दुनिया से दूर नई दुनिया
दुनिया से दूर नई दुनिया
शहर यमुनानगर सागर स्कूल में पांचवीं क्लास में और आरती चौथी क्लास में है, सागर के चाचा की शादी आरती की बुआ रानी से तय हुई।
ठीक समय पर बारात पहुंच गई, सभी रस्में निभाई गई, अब फेरों का समय शुरू होने वाला था, और लड़की वालों को इसी समय का इंतजार होता है कि कब दूल्हा जूते उतारे और कब लड़की की सहेलियां वो जूते चुरा कर जूता छुपाई की रस्म पूरी करें।
लेकिन लडके वाले तो ठहरे सेर पर सवा सेर, उन्होंने पहले से ही जूते इस कदर छुपा लिए कि किसी को कानों-कान भनक नहीं हुई।
लड़की वालों को जब जूते कहीं नहीं मिले तो उन्होंने तरकीब निकाली।
आरती, "सागर, सागर फूफू के जूते कहां है"?,
बाल मन बातों में आ गया और ले चला उस और जहां जूते छिपाए थे .... "अरे ये तो रहे जूते"
और आरती झट से जूते लेकर बड़ी बहनों-भाभियों के पास भाग जाती है।
इस तरह जब भी दोनों परिवार मिलते आरती और सागर सबसे अलग बातों में मशगूल हो जाते।
दोनों का स्कूल भी एक ही था, अक्सर रिसेस में मुलाकात होती, दोनों साथ में लंच करते और बातें करते।
पता नहीं चला कब वक्त बीत गया 12वीं पास कर सागर जब स्कूल से विदा लेकर कालिज पढ़ने के लिए चंडीगढ़ गया तब इन दोनों ने एक-दूसरे के प्रति खिंचाव महसूस किया, दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरा महसूस करते। उन्होंने महसूस किया कि उन्हें प्यार हो गया है।
वक्त पर लगाकर कब उड़ गया पता ही ना चला, आखिर दोनों के घरों में शादी का ज़िक्र होने लगा।
सागर और आरती दोनों ने अपने घरों में बता दिया कि वो एक-दूजे के बिना ज़िन्दा नहीं रह पाएंगे।
पहले तो दोनों के घरवाले नहीं मान रहे थे, आखिर एक दिन सागर ने अपने हाथ की नस काट ली, ज़िंदगी और मौत के बीच झूल गया।
इकलौती संतान क्या करते माता-पिता को मानना पड़ा, मगर आरती के माता-पिता ने साफ लफ्जों में कह दिया कि तुम्हें काटकर ज़मीन में दफना देंगे, मगर वहां शादी नहीं करेंगे।
ना जाने क्यों आरती के माता-पिता ज़िद पर अड़े थे।
आरती," सागर मेरे घर में मेरी शादी की बातें चल रही हैं, लेकिन मैं तुम्हारे सिवाय किसी की नहीं हो सकती, अगर तुम्हारी नहीं तो किसी की नहीं"
सागर," मैं भी तुम्हारे बिना मर जाऊंगा"
"तो ले जाओ मुझे, मेरा दम घुटता है यहां"
"कुछ ना कुछ हमें ही करना होगा, तभी तुम्हारे मां -पापा मानेंगे"
"लेकिन क्या "?
"क्या तुम मेरा साथ दोगी"?
"हर पल मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम कहो तो मैं तुम्हारे साथ यमुना में छलांग लगाने के लिए तैयार हूं"
"नहीं हमें मरना नहीं जीकर दिखाना है"
और सागर ने आरती को प्लान बताया।
आरती," मैं तैयार हूं, जब तुम कहो"
एक दिन प्लान के मुताबिक आरती मार्केट के लिए एक सहेली के साथ जाती है और वहां से उसे सागर कार में बैठाकर चंडीगढ़ कोर्ट शादी के लिए ले जाता है।
छोटा सा शहर आरती का भाई अचानक सागर के साथ आरती को कार में जाते हुए देख लेता है और घर पर खबर करके उनका पीछा करते हैं, और रास्ते में ही दोनों पकड़े जाते हैं।
सागर को मार-मार कर अधमरा कर के वहां छोड़कर आरती को ले आते हैं और आनन-फानन में दस ही दिनों में आरती की शादी अम्बाला के किसी कपड़ा व्यापारी के बेटे से कर दी जाती है।
इधर सागर के घर पता चलता है और वो सागर को लाकर अस्पताल भर्ती करते हैं, सागर बहुत बुरी हालत में है, ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है। माता-पिता उसकी जिंदगी के लिए ईश्वर के दर पर माथा रगड़ रहे हैं।
आखिर ईश्वर ने सुनी।
डाक्टर," आपका बेटा अब खतरे से बाहर है, ना जाने किस की दुआओं का असर है, हम तो उम्मीद छोड़ चुके थे, लेकिन शायद आपकी दुआ ईश्वर ने कबूल कर ली, इसे दूसरा जन्म दिया है"
लगभग एक महीने बाद सागर ठीक होकर घर आया, अब तक उसके माता-पिता को भी आरती की कोई खबर नहीं थी, क्योंकि उन्हें तो हर पल अपने बेटे की फ़िक्र थी कि वो बच जाए। ऐसे में किसी दूसरे की खबर कहां होती है।
सागर भी चिंतित था कि आखिर आरती के साथ क्या व्यवहार किया होगा उसके मां -पापा ने।
एक दिन किसी अनजान नम्बर से मैसेज आया," मुझे माफ़ कर देना, मैं अपना वादा निभा ना सकी। बेशक मैं तन से किसी और के साथ हूं, मगर मन मेरा तुम्हारे पास है, मेरी रूह में सिर्फ तुम हो, तुम रहोगे, मुझे भूलना मत, हम मिलेंगे कभी ना कभी"
सागर समझ गया कि ये आरती का ही मैसेज है, अर्थात आरती की शादी हो चुकी है, इसलिए उसने आरती के मैसेज का जवाब देना उचित ना समझा।
मां -पापा ने भी सागर को बहुत समझाया कि आरती अब पराई अमानत है, उसका ख्याल दिलसे निकाल दे, और अपनी ज़िंदगी मे आगे बढ़े।
माता-पिता की खुशी के लिए सागर शादी कर लेता है। लेकिन दिल से आरती को नहीं निकाल पाया।
इधर आरती दिन-रात यही ,सोचती है कि किस तरह सागर से मिलन हो।
आखिर आरती ने रास्ता खोजा। धीरे-धीरे ससुराल में प्यार से रहने लगी, सबकी चहेती बन सबका विश्वास जीत लिया और एक दिन उसने खुद को बहुत सी चोटें पहुंचाई और मायके विडियो काल करे दिखाया कि इस तरह से मुझे मारा-पीटा जाता है। मायके से सब उसी समय पुलिस लेकर पहुंच गए।
ससुराल वालों ने बहुत समझाने की कोशिश की कि किसी ने कुछ नहीं कहा ये चोटें आरती ने खुद को खुद पहुंचाई है, लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं कि कोई खुद को क्यों चोट पहुंचाएगा।
पुलिस सबको ले जाती है, केस चलने पर डोमेस्टिक वायलेंस के खिलाफ प्रोटेक्शन आर्डर के सेक्शन 18 के अन्तर्गत उन्हें सज़ा हो गई।
आरती पर किसी को शक भी ना हुआ कि उसने कितनी बड़ी बिसात बिछाई है।
एक दिन आरती ने सागर को मैसेज किया," तुमसे मिलना चाहता हूं"
सागर समझ गया हनुमान मन्दिर आरती ही बुला सकती है। उसने मिलने के लिए हां कर दी।
सागर," ठीक है, आ जाऊंगी"?
आरती और सागर दोनों उसी मन्दिर में मिलते हैं, जो यमुना नदी के किनारे स्थित है, जहां हमेशा मिला करते थे।
" सागर मैं सब कुछ छोड़ आई हूं तुम्हारे लिए, मैं तुम्हारे सिवा किसी और की कैसे हो सकती हूं"
" लेकिन मेरी शादी हो चुकी है"
"क्या तुम दिल से उसे चाहते हो? अगर हां तो मैं तुम्हारे रास्ते में रोड़ा नहीं बनूंगी, अभी इसी समय मैं इस नदी में कूद कर अपनी जान दे दूंगी, मगर मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगी"
"हां तुमने सच कहा मैं उसे दिल से नहीं अपना सका, क्योंकि मेरे दिल पर एकाधिकार सिर्फ तुम्हारा ही रहा, तुम चली गई थी, माता- पिता की खुशी के लिए मुझे शादी करनी पड़ी"
दोनों ने उसी समय एक ठोस कदम उठाया, समाज के सब बंधनों को तोडते हुए दोनों इस शहर से दूर किसी अनजान जगह पर अपनी नई दुनिया बसाने के लिए चल दिए, अपने पहले प्यार की बाहों में दोनों ने एक छोटी सी नई दुनिया बसा ली, मगर किसी को मालूम नहीं कहां गए वो।

