विवाह प्यार और कुर्बानी (भाग 2)
विवाह प्यार और कुर्बानी (भाग 2)
ये सब तीन महीने चलता रहा। और फिर एक दिन मेरे ससुर जी जो अपनी पत्नी के लकवाग्रस्त होने से परेशान थे और टेंशन में कुछ गलत कर बैठे और नीलम जी को साथ ले गये और फिर पंचायत होने के बाद हम पति-पत्नी फिर साथ रहने लगे और आज भी नीलम जी ही अपने मायके जाकर मिल आती है और मैं भी कई बार गया पर कहते है ना कि हमे वहां कभी नहीं जाना चाहिए जहां पर आपका बार-बार अपमान हो और वही मैनें भी किया।
मेरे ससुर जी ने साफ कह दिया कि मेरी बेटी और नाती ही मिलने आयेगे पर दामाद नहीं तो मैनें वहां पर जाना बंद कर दिया।
फिर एक साल बाद हम दोनो को एक बेटी हुई जिसका नाम हमने कनिष्का रखा। भगवान ने हमे बहुत ही प्यारी और बहुत बहुत सुंदर बेटी दी थी। और फिर एक साल बाद मेरे ससुर जी दोनो को सास की बीमारी और देखभाल के बहाने साथ ले गये और अखबार में निकलवा दिया कि मेरी बेटी को दहेज के लिए तंग करते है। हमे तो पता भी नहीं था कि हमारे साथ इतना बड़ा धोखा हो रहा है और फिर सबके कहने पर हमारे माता-पिता ने हमे बेदखल कर दिया।
फिर एक से दो साल मैं भी नीलम जी और कनिष्का से दूर रहा और फिर मैनें अपनी सुसराल में जाकर रहने
का फैसला लिया और वही रहने लगा।
मेरी नौकरी चली गयी थी और मुझे एक दुकान पर काम मिला और रात को मैं अपनी सुसराल चला जाता पर मुझे मेरे ससुर जी बहुत परेशान करते थे।
मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि दहेज के कानून का गलत लाभ लड़की वाले उठा रहे थे और मुझ जैसे पता नहीं कितने पति इससे दुखी थे, परेशान थे और असहाय व असमर्थ थे।
फिर एक साल मैं उस घर में घर-जमाई बनकर रहा और अपने ससुर जी के जुल्म सहता रहा और नीलम जी भी मजबूर थी और ससुर जी ने उन्हे सास को मारने और फिर खुद मरने की धमकी दी थी। और फिर एक दिन नीलम जी ने कहा कि चलो हम अपने घर चलते है और हम अपने घर आ गए और तब से आज तक खुशी खुशी रहने लगे।
सिमरन की भी शादी भी तब तय हो गई और उसने नीलम जी को मिलने बुलाया और कहा कि वो मुझे पसंद करती थी और शायद वो सिर्फ आकर्षण था, और ये बात नीलम जी को उसकी कोई चचेरी बहन जो कि नीलम जी को भी जानती थी और जिसके साथ सिमरन की लड़ाई हो गयी थी वो ना बता दे, फिर उसकी शादी हुई पर हमे नहीं बुलाया, और वो कहानी का अगला भाग वही खत्म हो गया।
Next part coming soon