परिवारिक शक्ति
परिवारिक शक्ति
सेठ बलराज तीन कोलड्रिंक फैक्ट्री के मालिक, घर-परिवार सब खुशहाल, बेटे रमेश ने बिजनेस अच्छे से संभाल लिया, मगर बिजनेस में इतना व्यस्त हैं कि घर-परिवार की तरफ झांकने की भी फुर्सत नहीं।
सेठ बलराज अक्सर पत्नी कमला के साथ तीर्थ यात्रा पर रहते हैं, रमेश जी की पत्नी सुनीता, अपनी पोती शाइनी के समय बिताती और खुश रहती हैं।
रमेश का बड़ा बेटा अक्षित भी बिजनेस में पापा की मदद करता है और बहू साक्षी ने घर संभाल रखा है, रमेश जी का एक और छोटा बेटा सागर, जो सबकी ऑंखों का तारा है, बहुत ही लाडला सबका, एक चीज़ की फरमाइश हो तो दो मिलती, पैसे की कमी नहीं, जितने मांगता पापा उससे कई गुना अधिक पकड़ा देते,
कहते, " बेटा रख लो, काम आएंगे, और तुम सेठ बलराज के पोते हो, कोई ये ना कह दे कि इसके पास कुछ नहीं"
सागर अभी 10वीं कक्षा में है, लेकिन इस अधिक लाड़-प्यार ने उसे बिगाड़ दिया। अक्सर रात को घर लेट आता, मां ने पूछा," सागर तुम रोज़ बहुत लेट आते हो, और सीधा अपने कमरे में सोने चले जाते हो, कुछ खाते भी नहीं"
तो बोला," माॅम हम सब दोस्त कम्बाइंड स्टडी करते हैं, आप चिंता ना करो मैं वहीं दोस्तों संग खा लेता हूं, और थक जाता हूं, बहुत पढ़ना होता है माॅम, इसलिए आते ही सो जाता हूं"
लेकिन एक दिन दादी को शक हुआ, " सुनीता बहू मुझे लगता है सागर किसी ग़लत संगत में पड़ गया है, तुम थोड़ा ध्यान रखो इसका"
सास की बात सुनकर सुनीता चौकन्नी हो गई और सागर पर नज़र रखने लगी, एक दिन उसने देखा इतने अधिक पैसे मिलने के बावजूद भी सागर चुपके से पापा के पर्स में से पैसे निकाल रहा था, क्योंकि रमेश की जेब में अनगिनत पैसे होते थे तो कितने भी निकल जाएं पता ना चलता।
सुनीता ने देखकर अनदेखा कर दिया, और सागर के एक दोस्त कुनाल (जिसका कभी-कभी सागर के घर आना -जाना होता था, मगर वो एक गरीब घर से था, इसलिए स्कूल के बाद वो हमेशा अपने पिता के काम में हाथ बंटाता, जिस कारण उसे कहीं ज्यादा दोस्तों के साथ घूमने-फिरने का समय ना मिलता) को कहा कि सागर का पीछा करे और पता लगाएं कि वो स्कूल के बाद रोज़ देर रात तक कहां और क्या करता है।
जब कुनाल ने असलियत बताई तो सुनकर सुनीता के होश उड़ गए। उसने पूरे परिवार को सारी बात बताई और सब चिंतित हो गए कि सागर को उस राह से कैसे वापस घर लाएं ?
सागर के दादा," रमेश याद है जब तुम आठवीं क्लास में थे, तब मेरे सामने भी यही समस्या मुंह बाए खड़ी थी, मैंने किस समझदारी से इस समस्या को सुलझाया था ?"
"पिता जी मैं समझ गया आप जो कहना चाहते हैं, सुनीता, पिता जी ने हमें रास्ता दिखा दिया है, अब बस दो दिन की दूरी, दो दिन के बाद पिता जी का जन्मदिन भी आ रहा है, बस उसी दिन इस समस्या कि समाधान भी हो जाएगा"
दो दिन बाद सागर सुबह स्कूल जाते हुए," हैप्पी बर्थडे दादू, फिर तो हम सारा दिन मिल नहीं पाएंगे" कहते हुए एक तोहफा दादू की तरफ बढ़ाता है।
अक्षित," नहीं सागर आज हम सब मिलकर दादू का बर्थडे मनाएंगे, आज तुम स्कूल से सीधा घर आ जाना, और हम भी फैक्ट्री से आज हाॅफ डे करेंगे, आज सब वर्कर को भी छुट्टी देंगे, क्यों पापा? आज वर्कर का हाॅफ डे रहेगा और साथ में उन्हें मिठाई और तोहफे भी देंगे"
"बिल्कुल शाम को मिलते हैं सब"
स्कूल के बाद, " यार अनुज आज मैं नहीं आऊंगा, मेरे दादू का बर्थडे है "
"लेकिन हमने जो तेरी ड्रग डोज़ पर पैसे खर्च किए वो कौन चुकाएगा ?"
"वो सब मैं दूंगा, और मेरी डोज़ दे दो मैं रात को ले लूंगा, और आज सबकी डोज़ मेरी तरफ से, मेरे दादू की बर्थडे पार्टी"
शाम को केक काटने के बाद, पापा, भाई और दादू को शराब के पैग हाथ में लिए देख सागर हैरान हो जाता है, क्योंकि किसी भी व्यसन का नाम भी इस घर में बोलना गुनाह है।
दो पैग पीने के बाद रमेश की तबीयत बहुत खराब हो गई और डाक्टर को बुलाया तो चैकअप करके डाक्टर ने कहा ये सब इस शराब की वजह से हुआ। अगर इन्हें बचाना चाहते हो तो इन्हें कभी शराब को छूने मत दो।
सागर पापा की हालत पर तड़प उठा और रोने लगा," पापा आप को पता है ये इतनी बुरी चीज़ है फिर आप ने क्यों पी, और साथ में दादू और भाई भी, आप के बिना हमारा क्या होगा, सोचा है आपने, वादा किजिए आज के बाद आप इसे हाथ भी नहीं लगाएंगे"
"सागर, बेटा जब रमेश छोटा था तो मुझे कहीं से पता चला कि इसे सिगरेट की लत लग गई है, एक दिन मैं सिगरेट ले आया और खाने की टेबल पर ही बैठकर पीने लगा और मुझे बहुत बुरी तरह से खांसी शुरू हो गई, तब रमेश ने मेरे हाथ से सिगरेट छीनकर फेंककर कहा, आप जानते इससे आपके फेफड़े खराब हो सकते हैं, तो मैंने पूछा और तुम्हारे ? वो समझ गया मैं क्या कहना चाहता था, उसने वादा किया कि वो कभी सिगरेट को हाथ नहीं लगाएगा, बस आज वही बात उसने दोहराई है"
सागर समझ गया, दादू क्या कहना चाहते हैं,उसने देखा भाई भी उसकी तरफ उम्मीद भरी नज़रों है देख रहा था। उसने अपनी गलती मान ली और जेब से ड्रग्स निकाल कर सबके सामने फेंककर कहा, ": मुझे क्षमा कर दें सब मैं भटक गया था, आज से मैं इसे कभी छुऊंगा"
अक्षित खुश होते हुए," तो डाक्टर अंकल अब तो सबके लिए पैग बनाता हूं, मां और साक्षी भी पिएंगे हमारे साथ"
"भैया ?
पापा के साथ इतना होने पर फिर पैग ?
साक्षी," बुद्धू शरबत है ये, और ये सब नाटक"
इतने में शाइनी कहती हैं, मम्मा , मेला पैद तो बनाया नहीं"
और उसकी भोली और तोतली बात पर सब ठहाका लगाकर हंसते हैं, और आज एक परिवार अपनी पारिवारिक शक्ति से अपने जिगर के टुकड़े को ड्रग्स की गर्त में जाने से वापस ले आया।
