Ruchi Singh

Abstract

4.5  

Ruchi Singh

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वो रात

वो रात

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"बेटा महक कहां खोई हुई हो, चलो खाना खा लो।"

"हां मम्मी जी आती हूं।" आज उसकी सासू मां ने उसकी पसंद का खाना बनाया है पर महक बेमन से थोड़ा सा खाना खाती हैं। 

"मम्मी जी खाना नहीं खाया जा रहा।"

"अरे बेटा थोड़ा और खा लो"

" नहीं मम्मी जी प्लीज"

" ठीक है जितना खाना खाना है, खाकर जाओ, अपने कमरे में आराम कर लो।"

 सुरेश जी व राधा जी का एक ही बेटा आलोक और बहू महक है। जो उनके साथ उनके पुश्तैनी मकान में रहते हैं। उनका एक मध्यम वर्गीय परिवार है। सुरेश जी और आलोक की एक छोटी सी दुकान है। उनके घर में ज्यादा आमदनी नहीं है। पर सब मिलकर बहुत खुश रहते हैं। महक एक बहुत ही प्यारी, समझदार, कामकाजी, सुंदर बहू है। उसकी वजह से घर में सब लोग बहुत खुश रहते हैं और घर में बहुत रौनक रहती है। महक की शादी को 5 साल हो गए। पर अभी तक कोई बच्चा नहीं है। हफ्ते भर पहले ही राधा जी ने उसे डॉक्टर को दिखाने को कहा था। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कराए थे उसकी रिपोर्ट आ गई जिसमें पता चला कि महक को कुछ ऐसी इंटरनल प्रॉब्लम है जिससे वह कभी मां नहीं बन सकती। अब महक इसी बात को लेकर कल से बहुत ही दुखी है। 

दिन की बातों के बाद, राधा जी को महक की चिंता होने लगी थी। शाम को राधा जी एक बार फिर महक के हालचाल जानने, कमरे में चाय लेकर जाती हैं "बेटा, सो रही हो क्या" 

"नहीं मम्मी जी।"

" चलो चाय पी लो अरे बेटा तू इतना उदास क्यों हो? 

ना हो बच्चा तो ना हो।" महक का उदास चेहरा देख कुछ सोचते हुए राधा जी बोलती है "वैसे मैंने टीवी में देखा है कि कुछ आई. वी.एफ. होता है, सुना है बहुत महंगा पड़ता है और तकलीफ भी होती है। तू वही करा ले।" महक को मम्मी जी की बात पर कुछ तसल्ली सी होती है। "कल ही तू आलोक के साथ डॉक्टर के यहां जाके उसका पता कर ।"

"जी मम्मी जी" 

अगले दिन महक आलोक के साथ डॉक्टर के यहां जाती है। डॉक्टर ने बताया," इलाज में ₹3,00,000 लगेंगे और हर हफ्ते आकर आपको जब तक कंसीव नहीं होता है, इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे।.... और हां... सक्सेस का चांस भी 50% ही रहता है।" आलोक और महक ने एक दूसरे को देखा और फिर हिम्मत करके इस के लिए तैयार हो गए। अगले दिन से प्रोसेस शुरू हो गया। 6 महीने तक ट्रीटमेंट चलता रहा पर सफलता नहीं मिली। महक का शरीर धीरे-धीरे खोखला होता जा रहा था। वह हिम्मत भी हार रही थी। महक को उम्मीद की आखिरी किरण भी खत्म होते दिखाई दे रही थी। वो फिर से बेहद उदास रहने लगी। उसका ट्रीटमेंट सक्सेसफुल नहीं रहा। 

डॉक्टर ने कुछ महीने लेकर फिर से कोशिश की पर फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी। 

 तब एक दिन राधा जी घर के बोझिल माहौल को संभालते हुए कहती हैं, "बच्चे ना सही कोई बात नहीं। मेरे लिए तो तुम लोग ही सब कुछ हो। महक तुम हमेशा खुश रहा करो और मुझे कुछ नहीं चाहिए। तुम उदास बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती।" 

अगले दिन आलोक से राधा जी "आलोक आज जाकर बहू को बाजार घुमा लाओ। "

"नहीं मम्मी जी मेरा जाने का बिल्कुल मन नहीं है। "

"अरे बेटा बाहर जाओगी तो मन बहलेगा और कब तक तुम ऐसे उदास रहोगी। आलोक तू ले जाना। सुना है पास में कोई मॉल खुला है.... नही कुछ तो मूवी देख कर आ जाना।" 

आलोक" ठीक है मां"

 महक अपने को संभालने की कोशिश करते हुए आलोक के साथ मॉल घूमने जाती है। रात को लौटते समय देर हो जाती है। रास्ते में लौटते समय उसको प्यास लगती है तब आलोक गाड़ी को सड़क के किनारे रोककर पानी की बोतल लेने जाता है। तभी सड़क पर पास से ही एक बच्ची की जोर जोर से रोने की आवाज आती है। महक का ध्यान भग्न होता है। वो आवाज की तरफ बढ़ती है, देखती है एक मासूम छोटी लगभग साल भर की बच्ची रोए जा रही है और आसपास कोई भी नहीं है। आलोक भी वहाँ पहुँच जाता है। सड़क सुनसान हो चुकी थी। कोई ज्यादा आने जाने वाले लोग नहीं थे। वह बच्ची अंधेरे मे महक को अपनी मां समझ, मम्मा- मम्मा कह के सुबकते हुए महक का हाथ पकड़ लेती है। महक ने ममता वश उस बच्चे को गोदी में उठा लिया। आलोक बोलता है चलो पुलिस स्टेशन में इसको दे आते हैं। वह तहकीकात कर लेंगे और यह जिसकी बच्ची है और उनको सौंप देंगे। महक के मन मे न जाने क्यो उस बच्ची के लिये एक असीम करूणा जागृत हो चुकी थी। महक उस बच्ची को अपने सीने से चिपकाए गाड़ी में बैठ गई और आलोक ने पुलिस स्टेशन की तरफ गाड़ी मोड़ ली। रोते सुबकते बच्ची महक के आँचल मे दुबक कर सो गई। 

महक की ममता उस मासूम भोले चेहरे को देखकर व सीने में चिपकी बच्ची से तृप्त होने लगी। महक बहुत ही सुखद अनुभूति महसूस कर रही थी। तभी गाड़ी रुक गई और पुलिस स्टेशन आ गया। रात के 11:00 बज चुके थे। पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट तो बड़ी मुश्किल से लिखी पर उन्होंने बोला, "अगर हो सके तो इस बच्चे को आप अपने साथ एक दिन के लिये रख लें। अभी तो कोई देखभाल के लिए नहीं है। कल तक हम पता कर लेंगे तब तक आप इस की सहायता करें।" 

आलोक हिचकिचाते हुए बोला "पर.... हम" 

"हां ....प्लीज। यदि .... आपसे ये ना हो पा रहा, तो इसको छोड़ जाइये।"

 पर महक से उस मासूम को छोड़ा नहीं गया। उसने बोला, "ठीक है आप उसके पेरेंट्स का पता कीजिए। तब तक इसको मैं अपने साथ रखूंगी।"

 महक बच्ची के घर ले आती हैं। घर मे आकर महक ने बच्ची को अपने पास ही सुलाया। उसको रात में टाइम- टाइम पर दूध पिलाया। सुबह राधा जी ने देखा व पूछती हैं, "यह कौन है?" आलोक सारी बात बताता है।

अब महक बच्ची के साथ दिन भर बिजी मगर बहुत खुश थी। 3 दिन बीत गए। पुलिस स्टेशन से कोई भी कॉल नहीं आया। बच्ची के साथ महक का चेहरा भी बच्चों की चेहरे की तरह खुश और चमकने लगा था। अब उसको अपनी मुँह मांगी मुराद पूरी होती लग रही थी। राधा जी को भी देख कर बहुत अच्छा लग रहा था। पर पराई चीज का क्या मोह करना, यह सोच वह अपने को बच्चों से ज्यादा जोड़ना नहीं चाहती थी। 

कुछ दिन बाद पुलिस स्टेशन से फोन आया और उन्होंने बताया कि बच्ची लावारिस है। वहां पर हमने सीसीटीवी फुटेज चेक किया तो अंधेरे में एक बूढ़ी औरत बच्चे को छोड़ कर जाते हुए दिखाई दी। अंधेरा बहुत ज्यादा होने से उसे पहचानना और ढूंढना मुश्किल है। लावारिस होने से इसे हमें अनाथ आश्रम में ही देना होगा। 

जब महक को मालूम हुआ तो वह मन में सोचने लगी कि मेरा इस बच्चे के साथ बहुत मन लग गया है। अब तो मेरे मन में इसके लिए प्यार, ममता ,करुणा, दया आदि सारे भाव जाग गये है। मुझे लग रहा है कि मैं इसके बिना नहीं रह पाऊँगी। इसकी वजह से ही मुझे मां होने की पूर्णता का अहसास सा होने लगा है। वह धीरे से हिम्मत करके सब से पूछती है "क्या इसको मैं अपनी बेटी बना सकती हूं?"

राधा जी मुस्कुराते हुए बोली, "हांं मै भी यही सोच रही थी। इससे बच्चे को भी सहारा मिल जाएगा और तुम्हारे  जीवन की उदासी भी खत्म हो जायेगी। हमारी महक फिर से चहक उठेगी। ये बच्ची महक से ऐसे घुल मिल गई है जैसे उससे महक का कोई पुराना नाता हो और बच्ची ने भी महक को अपना लिया है। अब इसको हमें भी अपना लेना चाहिए।" 

 हमें इसे लीग़ली गोद लेकर के अपने घर को खुशियों से भर लेना चाहिए। सब लोगों को राधा जी की बात सही लगी और सब ने इस बात पर सहमति दे दी। महक कि तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था। क्यों न होगा.. इस मासूम से ही तो इस दुनिया मे महक को मातृत्व का वो अनूठा उपहार अनजाने मे ही मिल गया था। जिसके लिये वो इतने अरसे से तरस रही थी। 

महक सोचती हैं कि क्या वह बूढ़ी औरत कोई फरिश्ता थी। जिसनें मेरी सूनी गोद भर दी।


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