Archana Saxena

Fantasy

4.5  

Archana Saxena

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ब्रेकअप

ब्रेकअप

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330


बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था सहज को कि कैसे रीमा इतनी सहजता से ब्रेकअप का एलान करके चली गई उसकी ज़िंदगी से। क्या सचमुच...? ओह ऐसा कैसे कर सकी वह?

कितनी मुश्किलों से तो दो सालों में मित्रता से प्यार में बदला था उनका रिश्ता और एक ही झटके में शीशे की तरह छन्न से टूट कर बिखर भी गया?

उसे याद आया अपने विद्यालय का वह दिन जब सहमी सकुचाई सी रीमा ने नौवीं कक्षा में प्रवेश लिया था।

सहज तो बचपन से ही उसी विद्यालय में पढ़ता आ रहा था। बचपन से ही साथ पढ़ते आ रहे लड़के लड़कियों में एक स्वाभाविक मित्रता थी। उनमें से किसी भी लड़की के प्रति आकर्षण अनुभव नहीं हुआ कभी सहज को। पर यह नई लड़की, उफ क्या नज़ाकत थी इसमें। उसके सामने पड़ते ही सहज तो उसे देखता ही रह जाता।

लड़कियाँ जहाँ उसके कक्षा में आने से जलन का अनुभव कर रही थीं, वहीं लड़कों में उससे दोस्ती करने को होड़ सी मच गई थी। सहज भी रीमा के आसपास मँडराता डोलता था पर बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था।

ऐसे में जब एक दिन रीमा ने ही आगे बढ़कर सहज से इंग्लिश की कॉपी अपना काम पूरा करने के लिए माँगी तो सहज तो प्रसन्नता के अतिरेक में झूम उठा। बचपन से आज तक कक्षा में प्रथम आता चला आ रहा था वह, पर इतना गर्व तो अपने इतना होनहार होने पर कभी भी नहीं हुआ था, जितना कि आज हुआ। यूँ तो विशाल ने भी स्वयं आगे बढ़ कर अपनी कॉपी रीमा को देने की पेशकश की थी, परन्तु कक्षा में द्वितीय श्रेणी प्राप्त करने वाले विशाल की यह पेशकश ठुकराते हुए रीमा ने सहज से उसकी कॉपी माँग ली थी।

फिर तो यह सिलसिला चल निकला। रीमा भी पढ़ाई में अच्छी थी, परंतु अपने पापा के तबादले की वजह से बीच सेशन में शहर व विद्यालय बदलना पड़ा था, और अब उसे पिछला कार्य पूरा करने के लिए एक होनहार सहपाठी की सहायता की आवश्यकता थी। सहज उस भूमिका में बखूबी फिट बैठ गया था। जल्दी ही रीमा कक्षा में पूरी तरह सामंजस्य बिठाने में सफल हो गई, परंतु मित्रता बिल्कुल कम नहीं हुई बल्कि धीरे धीरे इनकी मित्रता तो प्रगाढ़ता में बदल गई। सहज को रीमा की सहायता करने से आंतरिक प्रसन्नता अनुभव होती।

दो साल बाद जब दोनों ग्यारहवीं कक्षा में आए तो वैलेंटाइन डे पर सहज ने हिम्मत करके लाल गुलाब के फूल के साथ रीमा के प्रति अपने प्रेम का इज़हार भी कर दिया जिसे उसकी आशा के अनुरूप ही रीमा ने तुरंत स्वीकार भी कर लिया।

तब सहज के तो पाँव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।

मन तो किया था कि लाल गुलाब की पूरी दुकान ही खरीद कर रीमा के कदमों तले बिछा दे, पर उस दिन गुलाब के फूल कितने मँहगे बिकते हैं। 

वह तो एक गुलदस्ता तक नहीं बनवा पाया था। महज एक गुलाब से ही काम चलाना पड़ा था। हाँ साथ में चॉकलेट अवश्य खरीदी थी। वैलेंटाइन डे से सप्ताह पूर्व से ही मम्मी भी तो एक एक पैसे का हिसाब माँगने लगती थीं। वैसे चाहे जितने पैसे सहज माँग ले उनसे, थोड़ी नानुकुर करके दे ही देती थीं, पर वैलेंटाइन डे से पहले.... बाप रे बाप, जैसे किसी जासूस की आत्मा उसकी मम्मी के शरीर में प्रवेश कर जाती थी।

क्यों, किसलिए, कितने, इतने क्यों जैसे प्रश्नों की बौछार के साथ ही सहज के चेहरे पर जमी वह गहरी जासूसी आँखें सहज को कितना असहज करती थीं ये केवल वही जानता है।

ये तो अच्छा था कि रीमा को किसी मँहगे उपहार की दरकार नहीं थी। वह तो एक गुलाब के फूल और एक चॉकलेट से ही स्वयं को दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की समझने लगी थी। 

सब कुछ अच्छा चल रहा था पर बारहवीं कक्षा में आने के बाद जब से पुनः वैलेंटाइन दिवस आया तब से रीमा कुछ बदली बदली सी लग रही थी। पिछले कुछ दिनों से तो वह किसी गहन सोच में डूबी हुई सी भी लगती। सहज ने नोटिस किया था कि सहपाठी विशाल अवश्य ही उसके आसपास कुछ अधिक मँडराने लगा था। सहज के कारण पूछने पर वह यही बताती कि मेडिकल की कोचिंग में दोनों साथ ही हैं अतः अक्सर पढ़ाई के बारे में एक दूसरे से राय मशवरा करते हैं। कुछ और पूछताछ करने पर सफाई से कोई न कोई बहाना बना कर बात को टाल देती। सहज की शुभचिंतक सलोनी ने सहज को बताया भी कि इस बार रीमा ने स्वयं आगे बढ़कर वैलेंटाइन डे पर विशाल को प्रपोज किया, परंतु उसने बिल्कुल विश्वास नहीं किया। सलोनी सहज को पसंद करती थी यह बात पूरी कक्षा के साथ सहज भी बखूबी समझता था। अवश्य ही वह उन दोनों के बीच दरार डालना चाहती होगी, यही सोच कर सहज ने उससे बात करना भी छोड़ दिया।

पर आज तो रीमा ने ही सलोनी की बात को सही सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पूछने पर भी सदा टालती आई रीमा आज अचानक बिना कुछ पूछे ही विस्फोट कर गई।

"सहज मैं सोच रही हूँ कि हमारे प्यार की गाड़ी अब और आगे नहीं जा सकती।"

"क्या मतलब? ऐसा क्या हो गया? कोई गलती हुई क्या मुझसे?" 

सहज भौंचक्का था।

"अरे नहीं, परेशान होने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। गलती कोई नहीं हुई है तुमसे।"

"तो फिर ऐसा क्यों कहा तुमने? आगे से ऐसा मज़ाक कभी मत करना।"  

"पर मैं तो अभी भी मज़ाक नहीं कर रही हूँ। देखो सहज मैं सचमुच गम्भीर हूँ और तुम भी ध्यान से सुनो मेरी बात।"

सहज को काटो तो खून नहीं, ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे ही अटक गई थी। आखिर यह रीमा कहना क्या चाहती है?

"देखो यह वर्ष हमारे भविष्य के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण है, तुम इंजीनियरिंग को अपना प्रोफेशन चुनने वाले हो जबकि मेरा सलेक्शन मेडिकल में हो जाएगा यह लगभग पक्का है।"

"तो इस बात का हमारे रिश्ते पर क्या फर्क पड़ता है?"

"बहुत फर्क पड़ता है। तुम चार साल में इंजीनियर बन जाओगे, और मुझे अधिक समय लगेगा, फिर मैं पोस्ट ग्रेजुएशन करूँगी तो तुम मेरे लिए इंतजार क्यों करोगे? वैसे भी मेरे पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद मेरे घरवाले मेरा विवाह किसी ग्रेजुएट से करने को नहीं मानेंगे।"

"तुम्हें कैसे पता कि मैं पोस्ट ग्रेजुएशन नहीं करूँगा? हमारी लाइन में भी तो यह ऑप्शन खुला रहता है? और मुझसे प्यार करने के लिए तुमने घरवालों से पूछा था क्या, जो अभी से विवाह के लिए उनकी सहमति की इतनी फिक्र हो गई? वह समय आने तो दो।"

"अरे इतनी आसान सी बात तुम समझते क्यों नहीं? जब फील्ड अलग अलग होती हैं तो गृहस्थी की गाड़ी में तालमेल बिठाना भी मुश्किल होता है। बेहतर होगा तुम किसी इंजीनियर से विवाह करो।"

"यह क्यों नहीं कहती कि तुम्हें डॉक्टर से विवाह करना है?"

"तो यही समझ लो, मेरे मम्मी पापा डॉक्टर हैं और वह चाहते हैं कि भविष्य में उनका नर्सिंग होम मैं और मेरा डॉक्टर पति सम्हालें।"

"और तुम्हारा भाई?"

"उसने तुम्हारी तरह इंजीनियर बनने का फैसला जो किया है। सच कहूँ तो मैं तो उसके फैसले से खुश ही हूँ, नहीं तो बेकार ही आगे जाकर नर्सिंगहोम पर अधिकार को लेकर विवाद ही होता।"

सहज हैरान था, यह मासूम सी दिखने वाली रीमा इतनी चालाक निकलेगी यह तो वह कभी समझ ही नहीं पाया। 

भाई का इंजीनियरिंग की ओर झुकाव भी उसे सिर्फ इसलिए भा रहा था कि पापा के नर्सिंग होम पर उसका एकछत्र अधिकार रह सके। भाई की इच्छा, अनिच्छा के सम्मान का यहाँ कोई प्रश्न ही नहीं था।

और सहज उस चालबाज लड़की से प्यार करता था? कभी समझ ही नहीं पाया उसकी असलियत कि वह केवल पढ़ाई में मदद प्राप्त करने के लिए ही उसे अपनी मित्रता व कथित प्रेम के जाल में उलझाए हुए थी। जिस दिन से दोनों ने अपने भविष्य की अलग राह चुनी रीमा का झुकाव विशाल की ओर स्वतः ही बढ़ता गया। क्या पता किस्मत इन्हें एक ही मेडिकल कॉलेज में दाखिला भी दिला दे। विशाल भी तो पढ़ाई में सहज को बराबरी की टक्कर देता आया था, अतः सहज के दूसरी राह पर जाते ही रीमा ने विशाल की ओर स्वयं कदम बढ़ा दिए थे।

"तुम्हारा निर्णय अटल है? या सेंकेंड थॉट की कोई गुंजाइश है?"

सहज ने दुखी स्वर में पूछा।

"मैंने सोच समझ कर ही फैसला किया है, और हाँ सलोनी बुरी लड़की नहीं है, और इंजीनियरिंग को ही चुना है उसने भी।"

कहते हुए रीमा वहाँ से उठ गई। सहज ने साफ साफ देखा था कि बाहर विशाल चहलकदमी कर रहा था। रीमा ने बाहर जाते ही उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया और दोनों खिलखिलाते हुए एक ओर बढ़ गए।

सहज समझ नहीं पा रहा था कि इस चालाक लड़की से छुटकारा पाने पर हँसे या ब्रेकअप की इस अजीब वजह पर रोए। कुछ भी कहो सच तो यही है कि रीमा यथार्थ के धरातल पर जीने वाली उन आधुनिक लड़कियों जैसी ही थी जिनके प्यार में भी दिल से अधिक दिमाग हावी रहता है। ये आधुनिक पीढ़ी जब दिमाग से अधिक सोचती है तो दिल टूटकर बिखरने की नौबत अक्सर ही नहीं आने देती।

उसे उदास और अकेले बैठा देखकर सलोनी उसके पास चली आई। आज सहज ने उसे जाने को नहीं कहा, बल्कि जीभर कर उसके सलोने चेहरे की ओर निहारा और उसे देखकर मुस्कुराया भी। आखिर वह भी तो आधुनिक पीढ़ी का यथार्थवादी युवक था, और इसमें गलत भी क्या है ?


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