सफर सात जन्मों का
सफर सात जन्मों का
सीधी -सादी सी स्वरा जिसके मुख से स्वर बस तभी निकलता है। जब उसका कोई बहुत करीबी उसके करीब होता है सलवार- सूट वाली, नपे तुले नैन- नक्श, साधारण रंग रूप, गहरी भूरी आँखें, घर से हिदायत थी, कि सीधी कॉलेज जाओ और आओ और स्वरा खुद इतनी शर्मीली थी, की कोई ना भी हिदायत दे ,तो वह स्वयं भी तो यही करने वाली है। ऐसी है हमारी स्वरा।
बड़ी दीदी रीनी की शादी अभी कुछ दिनों पहले ही हुई थी शादी में भी स्वरा का यही हाल। जहां अन्य लड़कियाँ सज संवर कर अपने जलवे बिखेरने में लगी थी। वही स्वरा बहुत सलीके से साड़ी और हेयर स्टाइल के नाम पर बालों को लपेटकर जुड़ा और उस पर गजरा, बस केवल इतना ही।
पर ना जाने क्यों...? स्वरा को एक चेहरा बार-बार अपने आसपास नजर आ रहा था। कुछ अजीब लगा उसे आखिर उस जैसी लड़की को कोई क्यों...?? पर स्वरा ने अपना ही मज़ाक बड़ी बेतक्लूफी से उड़ा दिया खुद ही ।
तभी उसकी कजिन साक्षी ने आकर स्वरा से कहा -स्वरा वह वैभव है। कौन... वैभव?? स्वरा ने कहा। अरे वह जीजू का कजिन है। हैंडसम है ना ।
अरे! बाबा, कभी इधर उधर अपने आसपास भी देख लिया करो। वह देखो ब्लैक सूट में, मेरी तो नजर ही नहीं हट रही है उस पर से। तुम पागल हो गई हो साक्षी, किसी ने सुना तो क्या सोचेगा?
हे !भगवान, मैं किस से यह सब कह रही हूँ। देवी जी आप क्या सारा जीवन यूँही बीता देंगी क्या?? आपको कभी कोई नहीं भाता। अरे! अपने आसपास वालों को देखकर ही कुछ सीख लो ।
जाओ....साक्षी ने खींझते हुए कहा -"मैं पढ़ रही हूँ अभी, मुझे इन सब बातों में कोई दिलचस्पी नहीं"।
साक्षी यह सुन और चिढ़ गई और उसने बड़ी बेरुखी से कहा- "तुममें कुछ हो तो दिलचस्पी दिखाने लायक, तो कोई दिखाए बहन जी टाइप हो तुम"।
स्वरा को यह सुनकर तकलीफ़ हुई। वह स्वयं जानती थी कि इतना साधारण व्यक्तित्व है उसका,और आजकल की है चमक दमक वाली जीवन शैली, पर फिर भी वह जानती थी उसे पढ़ना है। और उसके साथ जीवन बिताना है जिसे बाबा चुनेंगे। जैसे दीदी ने किया।
रीनी दीदी की शादी अच्छे से संपन्न हुई। रीनी दीदी शादी के बाद, जब भी आती वैभव का जिक्र ज़रूर करती है। वह कामयाब है ,वगैरा-वगैरा। उन्होंने बताया कि उनकी शादी के बाद साक्षी ने वैभव को प्रपोज किया था। पर वैभव ने इनकार कर दिया। यह कहकर कि मैं किसी और को पसंद कर चुका हूँ। यह सुन स्वरा को ना जाने क्यों थोड़ा अजीब लगा ? किसे पसंद करता है ? पर दीदी से पूछने की हिम्मत नहीं हुई उसकी।
बात आई -गई हो गई सभी अपने जीवन में व्यस्त थे। तभी रीनी दीदी ने एक दिन फोन करके कहा-स्वरा हम लोग कुछ दिनों के लिए शिमला घूमने जा रहा है। तुम भी चलो, मम्मी पापा ने स्वरा के मना करने के बावजूद भी भेज दिया। कि कही तुम्हारे वीजू बुरा न मान जाए।
जब ट्रेन मे अपनी बर्थ पर आकर बैठी तो सामने वैभव को भी बैठा पाया स्वरा ने। न जाने क्यो वैभव के अचानक हाथ बढ़ाकर हैलो कहने पर स्वरा सकुचाकर मुस्कुरा दी बस। और फिर सफर शुरु हुआ। और हंसी मज़ाक ,बातों का दौर भी। पर उसकी नज़रे न जाने क्यो वैभव की गतिविधियों को छुप-छुपकर टटोल रही थी।साथ ही अपने मन को भी। ऐसा कुछ नही है। दीदी ने बताया था ना, उसने तो किसी और को पसंद कर लिया है। एडवांस है बहुत न जाने कितनी लड़कियों के साथ फ्लर्ट, किस.....,छि:छि:यह क्या स्वरा । स्वरा ने खुद को ही झिड़कते हुए कहा-" क्या सोच रही है तू ,अगर है उसकी गर्लफ्रेंड तो तुझको क्या...?"
उधर वैभव रीनी दीदी से बोला -"भाभी कुछ लोग इतने घमंडी होते हैं कि किसी से बात करना पसंद नहीं करते आप तो ऐसे नहीं हो "।
दीदी ने कहा-" नहीं देवर जी, ऐसी कोई बात नहीं है । कुछ लोगों का नेचर ही ऐसा होता है ।"
यह खींचातानी पूरे रास्ते चलती रही यूं ही और हम लोग शिमला पहुंचे। जब भी वैभव से नजर टकराती स्वरा की, तो कुछ देर टिकती ज़रूर उसके चेहरे पर ।"आप बहुत कम बोलती है "-वैभव ने कहा ।
"जी ऐसा कुछ नहीं है, मुझे ज्यादा बातें करना नहीं आता"-स्वरा ने कहा।
"तो कम बातें कर लिया कीजिए"-और वैभव के मुख से यह सुन सब ठहाके मार कर हँस पड़े।
और स्वरा उसे कुछ समझ ही नहीं आया कि आगे क्या करे ?पर अब समझ चुकी थी वह, यह बंदा पक्का फ्लर्ट करने वाला है। पर वह क्या करे ?उसकी तरफ होने वाले खिंचाव को वह चाहकर भी नहीं रोक पा रही थी। अजब सी मुश्किल थी। उसे तो अभी पढ़ना है, वह क्या.. चाहती है? स्वयं से, अभी सोच ही रही थी कि वैभव ने जीजू से पूछा-" आप कह रहे थे भैया, किसी का जन्मदिन है कल "।
हमारी साली साहिबा स्वरा का जन्मदिन है कल, बताया तो था।
तभी इतना भाव खा रही हैं यह...-वैभव ने कहा।
मैं नहीं तो,आप क्या ..चाहते हैं ? मिस्टर वैभव, स्वरा ने परेशान होते हुए कहा।
जी मैं .... मैं आपसे, कुछ.... तो, कुछ नहीं चाहता।
वैभव इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था। पर वह यह तो समझ गया था कि स्वरा आम लड़कियों जैसी बिल्कुल नहीं है। अगले दिन वैभव ने जन्मदिन की शुभकामनाएं दी जो स्वरा ने अनमने मन से स्वीकार की पर गिफ्ट....,गिफ्ट तो स्वरा ने वापस ही कर दिया।
"गिफ्ट वापस करने की क्या जरुरत थी "। स्वरा के जीजू ने रीनी से कहा।
"मैं क्या करूं मेरी बहन कुछ अलग है"। रीनी ने कहा
ठीक है जैसा तुम लोगों को सही लगे वैसे करो। वैभव अच्छा लड़का है जरूरी नहीं जो मॉडर्न हो, स्मार्ट हो, वह हमेशा किसी को फ्लर्ट ही करेगा। हाँ उसके दोस्तों के लिस्ट में लड़के और लड़कियाँ दोनों ही है। पर फिर भी कोई खास अभी तक उसके जीवन में नहीं आई। और शायद यह खास उसे स्वरा लगी। तभी उसने स्वरा के जन्मदिन पर यहाँ शिमला आने का प्लान बनाया।
यह आप क्या कह रहे हैं। आप को मुझे बताना तो चाहिए था ।मुझे लगा तुम खुद समझ जाओगी। पर क्या...?अब क्या.. करे?
अब कुछ नहीं करना स्वरा को नहीं पसंद ये रिश्ता तो वैभव आगे नहीं बढ़ेगा, वरना सोचा था स्वरा के स्वभाव को ही देखते हुए, पहले स्वरा की सहमति मिल जाए। फिर बड़ों से बात की जाए। यह वैभव ने ही कहा था। उसे हमारी शादी में ही स्वरा की सादगी भाग गई थी। चलो कोई नहीं ।
तभी कहते-कहते स्वरा के जीजू की नजर स्वरा पर पड़ी ।
"अरे! स्वरा वहां क्यो..खड़ी हो दरवाज़े पर, अंदर आओ" उन्होंने कहा।
पर स्वरा यह सब सुन पीछे मुड़ी तो उसने अपने पीछे वैभव को खड़ा पाया। बिना नजरें मिलाए अपने कमरे में आ बैठी स्वरा।
रास्ते में लौटते वक्त चारों शांत थे। पर स्वरा के भीतर ना जाने क्यों एक अंतर्द्वंद चल रहा था? वैभव को एक स्टेशन पहले उतरना था। वैभव ने अपना सामान निकाला और चलने के लिए खड़ा हुआ। तो दोनो की नजर एक बार फिर टकराई। पर स्वरा ने इस बार नज़रें चुराई नहीं। और दोनो एक दूसरे को एकटक देखते ही रहे। दो बूंद आंखों से टपकी स्वरा के, तो वैभव ने कहा-" मैं यह कभी नहीं चाहता कि, तुम्हारी आंखों में मेरी वजह से आँसू आए"।
मुझे क्यों... पसंद किया तुमने? मुझ जैसी लड़की को, कितनी...कितनी बहनजी टाइप हूँ मैं। कहते-कहते स्वरा सुबक पड़ी ।
रंग बिरंगी तितलियां आसपास उड़ती हुई बेशक अच्छी लगती हो स्वरा, पर मुझे तो ऐसी गौरैया चाहिए थी। जो मेरे दिल के आंगन में हमेशा के लिए अपना बसेरा बना ले।
और वैभव ने अपना बैग उठाया ,और ले चला अपने साथ स्वरा की रजामंदी और उसका मन भी। और स्वरा सोच रही थी, कि वैभव अगला सफर आपके साथ तीन -चार दिन का नहीं, सात जन्मों का होगा।