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Rajiva Srivastava

Tragedy

4  

Rajiva Srivastava

Tragedy

वो बेचारा मिडिल क्लास

वो बेचारा मिडिल क्लास

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आज जब से मैं शाम को घर लौटा हूँ, मन बड़ा बेचैन है। आजकल कोरोना नामक बीमारी के चलते पूरे देश में लॉक डाउन चल रहा है। मैं चूंकि बैंक में काम करता हूँ तो इस समय भी ज़रूरी सेवा में होने के कारण मुझे नौकरी पर जाना होता है।

   हाँ तो मैं शाम के समय बैंक से निकल कर जब घर की तरफ आ रहा था तो मेन रोड से न आकर मैं शार्ट कट के चक्कर मे बीच में पड़ने वाली झुग्गी झोपड़ियों के रास्ते से आ रहा था। स्कूटर को जैसे ही झुग्गियों वाले रास्ते पर मोड़ा तो देखा कोई स्वयंसेवी संस्था गरीबों की बस्ती में दूध फल आदि सामग्री बाँट रही है। मन में विचार आया कि चलो अच्छा है कोई तो इन गरीब परिवारों की सुध ले रहा है। सभी लोगों ने मुँह ढक रखा था, एक दूसरे से दूरी रखते हुए लाइन बना रखी थी। मैं किनारे से निकल रहा था,तभी 'चोर चोर' की आवाज़ आई। मैंने आगे बढ़ कर देखा, एक पैंतीस चालीस साल का व्यक्ति सिर झुकाए खड़ा था। तीन चार लोग उसे घेर कर खड़े थे और एक व्यक्ति ने उसकी कलाई पकड़ रखी थी।उस व्यक्ति के हाथ में एक दूध की थैली थी। 'क्यूं बे जब मुफ्त में सामान हम दे रहे हैं तो तू चोरी क्यूं कर रहा है।'एक नेता टाइप के व्यक्ति ने जोर से पूछा। उस व्यक्ति से कोई जवाब देते नहीं बन रहा था। इतने में एक दूसरा आदमी भी बोल पड़ा 'साहब ये तो हमारी बस्ती का भी नहीं है।'नेता टाइप के आदमी ने कहा 'हम तो सभी बस्तियों में जा रहे हैं, जब तेरी बस्ती में आते तब ले लेता।'एक दो लोग तो आगे बढ़ कर मौके का फायदा उठाकर उस पर हाथ भी धरने जा रहे थे। तब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने कहा 'अरे,एक बार इसकी भी सुन लो,ये क्या कहता है।'नेता जैसे आदमी ने कहा 'अरे साहब आप कहाँ इन चक्करों में पड़ते हैं, हमारा तो रोज़ ऐसों से पाला पड़ता है।'तभी वो व्यक्ति सुबक पड़ा, भरे गले से बोला साहब 'न तो मैं कोई चोर हूँ न कोई गरीब मज़दूर हूँ। इस लॉक डाउन ने हमारी कमर तोड़ दी है। मैं एक छोटा दुकानदार हूँ। अचानक दुकान बंद हुई तो गल्ले में दो ढाई हजार रुपए थे लेकर घर आ गया था। आज दस दिन हो गए सारे पैसे इतने दिनों में ख़र्च हो गए राशन सब्जी लेने में,अब बिलकुल पैसे नहीं बचे हैं घर में। बाकी सब है बस दूध नहीं है और दूध लेने के पैसे भी नहीं बचे हैं। छह महीने की छोटी बच्ची दूध के लिए बिलबिला रही है। उसकी तड़प नहीं देखी गई इसीलिए मुझसे ये हरकत हो गई। मुझे पता है कोई मेरी बस्ती में सामान देने नहीं आएगा क्यों कि वो कोई गरीबों की बस्ती तो है नहीं।'

  इतना कह कर वो फूट फूट के रो पड़ा। मैं वहाँ से तो चल दिया, लेकिन मन तभी से बेचैन है और सोच रहा है आज के इस समय में न जाने कितने होंगे?ऐसे बेचारे मिडिल क्लास जिनकी इज़्ज़त बस अब उतरी की तब।


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