विसाल-ए-यार आसमां में
विसाल-ए-यार आसमां में
बस नाम ही काफी है रूतबा जानने के लिए, राजपूत रजवाड़ो के खानदान का चिराग, इकलौता 2000 करोड़ की जायदाद का वारिस, लेकिन घमंड तो छू भी नहीं गया, इतना विनम्र कि विनम्रता भी उसके सामने पानी भरे। पढ़ाई में अव्वल इसलिए जयपुर का गांव छोड़कर मुम्बई कालिज पढ़ने आया।
लेकिन इससे विपरीत रवनीत कौर, अर्थात रानी। प्यार से सब उसे रानी ही कहते थे। मुम्बई की ही पैदाइश।थी भी तो वो रानी जैसे ठाठ- बाठ वाली, रानी क्या महारानियो जैसी अकड़, हुकुमत का नशा।
क्यों ना हो रूप-रंग भी तो किसी रानी से कम थोड़े ही था। बला की खूबसूरत थी। कमर से नीचे नितम्बों को छूते हुए लम्बे बाल, गहरी भूरी आंखें, दूध सा सफ़ेद रंग, कद ना ज्यादा छोटा और ना ही ज्यादा लम्बी थी, दाहिनी आंख के दो इंच नीचे छोटा सा काला तिल गाल की शोभा बढ़ाता हुआ, जो कोई देखता तो देखता ही रह जाता।
अभी- अभी स्कूल पास करके इत्तेफाक से दोनों ने एक ही कालिज ( थाडोमल इंजीनियरिंग कालिज) में एडमिशन लिया।
आज पहले ही दिन दोनों की मुलाकात अजीब तरीके से हुई।
जैसे ही आकाश की ओडी कार आकर रूकती है, ड्राइवर ने दरवाजा खोला और एक हैंडसम लड़का उससे उतरकर चुपचाप बिना किसी की तरफ देखे सीधा अपनी क्लास की ओर चल देता है।
इधर रानी अर्थात रवनीत की बी.एम.डब्लयू. भी आई, ड्राइवर ने दरवाजा खोला और उसमें से राजकुमारियों के स्टाइल में एक हूरपरी उतरी और लगभग दौड़ने वाले अंदाज में क्लास की तरफ भागी।
जैसे ही कालिज की इंजीनियरिंग बिल्डिंग के कारीडोर तक पहुंची तो आकाश राठौड़ से इस तरह टकराई कि उसकी भी किताबें गिर गई और आकाश की भी।
रानी," ओहो, साॅरी, दरअसल आज कालिज का पहला ही दिन और मैं लेट हो गई, क्या इम्प्रेशन पड़ेगा लेक्चरार पर मेरा, और अब ये बुक्स संभालने में पांच मिनट और लेट" ऐसा कहते हुए बुक्स उठाने लगती है और उधर आकाश भी बुक्स उठाने के लिए झुकता है और अब इन दोनों के सर बहुत ज़ोर से टकरा जाते हैं।
इस बार आकाश," ओहो, क्षमा करें मेरी वजह से आपको चोट पहुंची"
और रानी छोटे बच्चों के जैसे माथा पकड़ कर वहीं बैठ गई, " अरे चोट का तो दुःख नहीं, पहले दिन और पहली ही क्लास मिस हो गई"
"लेकिन अभी तक तो कोई क्लास शुरू नहीं हुई, अभी समय नहीं हुआ"
"अरे नहीं सर आपकी क्लास लेट होगी शायद मेरी शार्प 8:40 स्टार्ट होनी थी"
" जी हम भी वही कह रहे हैं कि अभी समय नहीं हुआ, हमारी भी 8:40 पर क्लास है और अभी 8:35 ही हुए हैं, मगर अब बातों में समय बर्बाद किया तो अब क्लास मिस हो जाएगी"
रानी अपनी कलाई पर बंधी घड़ी दिखाते हुए," जनाब देखिए 8:35 नहीं 8:45 हो चुके हैं"
लेकिन अचानक उसे कुछ याद आया," ओह, शिट, तो ये पापा की चाल है, वो क्या है ना कि हम थोड़े से लेट-लतीफ हैं, इसलिए पापा ने हमारी घड़ी 10 मिनट आगे कर दी होगी, थैंक यू सो मच"" और ऐसा कहते हुए क्लास की तरफ चली गई, मगर आकाश की छवि अंखियों में समा ले गई।
आकाश भी क्लास की तरफ चला गया, मगर जैसे ही क्लास में पहुंचा सारी बेंच फुल थी, कहीं भी बैठने की जगह नहीं थी सिवाए एक बेंच के, रानी के साथ वाली सीट।
आकाश खड़ा सोचने लगा कि कहां बैठे? इतने में सर आ गए और आकाश चुपचाप रानी के साथ वाली सीट पर बैठ गया। रानी उसे बार- बार कन्खियों से उसे देख रही थी, मगर आकाश अपनी किताब में खोया हुआ था।
थोड़ी देर बाद लेक्चर खत्म हुआ और बैल बजी तो सब भागे बाहर की तरफ, रानी और आकाश भी बाहर अपने-अपने गंतव्य की ओर चल पड़े। मगर ना जाने क्यों रानी को आकाश से दूर जाना अच्छा नहीं लग रहा था।
क्या था ये?
नहीं जानती वो, अभी थोड़ी देर पहले ही तो मिली थी उसे, उसका तो वो नाम तक नहीं जानती, फिर क्यों वो उसके बारे में सोच रही है। नहीं समझ पा रही।
इसी तरह से एक साल, दो साल, अर्थात समय बीतता रहा, केवल दूसरों के मुख से सुनकर वो एक- दूसरे का नाम जान पाए , कभी कोई पढ़ाई से सम्बंधित ही बात होती उनमें, अन्यथा आकाश किसी से भी कोई बात ना करता।
इसी तरह तीन साल पूरे हो गए, आकाश को मन में बसाए कालिज से विदा लिया।
एक तो लाज-शर्म उस पर आकाश राजपूत और रानी कट्टर सिख अगर इज़हार-ए-इश्क कर भी लें तो रानी के घरवाले इस रिश्ते के लिए किसी कीमत पर राज़ी नहीं होंगे, इसलिए अपने पहले और एकतरफा प्यार को दिल में दबाए हुए थी।
ग्रेजुएशन के बाद मास्टर भी कर ली रानी ने, लेकिन उसे आकाश के बारे में कुछ पता नहीं था कि वो आजकल कहां है।
घर में शादी की बात चलने लगी तो रानी ने मां को बताया अपने पहले प्यार के बारे में।
"झल्ली हो गई ए नी कुड़िए, अस्सी सिख पक्के अते ओ राजपूत, तेरे वीर नू पता चलया ना, ते वड्ड के रख देगा तैनू वी ते मुंडे नूं वी"
रानी मां-बाप की मर्ज़ी के आगे कुछ ना बोल सकी मजबूरन उसे शादी करनी पड़ी, लेकिन पति को अपना ना सकी, मन से आकाश नहीं निकला। पति को पास भी ना फटकने देती, दुत्कार देती बुरी तरह से।
मर्द ठहरा कब तक सहन करता। एक तो ज़िल्लत की आग जलाती दूसरा तन की आग भी तपिश देती है।
उसके अन्दर का ज्वालामुखी भी उबल पड़ा और उसने एक रात अपना मर्दाना ताकत दिखा ही दी। टूट पड़ा रानी पर, प्यार की बरसात करता रहा, उसका कोमार्य छीन लिया, अंग-अंग को उसके पी गया शरबत जानकर।
मगर रानी का तन- बदन नफ़रत की आग में जलने लगा, नहीं सहा गया उससे।
बदला लेने का मन में ठान अपना स्वभाव बदल घर-परिवार में घुल-मिल कर रहने लगी।
अभी कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन पुलिस में कंप्लेंट कर दी, कि उसे प्रताड़ित किया जाता है, दहेज की मांग की जाती है, मार-पीट और बलात्कार का दोष लगाकर कर सबको जेल भिजवा दिया।
लाख सफाई दी उन लोगों ने मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। क्योंकि रानी ने अपने माता-पिता को भी इस तरह से अपने बारे में बताया कि वो हर बात को सच मान बैठे।
अब मां -बाप भी यही समझने लगे कि रानी सच कह रही है।
IPC section 376 और IPC section 498 A एवं अन्य कई धाराओं के अन्तर्गत उन्हें दस साल की सज़ा हुई। रानी माता-
पिता के साथ वापस आ गई।
तलाक की अर्ज़ी देने के बाद माता-पिता ने दूसरी शादी के लिए कहा तो रानी ने कहा कि वो अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है, अभी उसका शादी जैसे बंधन से विश्वास उठ गया है।
लेकिन दरअसल उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। उसे तो (आकाश )अपना पहला प्यार पाना था हर हाल में।
इधर वो आकाश में बारे में जानकारी भी निकालती रही। पता चला कि आकाश ने कारों का शोरूम खोला है। दोनों ने ही मेकेनिकल बी. टैक. एक सिर ही तो किया था। इसने जानबूझ कर आकाश के ही शोरूम में जाब के लिए अप्लाई किया। इत्तेफाक से आकाश के शोरूम में एम्पलाइ की ज़रूरत थी, जाब इसे मिल गई, इसे भी आकाश के पास रहने का बहाना मिल गया।
आकाश की अभी तक शादी नहीं हुई थी, क्योंकि आकाश में मन में कहीं ना कहीं रानी विराजमान थी, लेकिन वो ये भी जानता था कि रानी अब पराई अमानत है, अर्थात उसकी शादी हो चुकी है।
लेकिन वो इसलिए अभी शादी नहीं करना चाहता था कि जब तक वो रानी को पूरी तरह से दिल से निकाल ना दे किसी और को कैसे उस दिल में बैठाए!
लेकिन वो जितना उसे भूलने की कोशिश करता उतना उसे और याद आती हालांकि कभी उन्होंने इज़हार-ए-इश्क भी नहीं किया, कभी एक - दूसरे से ज्यादा बात भी नहीं की, पहला प्यार दोनों का मूक प्यार था।
मगर ये क्या जिसे भूलना चाह रहा था अब वही सामने थी।
धीरे-धीरे दोनों में बातचीत होने लगी।
"रवनीत तुम्हारी तो शादी हो गई थी, फिर तुम यहां और ये जाॅब"?
"हां आकाश मेरी शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई थी, मैं किसी और को चाहती थी, मगर मेरे पेरेंट्स ने मेरी शादी जबरदस्ती कहीं और कर दी, मगर वो लोग निहायत ही लालची और घटिया निकले, मुझे बहुत प्रताड़ित करते थे, कब तक सहती, आखिर मैंने पुलिस कम्पलेंट की अब वो जेल में हैं और मेरे वकील ने तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी है"
"ओह, ये तो बहुत बुरा हुआ"
"आकाश तुम्हारी शादी और परिवार???"
उसकी बात पूरी होने से पहले आकाश," नहीं मैंने अभी शादी नहीं की, अभी वक्त ने वक्त ही नहीं दिया शादी के बारे में सोचने का"
इस तरह दोनों अक्सर काफी समय तक अपने बारे में, बीते कालिज के दिनों की बातें किया करते।
दोनों में नज़दीकियां बढ़ने लगी, आकाश का पहला प्यार फिर से अंगड़ाई लेने लगा, और रानी तो चाहती यही थी कि आकाश के आसपास रहे और उसके दिल में जगह बनाए।
आकाश के माता-पिता अब आकाश पर शादी के लिए ज़ोर देने लगे, आकाश क्या करता?
ना तो शादी करके किसी को धोखा दे सकता है, ना ही अपना पहला प्यार भूला सकता है, लेकिन माता-पिता रवनीत से भी शादी के लिए नहीं मानेंगे।
बातों-बातों में आकाश रवनीत को बता देता है कि वो किसी को चाहता है।
एक दिन शाम के वक्त चाय पीते हुए, " आकाश आज तो आपको बताना ही होगा कि वो कौन है जिसे आप चाहते हैं, आज जब तक आप अपने पहले प्यार के बारे नहीं बताओगे तब तक हम यहां से नहीं जाएंगे"
"ठीक है मैं वादा करता हूं मैं अपने पहले प्यार के बारे में सबकुछ बताऊंगा, लेकिन पहले तुम अपने पहले प्यार के बारे में बताओ"
"अगर पहले मैंने बता दिया तो आपको बताने का मौका नहीं मिलेगा"
" देखा जाएगा"
रवनीत को इज़हार -ए-इश्क का मौका मिल गया।
" आकाश मेरा पहला प्यार तुम्ही हो, तुम्हारे लिए ही मैं सबकुछ छोड़ कर आई हूं, अब मैं अगर तुम्हारी नहीं तो किसी की नहीं, तुम्हें भी किसी और का नहीं होने दूंगी"
"रानी मैं भी तुमसे प्यार करता हूं, मेरा पहला प्यार तुम हो, लेकिन हम माता-पिता के खिलाफ नहीं जा सकते, हम शादी करेंगे मगर उनकी रजामंदी से"
"और वो कभी इस बात के लिए रजामंद नहीं होंगे"
"ये हमारा नसीब, हम इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में मिलेंगे"
"अगला जन्म किसने देखा है, मुझे अपना पहला प्यार इसी जन्म में हासिल करना है, ये मेरी भी ज़िद्द है, मैं किसी भी कीमत पर अपना पहला प्यार नहीं खो सकती"
दोनों ने अपने-अपने घरों में अपने प्यार की बात बता कर शादी के लिए कहा, लेकिन दोनों के माता -पिता ही नहीं माने।
आखिर एक दिन रवनीत के ज़ोर देने पर आकाश उसकी बात मान जाता है, और दोनों घर से भाग कर कोर्ट मैरिज कर लेते हैं और रवनीत के भाई को पता चल जाता है।
अभी दोनों कोर्ट से वापिस आ रहे होते हैं तो रवनीत," आकाश अब हमें कोई एक्सेप्ट नहीं करेगा, इसलिए हमें अपने लिए कोई नया ठिकाना ही ढूंढना होगा"
" नहीं रानी हम शादी कर चुके हैं, अब हमें कोई जुदा नहीं कर सकता, मेरे घर चलते हैं और पहले मेरे पेरेंट्स को मनाते हैं उसके बाद उन्हें लेकर तुम्हारे पेरेंट्स के पास चलेंगे"
इतने में सामने से धम्म से एक थार जीप ने आकर टक्कर मारी, आकाश की Odi car का बैलेंस बिगड़ गया, कार लड़खड़ाई आकाश का सिर स्टेरिंग से टकराया और आकाश उछला और सामने वाले सीसे से जा टकराया, लहूलुहान हो गया।
जीप में से चार-पांच लोग निकले जो रानी का भाई, पिता और उनके साथी थे, रानी को घसीटते हुए ले गए।
आकाश लड़खड़ाते हुए बाहर निकल कर जैसे ही कुछ कहना चाहता है रानी का भाई उसे हाकी से धड़ाधड़ मारने लगता है," तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बहन को ले जाने की, आज तुझे मैं ज़िन्दा नहीं छोड़ूंगा, और आकाश बेहोश होकर वहीं गिर जाता है।
रानी," वीरे मेरी गल्ल मन लो आकाश दी गलती नहीं मैं ही उसनू कोर्ट मैरिज वास्ते कहा सी, आकाश मेरा प्यार ए वीरे, मैं आकाश दे बिना मर जावांगी"
"ते फिर मर जा, पर इस राजपूत दा ना जबान तो नई लैणा"
रानी को रोता-बिलखता घर ले जाया जाता है।
इधर आकाश के माता-पिता को आकाश का पता चला, जाकर देखा तो अब तक आकाश का जिस्म ठंडा हो चुका था, अर्थात आकाश दुनिया छोड़ कर जा चुका था।
आकाश के माता-पिता ने पुलिस में रानी के परिवार के खिलाफ F.I.R. दर्ज करा दी।
अगले दिन सुबह आकाश के पार्थिव शरीर को श्मशान ले जाया जा रहा था तो उधर से रानी के भी पार्थिव शरीर को लाया गया, क्योंकि रात में रानी ने अपनी गर्दन की नस काट ली थी, सुबह देखा तो खत्म हो चुकी थी।