" रिटायरमेंट "
" रिटायरमेंट "
' अरे, अरे आठ बज गए।' कहते हुए वर्मा जी हड़बड़ा कर उठे तो सामने दरवाजे पर उनकी पत्नी वंदना जी चाय लिए हुए खड़ी थीं। वंदना जी बोलीं 'कोई बात नहीं, कल रात वैसे भी काफी देर हो गई थी और आज रविवार है और..' उनकी बात बीच में ही काट कर वर्मा जी बोल पड़े 'चलो अच्छा है संडे है नहीं तो आज तो लेट हो जाता।' उनकी बात सुनते ही वंदना जी खिलखिला पड़ीं और बोलीं ' श्रीमान जी, इतने वर्षों की सेवा के बाद आप कल सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए हैं।' यह सुनते वर्मा जी एक पल को तो हंसे फिर सोच में पड़ गए।' यहां अब रखा ही क्या है?'
वंदना जी उनके पास आकर बैठ गईं और बोलीं ' अब क्या सोचने लगे?' वर्मा जी बोले ' इतने साल तो नौकरी की भाग दौड़ में कैसे बीते? पता ही न चला। और अब एक दम से खाली हो गया। कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि अब क्या और कैसे करें?' वंदना जी बोलीं 'सब सोच लिया है, इतना समय तो अपनी जिम्मदारियों को पूरा करने में लग गया। अब अपने लिए जीएंगे। हम लोग लखनऊ शिफ्ट हो जाएंगे। वहीं एक फ्लैट ले लेंगे। भैया भाभी भी वहां हैं, दीदी भी हैं। मेरे दोनों भाई भी वहीं हैं। सबको एक दूसरे का सहारा रहेगा। बच्चे तो सबके अपनी अपनी नौकरी और परिवार के साथ हैं। चाह कर भी हमारे साथ नहीं रह सकते।' वर्मा जी बोले ' फ्लैट क्यों, इतना बड़ा घर है लखनऊ में हमारा।' 'देखिए ऐसा है, इतने समय से सब लोग अलग अलग रह रहे हैं। सबकी अपनी अपनी लाइफस्टाइल है और इस उमर में कोई भी अपने को बदल नहीं सकता। सबकी अपनी प्राइवेसी भी होनी चाहिए। एक घर में न सही एक शहर में तो रहेंगे। वक़्त जरूरत सबके काम भी आ सकेंगे। आप भी अपने खाली समय में अपना लिखने पढ़ने का शौक पूरा कर सकेंगे।' वर्मा जी को अब भी कुछ सोचता पाकर वंदना जी बोलीं 'अब जादा सोचने की जरूरत नहीं। रिटायरमेंट जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत है कोई जीवन का अंत नहीं। आप जल्दी से तैयार होकर नाश्ते के लिए नीचे आ जाइए। सब आप ही का इंतजार कर रहे हैं। फिर शाम की पार्टी भी तो है।'