विशालकाय परिंदे

विशालकाय परिंदे

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"जब हमारी शादी होगी न श्रेया, तब तुम्हें पूरी दुनिया की सैर कराऊँगा, प्लेन में बैठाकर।" कहते हुए रोहन ने आसमान में उड़ते परिदों पर निगाह डाली।

अच्छा जी...तो पायलट साहब। हम दोनों शादी के बाद खुले आसमान में कुछ इन परिदों की तरह बहुत ऊँचे विचरण करेंगे...।

जी मैडम...और दोनों एक स्वर मिलाकर खिलखिलाकर हँस दिए।

पर रोहन मुझे इस सुनसान जगह पर इन विशालकाय परिंदों से डर लगता है।

"हम्म ..गिद्ध कहते हैं इन्हें पर मै हूँ न, देखना ये हाथ मरते दम तक नही छोड़ूँगा मैं।"

और तभी अचानक एक बहुत जोर का वार रोहन पर हुआ।

एक भारी भरकम आवाज- "तू हमारे घर की लड़की को लेकर रफूचक्कर हो जाएगा और हम तुझे ऐसा करने देंगे।"

श्रेया ने घबराई हुई आवाज में कहा- "रोहन...रोहन...।"

"पाप ...पापा ऐसा नहीं है, आप गलत समझ रहे हैं।" और धीरे -धीरे विशालकाय परिंदों की आवाजें व संख्या बढ़ने लगी आकाश में।

"अच्छा तो तू समझाएगी, क्या गलत और क्या सही है।" आँखों में खून उतरा हुआ था उसके पिता के।

विशालकाय परिंदे पंख फैला चुके थे।

"देखा ताऊजी....,"मैंने आपसे कहा था न ये हमारे घर की इज्जत को यूंँ इस लड़के के साथ मिलकर नीलाम कर रही है।"

पापा मैं और रोहन प्यार करते हैं, एक-दूसरे से। आप समझने की कोशिश कीजिए। विशालकाय परिंदे शिकार की तरफ बढ़े।

"तुझे हम समझायेंगे।" तभी रोहन श्रेया के सामने आकर खड़ा हो गया।

"मैं प्यार करता हूँ श्रेया से। वादा करता हूँ हमेशा खुश रखूँगा, मुझे एक मौका तो दीजिए अंकल।"

और तभी विशालकाय परिंदे झपट पड़े अपने शिकार पर, एकाएक तेज वार..... और शिकार ढेर।

श्रेया का हाथ अब भी था, रोहन के हाथों में और श्रेया और रोहन की "निर्जीव" आँखें अब भी ताक रही थी आकाश को। विशालकाय परिंदे अपने शिकार को खाकर उड़ चुके थे।


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