वीराना जंगल
वीराना जंगल
अमरावती की पहाड़ियों के बीच बहुत ही घना एक वीराना जंगल था। उस वीराने जंगल में किसी ने फार्म हाउस बनवाया था। वह फार्म हाउस दिखने में बहुत आकर्षक था ।
दूर से देखने पर उस फार्म हाउस की सारी दीवारें सीधी दिखती थी, लेकिन जैसे-जैसे उसके पास जाते दीवार झुकी हुई नजर आने लगती थी, लगता था मानो अभी ऊपर आकर गिर पड़ेगी।
फार्म हाउस का मालिक गर्मियों की छुट्टियां बिताने के लिए ही वहां आता था। जब उसको झुकी दीवार के बारे में पता चला तो उसे विश्वास नहीं हुआ।
जब वह फार्म हाउस के नजदीक पहुंचा तब उसको महसूस हुआ कि सामने की दीवार उसके ऊपर गिर जाएगी, वह डरकर पीछे भाग गया।फिर उसने दूसरे दिन एक इंजीनियर कोबुलाया, इंजीनियर ने कहा शायद दीवार के नीचे दलदल है।इस वजह से दीवार झुकी हुई नजर आती है।
इंजीनियर की बात सुनकर वहां खड़े लोगों ने कहा:-
" इंजीनियर साहब दूर से तो यह दीवार सीधी नजर आती है।" तभी एक तांत्रिक उधर से गुजरा। फार्म हाउस के मालिक ने उसको रोक लिया। उसको भी वही समस्या बताई जो इंजीनियर को बताई थी ।
तांत्रिक ने कहा यह दीवार दैवीय शक्ति के कारण झुक जाती है। जंगल का देवता नहीं चाहता कि इस जंगल में कोई फार्म हाउस बनाए, अगर बनाना ही था तो जंगल के देवता की परमिशन लेनी थी। जंगल के देवता की परमिशन लेने के लिए मुझे तंत्र विद्या करनी होगी। मैं जो भी करूंगा उसके लिए तो चार हजार रुपए का खर्चा आएगा।
यह सब बातें वहां खड़ा इंजीनियर ध्यान से सुन रहा था।उस इंजीनियर ने कहा "यह सब अंधविश्वास है। मैं इस दीवार को कल गिराकर फिर नए तरीके से इसका निर्माण कराऊंगा।"
तांत्रिक ने तपाक से कहा:- "कोई कुछ नहीं कर सकता।लेकिन मैं बहुत कुछ कर सकता हूं।" यह कहकर तांत्रिक वहां से चला गया।
दूसरे दिन इंजीनियर ने दीवार को गिराकर फिर से नई दीवार बनाई। जैसे ही दीवार बनकर तैयार हुई वह 2 फुट नीचे जमीन में धंस गई। जिस कारण पूरे फार्म हाउस में दरार आ गई। यह दृश्य देखकर फार्म हाउस का मालिक वहीं पर सिर पीट-पीट कर रोने लगा।
उसने वहां काम कर रहे एक मजदूर से कहा, जल्दी दौड़कर जाओ और उस तांत्रिक को ढूंढ कर लाओ।
कुछ देर बाद वह मजदूर उस तांत्रिक को पास के गांव से लेकर आया। तांत्रिक ने तंत्र विधि प्रारंभ की उसने जमीन पर हवन कुंड जैसा एक यंत्र बनाया और सामग्री को प्रज्वलित किया। उसकी तंत्र विधि के कारण चारों तरफ वातावरण में धुआं ही धुआं छा गया।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – महामंत्र का उच्चारण जोर जोर से करने लगा। यह सब देखने के लिए उस जगह पर बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई। लगभग 1 घंटे बाद वहां की जमीन में कंपन हुआ। यह देख कर सभी डर गए और वहां से भाग खड़े हुए। तांत्रिक भी छलांग लगाते हुए दूर भागा। थोड़ी देर बाद उस दीवार के आधार तले जमीन फटने लगी और 2 फुट नीचे धंस गई।
तभी गांव से एक बुजुर्ग ने आकर कहा, "अरे भाई यहां पर पहले तालाब था। उस तालाब को ठेकेदार ने समतल करने के लिए बलुई मिट्टी का प्रयोग किया था और इस समय बारिश का मौसम है। बारिश के मौसम में बलुई मिट्टी नीचे को धंसती है। इसलिए 1- 2 बारिश होने के बाद यहां की मिट्टी मजबूती पकड़ लेगी। तभी इस मकान की दीवारें सीधी खड़ी होगी।" यह बात सभी के समझ में आई।और वहां खड़ी जनता मुस्कुराई।।
इंजीनियर को अब पूरी बात समझ में आ गई थी लेकिन तांत्रिक का अता पता नहीं था वह दुम दबाकर भाग गया। अतः जानकारी के अभाव में किसी कार्य में सफलता बहुत देर में मिलती है। कहानी डरावनी जरूर है, लेकिन सीख मिलती है कि:- "विश्वास करो मगर अंधविश्वास नहीं"
