वह लड़की

वह लड़की

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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का प्लेट फार्म नं. आठ पर बीस वर्षीय हैण्डसम आरव ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था। दिसम्बर की शाम, सर्दी अपने शबाब पर थी। शाम के सात बजे ही सर्दी और कोहे के कारण प्लेट फार्म पर सन्नाटा पसरा था। कोहरे के कारण ट्रेन एक एक घंटा करके लेट होती जा रही थी। चूंकि वह इंटरव्यू के लिये जा रहा था, इसलिये वह अपनी नजरे अपने लैपटाप पर गड़ाये हुये था। दीन दुनिया से दूर वह अपनी तैयारी में लगा हुआ था।

उसी समय एक 19-20 वर्ष की स्मार्ट खूबसूरत सी लड़की, जो नीली जींस और लाल स्वेटर में बहुत आकर्षक लग रही थी, तेजी से आई और उनके बगल में बैठ गई। वह थोड़ा सा खिसक कर अपने में सिमट कर उन्होंने लड़की से दूरी बना ली।

तभी वह खनकती हुई। आवाज में बोली,'हेलो यार, तुम तो मुझे पहचान भी नहीं रहे हो ? तुम मुझे कैसे भूल सकते हो ? क्या नाम था तुम्हारा ? एकदम से जुबान पर नहीं आ रहा है। ऐसे टुकुर टुकुर करके क्या मुझे देख रहे हो। वह तेजी से उसके पैरों पर धौल जमा कर उसे गहरी नजरों से देख रही थी।

वह सकपकाया सा बोला, आरव

अरे हां ,याद नहीं, मैं लंच में रोज तुम्हारा टिफिन चट कर जाती थी।

अभी भी वह अपनी याददाश्त पर जोर डाल रहा था और उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था, लेकिन नतो उसकी शक्ल याद आ रही थी और न ही उसका नाम, परंतु एक सुंदर लड़की की बेतकल्लुफ बातों से वहवंचित नहीं होना चाह रहा था। इसलिये ह चुपचाप उसे निहार रहा था।

उसने आवेश में उसका हाथ प कड़ लिया था। तुम्हें मिस ज्वेल ने इसी हाथ में तो स्टिक मारी थी।

वह पुनः अपनी याददाश्त खंगाल कर मिस ज्वेल, उस लड़की का चेहरा, स्टिक की मार, कुछ भी याद र पाने में सफल नहीं हो पा रहा था।

कुछ याद आया कि नहीं , अपुन दोनों मिसेज विलियम के पीरियड में कितना मजा किया करते थे ,जब हम दोनों पीछे की बेंच पर बैठ कर कभी समोसा तो कभी टिफिन खाया करते थे।

मिसेज विलियम बीच बीच में अपनी स्टिक पटक कर कहतीं,' keep quiet '

"अच्छा ये बताओ, आंटी मुझे कभी याद करती हैं कि नहीं ?''

"उनके बनाये आलू के पराठें तो याद करके मुझे आज भी मुंह में पानी आ जाता है। कितना टेस्टी बनाती थीं ,मैं पूरा चट कर जाती थी, तुम चिल्लाते ही रह जाते थे।''

वह उसकी जिंदादिली देख कर मंत्रमुग्ध होकर उसके साथ दोस्ती का हाथ बढाना चाह रहा था कि अचानक धड़ धड़ करती हुई ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी हो गई थी। वह धीरे धीरे फुसफुसाकर बोली ,''एक्सक्यूज मी, मेरे पीछे तीन चार शोहदे पड़े हुये थे,उनसे बचने के लिये मैंने यह ड्रामा किया था। आपसे इस तरह बातें करते देख वह शोहदे ठिठक कर खड़े हो गये थे।

एक्सक्यूज मी, बाय सी यू कहती हुई ट्रेन के अंदर चली गई।

उसकी आंखों के सामने से वह लड़की अपने हाथ हिलाती हुई चली गई थी, लेकिन वह सुंदर स्मार्ट लड़की की नीली जींस और लाल स्वेटर छोड़ गई ती अपनी अमिट छाप..

काश उस दिन वह उसका नाम या फोन नंबर पूछ लेता..

आज भी जब कभी दिल्ली स्टेशन के प्लेटफार्म पर वह ट्रेन का इंतजार करता है तो उसकी निगाहें उस लड़की को चारों ओर तलाशने लगती हैं।


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