वह टेलिफ़ोन की घंटी
वह टेलिफ़ोन की घंटी
कहते हैं कि परलोक सिधार कर भी अपने प्रियजनों की आत्मा हमें कभी छोड़ कर नहीं जाती। वह किसी न किसी रूप में हम से जुड़ी रहती हैं।
साक्षी के जीवन का सर्वाधिक दुःखद क्षण था जब दिनांक सन् 2007 के अंत में उसकी प्यारी माँ उसे छोड़ कर स्वर्ग सिधार गई थीं। पापा इस असहनीय दुख को बर्दाश्त नहीं कर सके और माँ के स्वर्गवास के साढ़े चार माह पश्चात् अप्रैल 2008 को वे भी सभी को छोड़ गए। साक्षी के लिए पांच माह के अंतराल में अपने प्रिय माता-पिता को खो देना दुःख का पहाड़ टूटने के समान था।
दो माह पश्चात् 16 जुलाई को साक्षी का जन्मदिन था। वह सुबह से बहुत उदास थी। उसके पति समर व बच्चे भरसक कोशिश कर रहे थे कि वह आज के दिन खुश रहे परन्तु उसे सवेरे से पापा-मम्मी की याद करके बारम्बार रोना आ रहा था।
इसका कारण यह था कि प्रत्येक वर्ष बधाई व आशीष का सबसे पहला फोन उन्हीं का आता था। यही बात बार-बार याद आ रही थी।
करीब साढ़े ग्यारह बजे का समय रहा होगा। अकस्मात् लैण्ड लाइन टेलीफ़ोन पर एक रिंग बज उठी। यह टेलिफ़ोन की रिंग नहीं बल्कि वह किसी मंदिर में पूजा के समय बजने वाली घंटी की लयबद्ध मधुर ध्वनि थी जो कि प्रतिदिन बजने वाली सामान्य रिंग टोन से अलग आवाज थी।
सभी परिवार वाले स्तब्ध थे कि यह क्या है ? एकाएक साक्षी से पति समर बोल उठे–“स्वर्ग से पापा का फोन है” उसने तुरंत दौड़ कर फोन उठाया। दूसरी तरफ शांत नीरव सन्नाटा था।
हैलो-हैलो करती साक्षी रो पड़ी।
समर उसे धैर्य बंधा रहे थे।
थोड़ी देर बाद वे बोले – – – “मम्मी का फोन नहीं आया।”
सुनकर आश्चर्य होगा कि उनका वाक्य पूरा होन
े से पहले ही हूबहू वैसी ही मंदिर की मधुर घंटी सी सुरीली रिंग फिर से फोन पर बजे उठी। अबकी बार समर ने फोन उठाया। उन्हें भी दूसरी ओर सन्नाटा ही मिला। पुनः एक बार सभी हतप्रभ।
यकीन कीजिए उस दिन उन दोनों काॅल्स के अतिरिक्त उन के पहले या बाद में किसी भी इनकमिंग काॅल पर वह मंदिर की घंटी वाली रिंग टोन नहीं थी।उस दिन जन्मदिन की बधाई के अनेकों फोन आए पर सभी की वह विभाग द्वारा निर्धारित सामान्य रिंग टोन थी। समर व साक्षी ने रिश्तेदारों व परिचितों से पता किया। सभी ने उस अवधि में उन्हें काॅल करने की बात से इंकार कर दिया।
चूँकि साक्षी स्वयं बी एस एन एल कार्यालय में पदस्थापित थी अतः अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु उसने दूसरे दिन इनकमिंग कॉल्स की सूची निकलवाई। उसे यह जानकर हैरानी हुई कि लिस्ट में उन दोनों काॅल्स वाली अवधि में उसके फोन पर कोई इनकमिंग कॉल आना ही नहीं दर्शाया जा रहा था।
वह भी विभागीय होने की वजह से जानती थी कि विभाग में किसी भी फोन के लिए मंदिर की घंटी वाली वह रिंग टोन नहीं प्रदान की जाती है।
उस दिन से आज तक न समर व साक्षी ने, न ही उनके परिवार,न परिचितों, न विभाग वालों ने वह रिंग टोन किसी बेसिक फोन पर सुनी।
यह सिद्ध हो गया था कि साक्षी के पूज्य माता-पिता की पुनीत आत्माएँ अपनी लाड़ली को आशीष देने आई थीं। यह अविश्वसनीय किन्तु एक प्यारा-सा सत्य साक्षी ने अपनी प्रिय स्मृति और एक अद्वितीय उपहार रूपी धरोहर बना कर सदा सदा के लिए सहेज लिया।
एक अद्भुत व अप्रतिम ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं थी यह सुखद अनुभूति। यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर कहीं न कहीं विद्यमान है।