प्रतीत हो रहा था, मगर गुलाबी नरम होंठों से अब भी फूल झड़ रहे थे। साजन ने सजनी की आँखों में आँखें डालकर कहा ’’ गीनती तो मैंने तुम्हारे सवाल के जवाब में की थी, मगर सच तो यह है कि तीन-चार बार तो क्या बल्कि हर पल दिलो दिमाग पे तुम्हारा ही ख्याल रहता है। ’’
सजनी ने भी कहा ’’ अपना भी हाल तुम्हारे जैसा है साजन, बस याद तुम्हें करते हैं, और कोई काम नहीं। ’’ साजन और सजनी दोनों की आँखें एक साथ नम हो आई।
विस्तर पर करवटें बदलने के बाद सजनी को नींद नहीं आ रही है। वो कभी तकिया को सीने से दबा रही है तो कभी जांघों के बीच में रखकर दबा रही है। ये काम पहले भी इतनी बार किया गया है कि तकिया का कपड़ा जगह-जगह से फट कर वहाँ से रूई झांकने लगा है। सजनी नींदिया रानी को बुलाने का प्रयास कर रही है, दिलों दिमाग का क्या है, भटकते-भटकते कहीं भी चला जाता है क्योंकि उसके दिलो दिमाग को पता है कि मेरा साजन तीन-चार दिन तक मुझसे नहीं मिल सकेगा। ख्यालों में खोते-खोते सजनी को एक बात याद आ गई और वो उस यादों में समाती चली गई।
’’ सुनो न मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। ’’ विवेक की इस बात के साथ, मेरे कान सुनने के लिए खड़े हो गए थे और मेरी समझदार सहेलियां अपनी-अपनी साईकिल आगे बढ़ा ली थी। साईकिल पर मैं और विवेक समानान्तर चल रहे थे। उसने फिर कहा ’’ वंदना, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। ’’ मैंने भी पुछने के इशारे से अपनी भौंहें उठायी। उसको असहज होता देख मैंने उसको रूक कर अपनी बात कहने का इशारा भी किया। विवेक ने कहा ’’ आई, आई, आई। ’’
मैंने भी कहा ’’ हाँ हाँ आगे बोलो न। ’’ समझ तो रही थी, मगर उसकी जुबान से सुनना चाहती थी। जी में आया कि उसको रिजेक्ट कर दुँ, मगर विस्तर पर उसकी लड़खड़ाती आवाज परेशान करने लगी। सुबह उसके दिल की बात जाकर खुद ही करनी पड़ी ।
दो दिलों के मिलन का यह पहला दिन, कान सिर्फ मीठे बोल सुनना चाह रहे हैं, कुछ भी बोलने की हिम्मत या चाहत नहीं हो रही है। आँखें जी भरकर उनको देखना चाह रही है।
अचानक से वो मेरे सामने आए। उनके हाथ के स्पर्श से ही मैं सातवें आसमान में चली गई।
सुबह हो जाने पर भी वंदना आँखें नहीं खोल रही है, खुद से कह रही है ’’ आँखों से हो न जाए ओझल, वो सतरंगी पल।

