चलो वादा करें
चलो वादा करें
"कोई मेरी बात सुनता क्यों नहीं है इस अजीब दुनिया में, मैंने कहा ना कि बहुत भयानक बीमारी चल रही है आजकल"सोते सोते कामिनी चिल्लाई तो वहीं सो रहे उसके पति ने उसे हिला कर पूछा
"क्या हुआ कामिनी? ठीक तो हो तुम? कोई सपना देखा क्या?"
कामिनी चौंक कर उठ बैठी। कुछ पल तो उसे यही समझने में लग गए कि वह है कहाँ? इस वास्तविक लोक में जहाँ चार दिन पहले ही विवाह बंधन में बँधकर आई थी, या वह अलग सा लोक, शायद स्वप्नलोक ही था, जहाँ जिसको भी वह कोविड के बारे में बताती वही उस पर हँसता जैसे वह कोई पागल हो और बेसिरपैर की बातें कर रही हो।
हाँ सपना ही तो था वह।
कमल ने फिर पूछा "क्या हुआ? कुछ बताओगी? कोई भयानक सपना देखा क्या?"
"भयानक नहीं था, था तो बहुत सुन्दर वैसे, पर अगर वास्तव में सच होता तभी"
"ऐसा क्या देखा जो तुम चिल्ला भी रही थीं जैसे किसी से लड़ रही हो, और सुंदर भी कह रही हो सपने को? कहीं मुझसे तो नहीं लड़ रही थीं तुम? अरे यार अभी केवल चार दिन हुए हैं शादीशुदा जिंदगी में प्रवेश किए। सामने से लड़ने की कोई वजह नहीं दी मैंने तो तुम सपने में ही शुरू हो गई?"
कमल हँसते हुए बोला तो कामिनी भी हँस पड़ी।
"मुझे कोई जल्दी नहीं है, तुमसे झगड़ने की, जिंदगी पड़ी है, बहुत वजहें देंगे हम एकदूसरे को झगडा करने की। अभी सपने में तुम तो कहीं थे ही नहीं। मैं तो देख रही थी मैं किसी ऐसी दुनिया में थी जैसे स्वर्ग में होऊँ। सब कुछ इतना सुंदर जैसा या तो कल्पनाओं में हो सकता है या फिर स्वर्ग ही होता होगा ऐसा।"
"फिर क्या हुआ? तुमने क्या किया वहाँ पर?"कमल ने उत्सुकता से पूछा।
"मैं बहुत हैरान थी कि वहाँ सब इतने स्वस्थ कैसे हैं? क्या इन्हें कोई बीमारी नहीं है? क्या इनके यहाँ महामारी नहीं फैली? तो मैंने एक लड़की से पूछा कि यहाँ कोविड महामारी नहीं फैली? तो वह लड़की मुझसे ही हैरानी से बोली
"कोविड क्या होता है? मैंने तो कभी नाम नहीं सुना। मुझे लगा शायद थोड़ी पागल है। मैं आगे बढ़ी तो कुछ और लोगों से पूछा, धीरे धीरे तो बात फैल गई और वहाँ भीड़ जुड़ने लगी। सब मुझसे कोविड को लेकर अजीब अजीब सवाल पूछने लगे। कोविड तो जाने ही दो उन्होंने तो महामारी का नाम भी नहीं सुना था। वह सब मुझपर हँसने लगे कि ऐसा भी कहीं होता है कि एक ही बीमारी से इतने लोग मर जाएँ।
मैं डर गई कि कहीं मैं कोविड से मर तो नहीं चुकी हूँ? शायद मैं स्वर्ग में हूँ और यह सब लोग वो भूल चुके हैं जो मुझे याद है। पर जब मैंने पूछा कि ये स्वर्गलोक है क्या जो यहाँ बीमारी नहीं फैलती तो वह सब और भी हँसे और बताया कि वह पृथ्वी ही थी, फिर पता चला मैं तो कई हजार साल पहले की दुनिया में पहुँच गई थी, जब वास्तव में सबकुछ इतना स्वच्छ और पवित्र था कि धरती भी स्वर्ग थी। इसीलिए तब महामारी को भी कोई नहीं जानता था। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं तो दो हजार इक्कीस से आई हूँ, तो वह हँसने के स्थान पर डर गए और कहने लगे कि काश कोई उनके समयचक्र को वहीं रोक दे। वह सब उस मशीनी युग तक आने को तैयार ही नहीं थे जहाँ इन्सान स्वयं एक मशीन बन चुका है। जहाँ भावनाओं का आदान प्रदान भी बस फोन और कम्प्यूटर तक सीमित होकर रह गया है। जहाँ कोई किसी की तरक्की से वास्तविक रूप से प्रसन्न नहीं होता, बल्कि स्वयं ईर्ष्या की आग में जलते हुए भी अपनी झूठी भावनाएँ प्रसन्नता के इमोजी बना कर फोन से भेजता है। जहाँ लोग सामने से एकदूसरे से बात नहीं करते बल्कि इसके लिए भी इसी प्रकार के यन्त्रों का सहारा लेते हैं। इसी डर की वजह से उन्होंने शायद मुझे अपनी दुनिया में वापस लौट जाने को कह दिया कि कहीं मैं ही उनकी सुन्दर दुनिया को संक्रमित न करदूँ। पर उस सुन्दर दुनिया से मैं वापस आना नहीं चाह रही थी तो उन्होंने कहा मैं उनकी दुनिया में झूठ फैलाने आई हूँ। जब तुमने मुझे जगाया कमल तब मैं उन्हें यही समझा रही थी कि मैं सच बोल रही हूँ।"
इतना कहकर कामिनी चुप हो गई। कमल उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोला"दरअसल जैसी दुनिया हम अपने रहने के लिए सचमुच चाहते हैं, बिल्कुल वही तुमने सपने में देखी। हमारी शादी में कोविड की वजह से कोई धूमधाम नहीं हो सकी, और तुम्हारे अवचेतन मन में कहीं न कहीं शायद उस बात की कसक शेष थी इसलिए ऐसा सपना आया होगा। पर जो भी है, यह सपना हमें बड़े बड़े सबक भी दे सकता है बस सबक सीखने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए हमलोगों में। इस हर पल बदलती दुनिया में सब कुछ सपने की तरह सुन्दर हो जाए, यह तो मुमकिन नहीं है, पर हम अपनी छोटी सी दुनिया, अर्थात हमारे परिवार की भलाई के लिए इनमें से जो कुछ भी अपने जीवन में उतार सकेंगे वह अवश्य उतारेंगे, चलो वादा करते हैं।"