गुड्डू की सूझबूझ
गुड्डू की सूझबूझ
गुड्डू उदास परेशान सा अपनी ही सोच में डूबा चुपचाप घर की ओर चला जा रहा था।
आज तो एक पैसा नहीं कमा सका था वह। सिर्फ पन्द्रह वर्ष का था वह परंतु असमय पिता की मृत्यु के बाद से दिहाड़ी पर चाय की दुकान पर काम करता था। सारा दिन इधर उधर दफ्तरों में चाय पहुँचाने से लेकर दुकान पर आए ग्राहकों को उनकी मेज तक चाय पहुँचाना व दुकान की सफाई सभी कुछ उसके जिम्मे था। लेकिन आज दुकान के साथ वाले दफ्तर के बड़ेबाबू की वजह से नौकरी से हाथ धोना पड़ा। गुड्डू की गलती नहीं थी, वह तो बड़ेबाबू को बता कर ही उनकी मेज पर चाय रखकर आया था। अब अगर काम की व्यस्तता के चलते उन्होंने ध्यान नहीं दिया और उन्हीं का हाथ लगने के कारण चाय किसी महत्वपूर्ण फाइल पर फैल गई तो गुड्डू का दोष कैसे हुआ? लेकिन उन्होंने चाय की दुकान के मालिक से कहसुन कर बेचारे गुड्डू को नौकरी से निकलवा दिया।
वैसे तो गुड्डू की बेचारी बीमार माँ भी घरों में बर्तन सफाई का काम करती है परन्तु एक सप्ताह से दमा अनियंत्रित हो जाने की वजह से घर पर ही पड़ी हैं।
आज तो न भोजन के पैसे हैं न दवा के। एक बीस रुपए का नोट है जेब में बस, पर उससे क्या होगा? गुड्डू बहुत दुखी था। घर कुछ ही दूरी पर रह गया था कि अचानक सुनसान गली से गुजरते हुए गुड्डू को किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। गुड्डू रोज ही उधर से गुजरता था और घर न जाने कब से बंद पड़ा था। उसने देखा घर के मुख्य द्वार पर तो आज भी ताला लगा था फिर यह कौन रो रहा है अंदर? जब गुड्डू की उत्सुकता बढ़ी तो चारदीवारी फाँद के वह खिड़की की ओर बढ़ा। अंदर झाँका तो पाया कि एक चार पाँच साल का बालक कुर्सी से बँधा हुआ था। वहीं कुछ दूर पर एक मोटा सा आदमी ऊँघ रहा था। बच्चे के रोने से उसकी नींद में खलल पड़ा तो उसने उठ कर एक थप्पड़ बच्चे को जड़ दिया और बोला-
"चुप नहीं रहा जाता तुझसे? अगर तेरी आवाज़ घर से बाहर गई तो जान से मार दूँगा।"
"मुझे भूख लगी है, मुझे घर जाने दो।"
बच्चा रोते रोते बोला तो आदमी थोड़ा नरम पड़ा। उसने कहा-
"तो मैं क्या करूँ? अगले आदेश तक मैं कुछ नहीं कर सकता। यहाँ कोई है भी नहीं जो कुछ मँगवा दूँ। इंतजार करो कोई न कोई खाना लेकर आता ही होगा। मोहन सर खाने को कुछ जरूर भेजेंगे।"
गुड्डू ने जेब में हाथ डालकर टटोला, बीस का वही मुड़ातुड़ा नोट जेब से निकाल कर देखा। एक पल को सोच उठी कि जब स्वयं खाने को कुछ नहीं है तो किसी और की मदद कैसे करे? पर बालक का भूख से बिलबिलाता चेहरा उसे द्रवित कर गया और वह नुक्कड़ की दुकान से ब्रेड खरीद लाया।
हिम्मत करके वह पुनः दीवार फाँदकर अंदर गया और दरवाजा खटखटा दिया।
"कौन है?" एक भारी आवाज़ गूँजी।
"मोहन सर ने भेजा है मुझे।" हिम्मत करके गुड्डू ने कहा।
मोहन सर का नाम सुनते ही दरवाजा खुल गया।
"क्या संदेश लाए हो?" उस आदमी ने पूछा।
"ब्रेड लाया हूँ। बच्चे को भूख लगी होगी।इसीलिए भेजी है।"
"मुझे भी तो भूख लगी है। मैं ये रूखी सूखी ब्रेड खाऊँगा?मोहन सर ऐसा कैसे कर सकते हैं?"
आदमी क्रोध से बोला तो गुड्डू ने जल्दी से कहा-
"आपके लिए अभी बढ़िया भोजन आने वाला है। बस पहुँचने वाला होगा, मैं बच्चे को ब्रेड खिलाता हूँ, जब तक आपहाथ मुँह धोकर तरोताज़ा हो लीजिए।"
मोहन सर का नाम सुनकर उस आदमी ने गुड्डू पर भरोसा कर लिया। वह जैसे ही हाथ मुँह धोने गया गुड्डू ने बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और बच्चे को लेकर भाग निकला।
सुनसान गली पार करके जब वह दोनों मेनरोड पर आए तो गुड्डू को पुलिस थाना दिखाई दिया। गुड्डू बच्चे को लेकर झटपट थाने में घुस गया। वहाँ पर बड़ेबाबू और उनकी पत्नी थानाध्यक्ष के आगे रो रहे थे और अपने पुत्र के अपहरण की रिपोर्ट लिखाने आए थे।
गुड्डू के साथ अपने पुत्र को देखकर बड़े बाबू चिल्लाने लगे
"तुम्हें नौकरी से निकलवा दिया तो मेरे बेटे का अपहरण कर लिया तुमने? मैं तुम्हें नहीं छोड़ूँगा।"
तभी उनका पुत्र बोला-
"लेकिन पापा ये भइया तो मुझे बचाकर लाए हैं। मुझे तो मोटे अंकल ने पकड़ा था।"
अब बड़ेबाबू शर्मिंदा थे। गुड्डू की सूझबूझ से अपराधी तक पुलिस पहुँच गई थी। बड़ेबाबू ने गुड्डू को आगे पढ़ाने का जिम्मा तो उठाया ही साथ ही उसकी माँ का इलाज करवा कर उन्हें काम भी दिया।