बचपन की यादें
बचपन की यादें
हम चार बहनें और भाई एक, लेकिन सबसे बड़ा भाई, हम सब बहनें छोटी थी। घर में सब बच्चों में सबसे बड़ा अशोक भाई, इसलिए भाई का रौब भी कुछ ज्यादा था घर में। चाचा की शादी हुई तो चाची की भी दो केवल बेटियां उन्हें भी बेटे के रूप में अशोक भाई ही नज़र आता।
दो घरों का अकेला सपूत, नखरे तो होंगे ही ना, लेकिन एक बात थी राखी हो या भाई दूज उस दिन तो हम बहनों की चलती थी, हम जो भी कहें, भाई किसी बात के लिए मना नहीं करते,अगर हम सब अशोक भाई को घोड़ा बनने के लिए भी कह देते तो भाई एक पल ना लगाते, झट से हमारे लिए घोड़ा बन जाते थे।
वैसे तो भाई हर बात में रोक-टोक करते थे हमें, लेकिन रक्षाबंधन वाले दिन तो जो हम सब बहनों ने कहा दिया वो भाई के लिए पत्थर की लकीर होती थी।
भाई हमें हर बात पर गुस्सा करते। कभी कुछ और कभी कुछ।
जैसे," सहेली के घर नहीं जाना।"
"बाहर गली में क्यों खड़ी हो।"
"इतनी ज़ोर से क्यों हंसती हो।"
"इतना चिल्ला कर क्यों बोलते हो थोड़ा धीरे बोला करो।"
"घर के काम में ध्यान दिया करो।"इत्यादि, इत्यादि बहुत टोकते थे।
अब हमें इन बातों की समझ आती है कि वो क्यों टोकते थे तब। क्योंकि हम सब बहने अब बड़ी हो रही थी, और ज़माना कितना खराब है। ज़रा सी कोई बात हुई नहीं कि राई का पहाड़ बनाने को तैयार। उस पर ये भी कि कल को पराए घर जाना है कम से कम घर का काम तो आना चाहिए।
लेकिन तब इन बातों का मतलब समझ नहीं आता था। हमें बुरा लगता था।
एक बार हम सब बहनों ने मिल कर प्लान बनाया कि इस बार राखी पर भाई के मुंह से ये निकलवा कर रहेंगे कि अब से भाई हमें कभी नहीं डांटेंगे।हम सब को बर्फ का गोला अर्थात जिसे चुस्की भी कहा जाता है, बहुत पसंद था और कभी-कभी भाई भी हमारे साथ खा लिया करते थे।
उसमें लाल और हरा रंग ज़्यादातर इस्तेमाल होता था तब। आजकल तो और भी रंग आने लगे हैं।
हम बहनों ने उस साल राखी वाले दिन बर्फ के गोले घर पर ही बनाए और रंगदार चाशनी भी ।
सबको बना कर दिए और सबने खाएं। लेकिन जो भाई के लिए बनाया था, भाई ने जैसे ही मुंह में डाला झट से फेंक दिया।क्योंकि हमने उसमें लाल रंग की चाशनी बनाई थी लाल तीखी मिर्च से और हरे रंग की बनाई थी नीम के पत्तों से।नीम कड़वा और मिर्च तीखी। हम आगे-आगे और भाई पीछे-पीछे।
हमने कहा, " भाई आज हमें मारोगे क्या?"
तो भाई ने हमें छोड़ दिया, लेकिन उस समय जो भाई के चेहरे पे रंग आ-जा रहे थे, देखने वाले थे।
एक तो गोला कड़वा उसपर मिर्ची वाला।तो हमने उस दिन भाई से शर्त रखी कि या तो ये गोला खा लो, या हमें आज से डांटना छोड़ दो।हमें लगा था भाई कहेंगे कि वो हमें नहीं डांटेंगे, लेकिन ये तो उल्टा हो गया। भाई बोले," तुम मुझे गोला बना दो जितना मर्ज़ी तीखा और कडवा भी, लेकिन तुम्हें डांटना नहीं छोड़ूंगा।
हमने भी खूब तीखा गोला बना दिया सोचा भाई एक-दो चुस्की लेकर छोड़ देंगे। और फिर हमारे गोला बनाने के बाद भैया ने पूरा गोला खाया, लेकिन हमें ना डांटने की बात नहीं मानी।
लेकिन उसके बाद एक सप्ताह तक डाक्टर से दवाएं भी लेते रहे और कुछ ढंग से खा भी ना सकें।
तब हमें लगा कि हमने शायद बहुत ग़लत निर्णय ले लिया था।तब से भैया हर राखी पर रेड और ग्रीन रंग की कोई भी चीज़ नहीं खाते और ना ही हम इन रंगों की कोई चीज़ बनाते है।
लेकिन वो बचपन की बातें अक्सर चेहरे पर हंसी ला देती है, और शर्मिंदगी भी कि हमारी नादानी से भाई को कितनी तकलीफ़ हुई थी।
