पहाड़िया
पहाड़िया
ओह!क्षितिज मुझे नही पंसद यह ऊंची-ऊंची पहाहियाँ ,मुझे घबराहट होने लगती है इन पर चढ़ना ,उतरना और कभी-कभी लड़खड़ा कर गिर भी जाना.. , अगर तुमने माता रानी की मन्नत ना मागी होती तो मै यहा कभी ना आती..शुक्र है हम अब समतल मैदानी जगह है।
हाँ परन्तु कुछ दूरी पर फिर से पहाड़ी इलाका शुरु हो जाएगा तब क्या करोगी दृढ़ता।
मतलब मै कुछ समझी नही..,तुम कहना क्या चाहते हो क्षितिज ।
बस यही कि दुख के पहाड़ो पर चढ़ने के बाद जब हम बीच मे समतल जगह पर आते है तो सोचते है कि बस यही रह जाए या यूं कहे की जरा सा कष्ट भी असहनीय हो जाता है ।पर आगे कुछ दूरी पर एक और पहाड़ी इंतजार में होती है।
एक गहरी श्वास दृढ़ता ने लेते हुए कहा-"हां जब मै पहाड़ी पर चढ़कर नीचे उतर आती हूँ तो भरोसा ही नही कर पाती की...उस पहाड़ी की चोटी पर थी मै कभी...।
तो तैयार हो ना अगली पहाड़ी पर चढ़ने के लिए ,यही जीवन है ।
हाँ...माता रानी से इन पहाड़ियों को पार करने की शक्ति देने की तो कामना की है मैने..।
और क्षितिज की ओर एक निश्चय भरी मुस्कान बिखेर दी दृढ़ता ने।