विचार के बीज
विचार के बीज
"महिलाओं की कामयाबी का जश्न मनाते हैं जिन्होंने हर दायरो को तोड़कर साबित कर दिया है कि महिलाएं पुरुषों की तरह ही सक्षम और प्रतिभाशाली हैं" यह पंक्तियां पढ़कर वह हँस दी और उसके अंदर की औरत भी मुँह बनाकर मुस्कुराते हुए सवाल करने लगी, 'पुरुषों की तरह सक्षम और प्रतिभाशाली' क्या मजाक है करते है लोग। महिलाओं को यह प्रमाणित करना कि वह पुरुषों की तरह सक्षम और प्रतिभाशाली है। क्या किसी पुरुष के लिए ऐसा कहा जाता है कि वह महिला की तरह सक्षम और प्रतिभाशाली है ? क्योंकि वह हो ही नहीं सकता। महिलाओं की तरह सक्षम और प्रतिभाशाली होना पुरुषों के बस की बात नहीं। यह बात बरसों पहले उससे उसकी शिक्षिका मनोरमा मिस ने कही थी।
उसे आज भी याद है, उस दिन वह स्कूल में अनमनी सी बैठी थी। सुबह ही उसे दादी ने डांटा था क्योंकि वह छोटे भाई को खिलाने की जगह पढ़ाई कर रही थी। जब उसने दादी से यही बात बोली तो दादी ने चार बातें मम्मी को सुना दी और मम्मी ने गुस्से में उसे कूट दिया। उसका मन तो था कि वह भी गुस्से में छोटे भाई राज को कूट दे। पर वह तो कितना छोटा और प्यारा है। वह तो कुछ समझता ही नहीं है। कैसे उसे देखते ही छोटे-छोटे हाथ पैर फटकार कर किलकारी मारता है। कहने को तो उसकी दो बड़ी बहने और है। वह तीसरे नंबर की है तो सब तेतरी तेतरी कहते हैं और उसे बहुत गुस्सा आता है। हाँ तो छोटा भाई राज भी उन दो बहनों के पास नहीं जाता है। उसको भी इसके साथ ही खेलना होता है।
तो जब शिक्षिका ने पूछा कि वह क्यों अनमनी है ? आज कक्षा में सवालों के जवाब भी क्यों नहीं दे रही है ? तो उनके प्यार भरे शब्दों के कारण उसकी रुलाई फूट पड़ी। शिक्षिका प्यार से उसे संभालते हुए बोली, "क्या हुआ बेटा ?" तब से खाने के छुट्टी की घंटी बज गयी। शिक्षिका उसको लेकर स्टाफ रूम में आयीं और पूछा तो उसने सब बता दिया। साथ ही रोते-रोते कहा, "काश मैं भी लड़का होती ! तो मैं भी सब का प्यार पाती। सब मेरी देखभाल करते, जैसे राज की करते है।"
तब मनोरमा मिस बोली, "अधिक देखभाल से पौधों की जड़े कमजोर हो जाती हैं। जो पौधे अपने बलबूते पर पनपते हैं वह ज्यादा मजबूत होते हैं। उसी तरह हम औरतें, लड़कियां बिना देखभाल के बड़ी होती हैं इसीलिए ज्यादा मजबूत होती हैं। इसीलिए तो हमें दो घरों को संभालने की जिम्मेदारी मिलती है। बहू बनकर ससुराल और बेटी बनकर मायका दोनों को महकाना होता है। इसीलिए कभी ऐसा मत सोचना कि लड़के ज्यादा सक्षम और प्रतिभाशाली होते हैं। हम लड़कियां ज्यादा सक्षम और प्रतिभाशाली होते हैं। क्योंकि हम विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ते है, आगे बढ़ने का हौसला रखते हैं। तुम्हें मालूम है मैं भी अपने घर की चौथी लड़की हूँ। तुम तो फिर भी नसीब वाली हो, तुम्हारी पीठ पर भाई आया है। मेरे बाद तो एक और बहन फिर एक और बहन फिर एक ....। मैंने तो ऐसा बहुत कुछ देखा है और सुना है जो मैं कह भी नहीं सकती। वह भी एक महिला के मुँह से, एक नहीं घर की महिलाओं के मुँह से। मैंने अपनी दादी द्वारा अपनी बहनों को मारते देखा है। बहुत बुरी परिस्थिति, समझ नहीं पाती थी अपने जिंदा होने की खुशी मनाऊँ या बहनों की मौत का मातम। कभी-कभी तो लगता वो बहने जो मर गयी वह बेहतर थी। मेरी तो जिंदगी भी मौत से बदतर थी।
तब मेरी शिक्षिका, नाम तो नहीं जानती हूँ क्योंकि तब नाम से बुलाने का, नाम जानने का चलन ही नहीं था। हम सब उन्हें बड़ी बहन जी कहते थे, ने मुझे प्रेरित किया था पढने के लिए, कुछ बनने के लिए और जो व्यवहार मुझे खराब लग रहा है वैसा व्यवहार अपनी बेटियों के साथ ना करने के लिए।
आज तुम मेरी जगह पर हो। वास्तव में सोचना कि इन लड़कों के मन में यह विचार भरता कौन है कि यह हमसे ज्यादा सक्षम है ? हम औरतें ही ना, तो बस याद रखना जब तुम्हारी बेटी हो या बेटा हो तो उसे बिना भेदभाव के पालना। ना तो बेटे को बोलना कि तू मेरा सहारा है ना ही बेटी को बोलना कि तू कमजोर है आज हम दो हैं, पर धीरे-धीरे यही सोच फैलाएंगे तो समाज जरूर बदलेगा।
पढ़ने में बहुत अच्छी होने के बावजूद भी मैंने डॉक्टर या इंजीनियर नहीं शिक्षिका बनने का चुनाव किया क्योंकि मुझे अपनी मनोरमा मिस और उनकी शिक्षिका बड़ी बहन जी के संदेश के बीज बहुत सारी बच्चियों और बच्चो में रोपने थे। जिससे कभी कोई ना सोच सके कि सक्षम महिलाएं पुरुषों जितनी सक्षम होती है। महिलाएं निस्संदेह पुरुषों से अधिक सक्षम होती हैं। अगर उनके ऊपर नव निर्माण की जिम्मेदारी ना हो तो उनकी शारीरिक क्षमता भी पुरुषों से अधिक होती है। वह कोमलांगी होती है मालूम है क्यों ?
उसने ना में सिर हिलाया।
क्योंकि वह नव निर्माण की जिम्मेदारी वहन करती हैं। क्योंकि कोमल और लचीली वस्तुएं ज्यादा मजबूत होती है। महिलाएं चूकती भी इसी जगह है जब वह अपनी इस जिम्मेदारी को सही ढंग से नहीं उठा पाती हैं। उनके ऊपर नवनिर्माण के साथ व्यक्तित्व निर्माण की जिम्मेदारी भी है।"
इन के साथ ही वह उन यादों में डूब गई कि कैसे रक्षाबंधन के दिन से उन्होनें एक नई शुरुआत की थी। उसके स्कूल में रक्षाबंधन के दिन सभी लड़कियाँ लड़कों को राखी बाँधती थी। थोड़े विरोध के बाद सबको सहमत कराके उन्होनें रक्षाबंधन के दिन सभी लड़को से भी लड़कियों को राखी बंधवाई थी। यह कहकर कर कि रक्षा का दायित्व सिर्फ एक का नही है। दोनों को ही सक्षम होने और एक दूसरे की रक्षा का दायित्व निभाना पड़ेगा। इससे लड़कियों में यह भावना नही आएगी कि वह कमजोर और लड़कों पर आश्रित है। वही लड़कियों को राखी बांधने से लड़कों में यह भावना नही आएगी कि वह सर्वशक्तिमान है। उनको यह एहसास रहेगा कि लड़कियां भी उनकी रक्षा करने में सक्षम है।
परिवर्तन को समाज एक सिरे से नकार देता है। पता नही आज उनके स्कूल में यह परंपरा जारी है या नही। यहाँ तो इतनी बार कहने पर भी मैनेजमेंट रक्षाबंधन का त्योहार मनाने को तैयार ही नही हुआ, यह बोल कर कि हम किसी एक धर्म विशेष या समुदाय के त्योहार स्कूल में नही मना सकते।
उसने पेन उठाया और लिखने में जुट गई यह बात सबको मालूम होनी चाहिए। यह बीज अब खेतों में नहीं मतलब सिर्फ कक्षा में नहीं कहानी के माध्यम से हर एक के दिमाग में डालने पड़ेंगे, की तुलनात्मकता बंद होनी चाहिए। दोनों ही अपनी जगह पर सक्षम और प्रतिभाशाली हैं। ना तो कोई किसी से कम है ना कोई किसी से अधिक। जिस प्रकार शिव और शक्ति दोनों के बगैर ब्रह्मांड की कल्पना नहीं कर सकते। उसी प्रकार स्त्री और पुरुष दोनों के बगैर संसार की कल्पना भी नहीं कर सकते। इसीलिए संतुलन आवश्यक है।