" राधिका की बिंदिया "
" राधिका की बिंदिया "
राधिका,हां आज के हमारे मुख्य किरदार का नाम यही है "राधिका"। राधिका और अनिल का एक साथ लखनऊ मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हुआ था। काउंसलिंग के दौरान ही दोनों की जान पहचान हुई थी। अनिल को पहली ही नजर में राधिका,नहीं उसके माथे की बिंदिया भा गई थी। अनिल ने तो पहली नजर में ही एक तरह से दिल दे दिया था। राधिका के साथ ऐसा नहीं था, हालांकि अनिल उसे भी अच्छा लगा था। फिर समय के साथ साथ ये अच्छा लगना कब लगाव में बदल गया खुद राधिका को भी नहीं पता चला। उन दिनों श्रीदेवी की फिल्म आई हुई थी ' लम्हें '। अनिल खुद को अनिल कपूर समझता और राधिका को ' तेरी बिंदिया मेरी निंदिया न चुरा ले ' कह कह कर छेड़ता रहता था।
कॉलेज में ही दोनों ने एक दूसरे को जीवन साथी बनाने का फैसला कर लिया था। एमबीबीएस के बाद दोनों ने पीजी किया सरकारी नौकरी में आ गए। राधिका अनिल के जीवन में पत्नी बन कर आ गई। जीवन अपनी रफ्तार से चलता रहा। समय के साथ एक बेटा भी हो गया ' सुमित ' नाम रखा गया।
इस भागदौड़ में यदि कभी राधिका बिंदी लगाना भूल जाती तो अनिल बड़े अंदाज़ में याद दिला देता ' ओ राधिका रानी कहां है तेरी बिंदिया?' राधिका हंस देती और झट से बिंदी लगा लेती। समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। सुमित भी बड़ा हो गया। पापा की देखा देखी वो भी जब कभी राधिका को बिना बिंदी देखता तो वहीं डायलॉग मारता ' ओ राधिका रानी कहां है तेरी बिंदिया?' राधिका उसे मीठी झिड़की देती ' पिटेगा तू '। और बात हंसी में निकल जाती।
अब आते हैं तेजी से साल 2020 में। ये वो साल जिसने जाने कितनों के जीवन में जाने
क्या क्या नहीं बदल दिया?उथल पुथल मचा दी। इस साल आई महामारी ने तहलका सा मचा दिया है। अनिल की ड्यूटी लगी हुई थी कोविड केयर में। बहुत बचते बचते भी वो बीमारी की चपेट में आ ही गया। घर से अच्छा भला गया था,वहीं से फोन पर बताया कि वो कॉविड पॉजिटिव आया है। घबराने की जरूरत नहीं है वो वहीं आइसोलेशन में रहेगा। रिपोर्ट निगेटिव आने पर घर वापस आ जाएगा। लेकिन स्थितियां लगातार बिगड़ती गईं और अंततः हॉस्पिटल से फोन आया कि अनिल को बचाया नहीं जा सका। उसके शरीर को घर भी नहीं लाया जा सका। मां बेटे ने दूर से ही अपने प्रिय का अंतिम संस्कार किया। कहां तो हंसी खुशी जिंदगी चल रही थी और अब अचानक से ऐसा वज्रपात हो गया।
किसी तरह से स्थिति से समझौता किया। दुनियादारी की तमाम रश्में भी पूरी कीं।अब लगभग दस दिन बाद राधिका ने वापस अपनी ड्यूटी पर जाने का तय किया। बेटे को बोल कर बाहर निकलने को हुई,तभी सुमित की नजर अपनी मां के माथे पर गई।माथे पर बिंदी न देख कर आदतन उसके मुंह से निकल गया ' ओ राधिका रानी कहां है तेरी बिंदिया?' बोलने को तो वो बोल गया लेकिन तुरन्त ही उसे अपनी गलती का अहसास भी हो गया। उसने अपनी नज़रें नीची कर लीं। इतने में राधिका गेट तक पहुंच गई थी।आवाज पड़ोस की श्रीवास्तव आंटी के कान में भी पड़ गई। उन्होंने पास बुला कर कहा ' राधिका, सही तो कह रहा है सुमित। अनिल को भी तो तुम्हारे माथे की बिंदिया कितनी पसंद थी। बिंदी लगा कर ही निकलो बेटा।'
राधिका वापस लौट ली घर की ओर बिंदी लगाने के लिए।उसने तय कर लिया था जो माथे की बिंदिया अनिल को इतना पसंद थी वो उसे हरगिज नहीं उतरेगी।"