" वो लड़की कहीं खो गई है "
" वो लड़की कहीं खो गई है "
आज अचानक सुबह की चाय पीते हुए रमेश जी की नजर ऊपर उठी और अपनी पत्नी जया जी के चेहरे पे गई तो जाने क्यों उन्हें लगा कि 'अरे ये कौन है? ये वो तो नहीं जिसे मैं आज से करीब बीस बरस पहले धूमधाम से बाजे गाजे के साथ ब्याह के लाया था।' इस एक विचार मात्र ने रमेश जी को सोचने को मजबूर कर दिया। रमेश जी और जया जी के बीच ये एक अलिखित नियम सा था, चाहे कोई कितना भी व्यस्त क्यों न हो सुबह की चाय दोनों एक साथ बैठकर ही पीते थे। रमेश जी को सुबह सुबह जल्दी काम पर जाना होता था फिर भी दोनों लोग समय निकाल कर सुबह की चाय जरूर एक साथ पीते थे। इसी बहाने दोनों लोग एक दूसरे के साथ कुछ पल गुजार लेते थे।
लेकिन हम सबके साथ जैसा कि हमेशा होता है। हम जिसको रोज देखते हैं उसको रोज देखते देखते उसमें समय के साथ आने वाले परिवर्तनों को ही नहीं देख पाते हैं। कब घर परिवार की जिम्मेदारी निभाते निभाते हमारा साथी बदल जाता है ?हमें पता ही नहीं चलता। रमेश जी सोच रहे थे जब नई नई जया शादी के बाद उनके घर आई थी
बिलकुल बच्चों जैसी थी। एक तो कम उम्र में शादी हो गई थी। बी ए करते ही उसकी शादी हो गई थी। रमेश जी और जया जी के बीच में उम्र का भी फासला था। जब शादी तय हुई थी, तो एक बार तो ये भी विचार आया था कि कहीं गलती तो नहीं कर रहे हैं अपने से इतने साल छोटी लड़की से शादी कर के। जया जी ने आने के साथ ही इस घर की और रमेश जी की सारी जिम्मेदारी खुशी खुशी संभाल ली। कहां तो देख कर लगता था कि ये लड़की जिसने अभी अभी पढ़ाई पूरी की है, वो क्या और कैसे घर गृहस्थी संभालेगी ? लेकिन जया जी ने पूरी मुस्तैदी से इस घर को घर बना दिया। ये जया जी ही हैं जिन्होंने रमेश जी और रमेश जी के दोनों बेटों को बेफिक्र कर रखा है। खाना कपड़े से लेकर के हर छोटी बड़ी जरूरत बिना कहे ही पूरी हो जाती है। जाने कैसे जया जी को पता चल जाता है और बिना कहे ही काम हो जाता है। बेटे तो कई बार कहते भी हैं ' मम्मी आपको कैसे पता चलता है कि आज दाल बाटी खाने का मन था या आज बहुत दिन हो गए राजमा चावल बनाया जाए?' जया जी हँस कर हल्की सी चपत लगा बोल देती हैं ' मां हूं मां।'
लेकिन ये भी सच है कि जब परिवार में कोई ऐसा आ जाता है जो सब अच्छे से संभाल लेता है तो बाकी सब बेफिक्र हो जाते हैं। वो अंग्रेजी में कहते हैं न 'फॉर ग्रांटेड' वो ही स्थिति आ जाती है।
आज इस एक नजर ने रमेश जी को कहीं भीतर तक हिला दिया। अब रमेश जी ने तय कर लिया है कि बस अब उस लड़की को वापस लाना ही होगा। वो लड़की जिससे उन्होंने शादी की थी उसे एक बार फिर उसके उसी रूप में लाकर रहेंगे।
रमेश जी को ऐसे चुप चाप सा देख कर जया जी से न रहा गया, उन्होंने पूछ ही लिया ' क्या हुआ, ऐसा क्या सोचने लगे?' जब रमेश जी ने उन्हें बताया कि वो क्या सोच रहे थे तो जया जी जोर से हंसी और बोलीं , 'कभी अपनी तरफ भी देखा है? क्या थे और क्या हो गए? आंखों पे चश्मा चढ़ गया है, सिर में पीछे चांद सा बन गया है। अरे इसमें इतना सोचने की जरूरत नहीं। ये जो हमारी गृहस्थी की चक्की है न वो समय के साथ साथ सब बदल देती है। हमें तो इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए कि हमारी मेहनत सफल हुई। बड़े वाले बेटे का इंजीनियरिंग में दूसरा साल चल रहा है, छोटे वाले का भी इस साल कहीं अच्छी जगह एडमिशन हो जाए तो अपनी मेहनत सफल समझो। ये सब कोई मैंने अकेले ने ही तो किया नहीं है। जीवन यज्ञ में हम दोनों ने ही आहुति दी है।
अब रमेश जी फिर से सोचने लगे, वाकई ये वो लड़की नहीं है और मन ही मन हँस दिए।