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Chetna Sharma

Abstract

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Chetna Sharma

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टूटता मायाजाल

टूटता मायाजाल

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लाल बत्ती पर रुकी हुई, भागती-दौड़ती जिंदगी के बीच गुब्बारों से झांकती, दो मासूम सी आंखें और उन में पलते हुए ख्वाब।गाड़ी के अंदर की दुनिया, रंग बिरंगे ख्वाबों सी सुंदर पर कुछ धुंधली तस्वीर और उन तस्वीरों की लकीरों में रंग भरने की ललक लिए राजू आज भी उस मंजिल पर चलने के लिए तैयार होकर, पैरों में टूटी चप्पल पहन झोला उठाए निकल पड़ा।

गर्मी इतनी जो पड़ रही है। बाबू साहब लोगों को गला गिला करने के लिए पानी की बोतल की डिमांड ज्यादा है। सुरेश की तरह पहले वह भी भीख मांगा करता था पर गाड़ी के भीतर की रंगीन दुनिया के ख्वाबों को पूरा करने के लिए मेहनत हिसाब मांगती है साहब।

तो उसने हर सीजन के हिसाब से बिक्री शुरू कर दी थी। लाल बत्ती से आगे मोड़ पर कुछ दूरी पर चलकर सुनसान सड़क थी। जिस पर दोनों तरफ जंगल ही था अचानक उसके पीछे से एक बड़ी काली गाड़ी तेजी से निकली। वह कुछ सकपकाया ऐसी गाड़ियां बहुत पसंद थी उसे, पर आज उसने उठाकर एक पत्थर दे मारा उस गाड़ी पर। "अबे ! अंधा है क्या ?"

पर उसका पत्थर गाड़ी को छू भी ना सका। तभी गाड़ी रुकी एक 40- 50 साल के आदमी से एक 20-21 साल की लड़की, जिसके कपड़े कुछ अस्त-व्यस्त से थे। बाल बिखरे हुए हो" होठ के किनारे पर से खून की धार बहती हुई पर स्वयं को बचाती हुई बाहर आ चुकी थी। राजू अपने आपको समझता-समझाता हुआ, गाड़ी के पास पहुंचा इस बार एक बड़ा पत्थर दे मारा उसने जो उस आदमी के माथे पर लगा पर वह आदमी इतना जल्दी में था कि राजू को ताबड़तोड़ गालियां देता रहा पर गाड़ी रोक ना सका, ले भागा गाड़ी को। 

वह लड़की अब तक सभंल चुकी थी और राजू भी अब तक समझ चुका था। राजू ने उस लड़की को अपने झोले से पानी की बोतल निकाल कर देते हुए पूछा, "दीदी आप ठीक हो ,आप चलती गाड़ी से कूद गई, इस पथरीली धरती पर।"

उस लड़की ने कहा- "हां मैं अब ठीक हूं, अगर मैं उस गाड़ी में थोड़ी देर और रहती तो उस गाड़ी की नरम पर सख्त सीटें निगल जाती मुझे, इस पथरीली धरती ने बचा लिया मुझे।"

गाड़ी के अंदर की रंग-बिरंगी पर कुछ धुंधली तस्वीर साफ दिखाई पड़ने लगी थी, राजू को भी और उस लड़की को भी, कभी-कभी कामयाबी समझौता भी मांगती है साहब पर जो समझौता किए बिना कामयाबी पाए, वही इस मायाजाल में जाकर बाहर आ सकता है।


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