विदुषी अपाला
विदुषी अपाला
अत्रि ऋषि और अनसुइया की संतान थी।अत्रि ऋषि सप्तऋषियों में से एक थे।उनके पुत्र दत्तात्रेय,दुर्वासा,और चंद्रमा,ये क्रमशः विष्णु,शिव,और ब्रह्मा के अंश थे।
ऋषि अत्रि के ब्रह्मवादिनी नाम की सुंदर,सुशील कन्या भी थी।आश्रम के सुरम्य वातावरण में चहकती,तितलियों की तरह हर ओर दौड़ती ,उसे देख ऋषि और अनसुइया का वात्सल्य प्रेम हिलोरें मारता ।
तीनों पुत्र तो आश्रम से शिक्षा ग्रहण कर तप करने चले गए ,थे एक मात्र सहारा थी ,ब्रह्मवादिनी अपाला।
वह सुंदरता के साथ तीव्र मस्तिष्क की स्वामिनी भी थी।ऋषि जब वेद,ऋचाओं की शिक्षा ,अपने विद्यार्थियों को देते तो अपाला को सब कंठस्थ हो जाता।वह जब अपनी शंकाओं को पूछने ,ऋषि के पास जाती तो ,वे बलिहारी जाते।
लेकिन जैसे जैसे अपाला बड़ी हो रही थी,उसके शरीर पर सफेद दाग दृष्टिगोचर होने लगे।
दूर दूर से वैद्य ,ऋषि आए उन्होंने इलाज किया,लेकिन सब के सब असफल।
ऋषि बहुत दुखी रहने लगे उन्हें पठन , पाठन में रस नहीं आ रहा था।
अपाला पिता को दुखी देख ,दुखी हो जाती,और पिता को ढांढस बंधाती।
पिता से कहती _ बाबा ,औषधियां तो चल ही रही हैं,मैं ठीक हो जाऊंगी,आप परेशान न हो।
युवावस्था में कदम रखते ,वह और भी निखर गई थी,गौर वर्ण में उसकी शारीरिक अक्षमता छुप रही थी।
एक दिन , कृशाश्व नाम के ऋषि का आश्रम में आगमन हुआ।उनकी नजर जब अपाला पर पड़ी ,तो वे उसकी ओर आकर्षित हो गए।कहते हैं ,प्रथम दृष्टि में व्यक्ति किसी के बाहरी सौंदर्य को देखता है।ऋषि कृशाश्व ने ऋषि अत्रि से अपाला का हाथ मांगा।खुशी खुशी ऋषि और माता अनुसूइया ने कन्यादान किया।अब सब खुश थे।
अपाला ऋषि की पत्नी बन ऋषि कृशाश्व के साथ चली गई।धीरे धीरे वो दाग उम्र के साथ ज्यादा उभरने लगे,तो ऋषि के मन में प्रेम की जगह अब घृणा ने ले लिया।वो उससे दूर दूर रहने लगे।
अपाला से इस स्थिति को भांप लिया,और अपने स्वामी से स्वीकृति के ,वापस अपने घर लौट आई।
पिता ,वृद्ध हो चुके थे ,उन्होंने उसे गले लगाया और नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की बात की।
उन्होंने ,आहार,प्रत्याहार से तप करने का सुझाव दिया।अपाला विदुषी थी ,उसने तप करके इंद्र को प्रसन्न किया।
इंद्र उसकी तपस्या से प्रकट हुए।उन्हें सुरापान पसंद है ,इसके लिए अपाला ने सोम बेल ढूंढ निकाला ,लेकिन उसका रस कैसे निकले ,इसका कोई उपाय न देख ,उसने अपने मुंह से ही रस निकालना शुरू किया।उसकी निश्छल भक्ति देख ,इंद्र प्रसन्न हुए ,और उन्होंने वर मांगने को कहा।
अपाला ने सुलोम (जिसके रोम रोम सुंदर हों ) करने का वर मांगा।
इंद्र ने तथास्तु कहा,अपनी विद्या का प्रयोग किया,और तीन बार उसकी त्वचा का शोधन किया।
जिसके बाद अपाला पूर्णतः दोषमुक्त,रोगमुक्त हो गई।
ऋषि कृशाश्व को अपनी भूल का पछतावा था,वो समय के साथ अपाला के आंतरिक सौंदर्य को जान गए थे।इसलिए उसके जाने के बाद ,वो दुखी थे ,और वापस लेने के लिए ऋषि अत्रि के आश्रम पहुंचे।वहां अपाला को रोगमुक्त देख उन्हें अपार हर्ष हुआ।
ऋषि कृशाश्व और अपाला का पुनः मिलन हुआ।