जिम्मेदारी और बेफिक्री
जिम्मेदारी और बेफिक्री
सुबह -सुबह अलार्म बजते ही नैना की जिम्मेदारी उससे पहले जागने को ही थी कि उसकी बेफिक्री ने उसे एक नरमी भरी रजाई ओढ़ाते हुए कहा "सो जा नैना ...,ये जिम्मेदारी तो कभी तुझे सुबह की चैन की मीठी नींद लेने ही नही देगी"।
पर जिम्मेदारी ने बेफिक्री को घुड़कते हुए कहा- "चुपकर जब देखो फसंवाती है तेरी चिकनी चुपड़ी बातो मे आकर कई बार परेशानी भुगती है नैना ने"।
अरे..पर...!
"पर...वर...कुछ नही अच्छा ठीक है मै तो इसे नही जगाऊगी पर क्या....?तू ठेका लेगी दिनभर की अव्यवस्थाओ का ,जो इसके सिर ठीकरा बनकर फूटेगा..।"
"ओहो...फिर वही उपदेश...।"
"ओहो...वोहो...कुछ नही...।"
"पर यह क्या ...??क्या हुआ..?"
"क्या ..?जीजी हम यहा आपस मे उलझ रहे है वहा देखो...।"
"क्या..??देखूँ ,अब मै ,तू भी न बेफिक्री.."
और यह देखो, नैना तो अपने आप को समेटते हुए उठकर जा भी चुकी है...और उसके पीछे पीछे जिम्मेदारी भी..।
और बेफिक्री कहीं खड़ी सुबह के कोहरे में अपना अस्तित्व तलाशने की कोशिश कर रही थी।