Archana Saxena

Abstract

4.5  

Archana Saxena

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वह ईमेल

वह ईमेल

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छः बजे सुबह अलार्म घनघना उठा तो रितेश ने हाथ बढ़ा कर उसे बंद कर दिया और पुनः सोने की कोशिश करने लगा

"जब इतनी जल्दी उठना नहीं होता तो अलार्म क्यों लगा देते हो रोज ? मेरी भी नींद खराब कर देते हो।"

बगल में सोई पत्नी राखी अलसाई आवाज में बोली।

 उन दोनों की सुबह का आरंभ प्रायः ऐसे ही होता था। राखी सदा कहती जब सात बजे से पहले बिस्तर नहीं छोड़ते तो छह बजे अलार्म लगाने का मतलब क्या है ?

एक ही बेटा था इन दोनों का, वह भी बारहवीं के बाद पिछले साल हॉस्टल चला गया था। जब तक वह स्कूल में रहा राखी सुबह साढ़े पाँच बजे से उठ कर घर के कामों में लग जाती थी। साढ़े सात बजे उसे स्कूल बस जो पकड़नी होती थी। उसका टिफिन तैयार करना, उसे नाश्ते में उसका मनपसंद कुछ बना कर देना, सब राखी को ही तो करना पड़ता था। परंतु अब उसे छह बजे अलार्म का बजना नहीं भाता था। रितेश को तो नौ बजे काम पर जाना होता था तो छह बजे का अलार्म न जाने क्यों लगा देता था जबकि सात से पहले स्वयं भी बिस्तर नहीं छोड़ता था वह। 

पर इसकी भी एक वजह थी, दरअसल रोज रात को यह सोच कर सोता कि सुबह छह बजे उठकर सात बजे तक व्यायाम करेगा वह, ताकि दिन दिन बढ़ता पेट कुछ तो कम हो जाए, पर सुबह की मीठी नींद और आलस्य के चलते व्यायाम की इच्छा नित्य दम तोड़ देती थी और वह पुनः सो जाता।

अचानक मोबाइल फोन ने कोई मैसेज आने का संकेत दिया तो आधी आँखें खोलकर रितेश ने फोन उठा लिया। व्हाट्सएप पर कुछ गुडमॉर्निंग मैसेज आए हुए थे, फोन वापस रखने को ही था कि कोई ईमेल प्राप्त होने का संकेत भी नजर आया। अधखुली आँखों से रितेश ने ईमेल को भी खोल कर देख लिया और अचानक आँखें पूरी फैला कर उछल कर बिस्तर पर बैठ गया।

"अब क्या हुआ ?"

राखी ने आँखें खोलकर पूछा।

"उठो राखी, कुछ दिखाना है।"

"सब ठीक तो है ?"

राखी ने उठकर बैठते हुए पूछा।

"तुम्हें याद है न मैंने महीने भर पहले अपनी कहानी 'यादों का सिलसिला' देविका साहित्यिक प्रकाशन को भेजी थी ?"

"वो कहानी तो तुमने न जाने कितने प्रकाशन समूहों में भेजी थी रितेश, किस किसको याद रखूँगी ? किसी बड़े प्रकाशक ने उसे छापने से तक मना कर दिया था। तुमसे हमेशा कहती हूँ कि शौकिया लेखन तक ठीक है, पर इस लेखन से अधिक उम्मीदें मत लगाओ, अच्छे अच्छे लिखने वालों को कोई नहीं पूछता फिर तुम तो... इसकी वजह से तुम अपने काम पर भी ठीक से ध्यान नहीं देते हो। नौकरी चली गई तो हम सब कठिनाई में पड़ जाएँगे। अभी तो रिशू की तीन साल की पढ़ाई बाकी है। इतनी भारी फीस भरनी पड़ती है।"

"अरे कभी तो मेरी पूरी बात शांति से सुन लिया करो, बिना कुछ ठीक से सुने भाषण शुरू हो जाता है तुम्हारा।"

रितेश ने हँसते हुए कहा तो राखी को आश्चर्य हुआ, हमेशा की तरह चिढ़ा नहीं था वह बल्कि खुश दिखाई दे रहा था।

"बोलो क्या कहना चाहते हो ? कहानी कहीं सिलेक्ट हो गई क्या ? खुश लग रहे हो।"

"हाँ ऐसा ही कुछ है, न केवल सिलेक्ट हुई है बल्कि मेरी कहानी पर फिल्म बनाने का ऑफर आया है।"

राखी उछल पड़ी। 

"क्या ? किसने दिया ऑफर ? सच कह रहे हो ? किसी फ्रॉड के चक्कर में मत फँस जाना कहीं।"

"अरे नहीं जेनुइन मेल लगती है, देविका प्रकाशन से ही है। लिखा है कि हमारे प्रकाशन समूह में कुछ फिल्म लाइन से जुड़े लोग भी हैं, जोकि नई कहानियों की तलाश में प्रकाशित होने आईं कहानियाँ पढ़ते हैं। आपकी कहानी में बहुत नयापन है। फिल्ममेकर राघवेंद्र तक आपकी कहानी पहुँची है और वह अपनी अगली फिल्म के लिए इसे खरीदना चाहते हैं। सारी डिटेल्स मेल में हैं, और यदि आप सहमत हैं तो टर्म्स एंड कंडीशन डिस्कस किए जाँएगे। आपको आपकी इस बेहतरीन कहानी के लिए न केवल उचित मूल्य, बल्कि आगे भी प्राथमिकता दी जाएगी कि नई कहानी आप सबसे पहले हम तक पहुँचाएँ। कहानी पसन्द आने पर आपको वरीयता दी जाएगी।"

"ओह रितेश, बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा मुझे, कहीं कोई सुन्दर सपना तो नहीं देख रही हूँ मैं ?"

प्रसन्नता के अतिरेक में राखी स्वयं पर काबू नहीं रख पा रही थी।

"सपना नहीं है राखी, ये तो ऐसा सत्य है जिसका सपना भी देखने की हिम्मत नहीं की मैंने कभी। मैं तो बस किसी अच्छे प्रकाशक से अपनी कहानी की किताब प्रकाशित कराना चाहता था, पर मेरी कहानी पर फिल्म भी बन सकती है, ऐसा तो मैंने कभी नहीं सोचा। अब हमारी जिंदगी पूरी तरह बदल जाएगी राखी। तुम सोच भी नहीं सकती मैं कितना खुश हूँ। यह सुबह मेरे लिए कितनी बड़ी सौगात लेकर आई है।"

"सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, हम सबके लिए, हमारे पूरे परिवार के लिए। मुझे तुम्हारी योग्यता पर पूरा भरोसा था, मैं जानती थी कि कभी न कभी कोई कद्रदान जरूर मिलेगा जो तुम्हारे हुनर को पहचान देगा। तुम्हारा काम तुम्हें नेम फेम पैसा सब दिलाएगा एकदिन।"

"अच्छा ? सच में तुम्हें ऐसा लगता था ? कुछ देर पहले तो तुम कुछ और ही राग अलाप रही थीं ? काम पर ध्यान दो,वगैरह वगैरह। इतनी जल्दी सुर बदल लिए ?"

रितेश ने हँसते हुए उसका मजाक उड़ाया।

"वो तो, बस ऐसे ही.... तुम्हें प्रेरणा देने के लिए था। मैं तो ऐसा इसलिए कहती थी कि मेरी बातों से चिढ़कर तुम खुद को सिद्ध करने के लिए और अच्छा लिखोगे, अपने लेखन में और ध्यान दोगे तो हम सबका भविष्य सँवर जाएगा।"

राखी ने अदा से कहा तो रितेश हँस पड़ा।

"अच्छा जी....क्या कहने आपके। खैर चलो छोड़ो, गरमा गरम बढ़िया सी चाय बना लाओ, तब तक मैं मेल का जवाब लिखता हूँ।"

राखी खुशी से गुनगुनाते हुए रसोईघर में चली गई। आज सुबह सचमुच बहुत खुशनुमा थी। एक ईमेल ने जैसे जिंदगी ही बदल दी थी।


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