वह खनकती सी हँसी
वह खनकती सी हँसी
मेरी वह पुरानी सहेली थी। आज मैंने उसे फ़ोन किया था। हमारे पास बातों का स्टॉक जमा हो गया था क्योंकि काफी दिनों के बाद हमारी बातचीत हो रही थी। उसने आने का न्यौता दिया और संडे वाली शाम मै उसके घर पहुँच भी गयी।
वह अपना घर मुझे दिखा रही थी.....
उसका वह उत्साह... और उसकी आवाज़ में हँसी...
सब कुछ मेरे लिए नया और अलग था......
वह घूम घूम कर अपना घर मुझे दिखा रही थी...साथ में सजावट की छोटी छोटी चीजें भी ...
आज उसका घर एक अलग ही रौशनी से नहाया हुआ था और उसकी चमक उसके चेहरें पर नुमायां हो रही थी...
बहुत दिनों के बाद मुझे उसकी बातों में हँसी नज़र आ रही थी। उसका यूँ हँसना और बातें करना मुझे अच्छा लग रहा था। उस हँसी में सिर्फ़ उसकी हँसी थी। वह बात बेबात हँस रही थी। बीइंग फ्रेंड मै जानती हूँ की उसे यह हँसी यूँही नही मिली थी। उस आज़ादी की भारी क़ीमत उसे चुकानी पड़ी थी।
हाँ, वह आज़ाद थी !!! वह आज़ाद थी उन पुराने और बोझिल रिश्तों से... उन सारी यादों से... अनचाही जिम्मेदारियों से.... आज़ादी किसे अच्छी नहीं लगती भला? मुझे उसका उस आज़ादी से हँसना अच्छा लग रहा था। पहले पहल हमारी बातचीत में उसके वे बोझिल रिश्तें और उनकी यादें ही हुआ करती थी साथ ही आवाज़ में कभी कम्पन तो कभी कोरों से भीगी गीली आँखे... लेकिन आज उसकी आवाज़ में न कोई कम्पन था और न ही कोरों से भीगी हुई आँखें ही....
मैंने भी उसकी उन पुरानी यादों को झटक दिया और उसकी बेबाक बातों और उसकी खनकती हँसी में शामिल हो गयी....