Archana Saxena

Children Stories

4.5  

Archana Saxena

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चंगू और मंगू

चंगू और मंगू

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चंगू और मंगू की गहरी दोस्ती कक्षा में किसी को न भाती। उनकी इसी दोस्ती से चिढ़ते हुए न जाने किसने और कब उन्हें ये नाम दे डाले थे, अब तो किसी को याद तक नहीं। वैसे चंगू का वास्तविक नाम चिन्मय और मंगू का मयंक था। परंतु उन दोनों ने भी अपने इन नामों को हँसते हँसते ग्रहण कर लिया था।

अब तो शिक्षकों को भी उनके ये नाम पता थे और सामान्यतया उन्हें उनके नामों से बुलाने वाले शिक्षक शिक्षिकाएँ भी यदा कदा उन्हें चंगू मंगू कह कर पुकार लेते।


चंगू मंगू पहली कक्षा से साथ पढ़ रहे थे और अब छठी कक्षा में आ चुके थे। दोनों ही मेधावी थे और कभी चंगू तो कभी मंगू कक्षा में प्रथम व द्वितीय भी आते। दोनों के बीच फूट डालने का प्रयत्न कितनी ही बार सहपाठियों द्वारा किया जाता, कभी कभी गलतफहमी हो भी जाती, परंतु शीघ्र ही वह आपसी बातचीत से उसे दूर करके पुनः एक हो जाते।

सब कुछ ठीक चल रहा था परंतु छठी कक्षा में जब से एक नए छात्र ने दाखिला लिया था तब से इनकी दोस्ती पर खतरे के बादल मँडराने लगे थे।

उस लड़के मोहित ने शीघ्र ही भाँप लिया था कि चंगू मंगू की मित्रता समाप्त करने के लिए कक्षा के अधिकांश छात्र छात्राएँ उत्सुक थे। कक्षा में अपना सिक्का जमाने के लिए एक दिन इन दोनों की अनुपस्थिति में उसने घोषणा कर डाली कि वह इस दोस्ती को तोड़ कर रहेगा।

शीघ्र ही उसने चंगू और मंगू से मित्रता कर ली। दोनों ने ही अपने इस नए मित्र का स्वागत प्रेमपूर्वक किया परन्तु वह उन दोनों के बीच दरार पैदा करना चाहता है इस बात से दोनों ही अनभिज्ञ थे।

एकबार पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बना। सभी उत्साहित थे। बच्चों को मोबाइल फोन लेकर पिकनिक पर आने की छूट थी अतः अधिकतर बच्चे फोन लेकर ही पहुँचे थे। वहाँ पहुँचकर कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे तो कुछ आँख पर पट्टी बाँध कर आँखमिचौली खेल रहे थे। मंगू क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी नहीं था लिहाजा वह आँखमिचौली वाली टीम में था। जब चंगू बैटिंग कर रहा था तब योजनाबद्ध तरीके से मंगू की आँखों पर पट्टी बाँध कर उसे अपने साथ मोहित व कुछ अन्य लड़के एक पहाड़ी पर ले गए। मंगू तो इसे खेल का हिस्सा ही समझ रहा था, लेकिन जब कुछ लड़कों ने उसे एक पेड़ के साथ बाँध दिया साथ ही उसके मुख में कपड़ा भी ठूँस दिया तब वह बहुत घबरा गया व छटपटाने लगा। सहसा उसे किसी के मोबाइल की घंटी सुनाई दी। 

मोहित ने फोन उठा कर आवाज़ बदलते हुए कहा


"हाँ चंगू, जैसा तुमने कहा था बिल्कुल वैसा ही किया है। पेड़ से बाँध दिया मंगू को...., नहीं नहीं, फिक्र मत करो, किसी को तुम पर शक नहीं होगा। और ये कौन सा जिंदा बचने वाला है जो किसी को कुछ बताएगा। तुम्हारे दुश्मन का अंत हो गया समझो, अब तुम हमेशा प्रथम आओगे"


मंगू को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ। उसका मित्र चंगू उसके साथ ऐसा कदापि नहीं कर सकता था। पर उसे बाँधा किसने? मंगू आवाज़ नहीं पहचान सका था। धीरे धीरे आवाजें आनी बंद हो गई थीं। शायद सब चले गए थे।


उधर खेल जीतने के बाद चंगू ने मंगू को ढूँढना प्रारम्भ किया। वापस लौटने का समय हो गया था लेकिन मंगू का पता नहीं था। शिक्षक भी परेशान थे और चंगू की तो हालत ही खराब थी। चंगू ने फोन करके अपने व मंगू के घर पर खबर करना चाहा, परंतु उसका फोन जेब में था ही नहीं। उसने इधर उधर तलाश किया परंतु फोन भी नहीं मिला। फोन न मिलने से वह इतना चिंतित नहीं था परंतु मंगू के लापता होने से उसे साँस लेना भी दूभर लग रहा था।


सभी शिक्षक व बच्चे मंगू को ढूँढते हुए पहाड़ी की ओर बढ़े। मोहित निश्चिंत था। उसे भरोसा था कि उसे कोई नहीं पकड़ सकेगा क्योंकि मंगू उसकी आवाज नहीं पहचान सका था।

कुछ दूर चढ़ाई के बाद पहाड़ी पर एक जगह मोबाइल फोन मिला। शिक्षक ने झुक कर रूमाल से पकड़ कर फोन उठाया और बिना हाथ लगाए उलट पुलट कर देखा तभी चंगू बोल उठा


"अरे ये तो मेरा फोन है, यहाँ कैसे आया? मैं तो इस ओर आया भी नहीं। लगता है मंगू भी यहीं कहीं होगा"

इतना कहकर उसने व शिक्षकों ने मंगू को आवाजें लगानी शुरू कर दीं। शिक्षक ने फोन उसे नहीं लौटाया व सावधानी से रूमाल में लपेट लिया। मोहित थोड़ा सा घबरा गया था। 


उधर मंगू भी हलचल भाँप कर चिल्लाने का प्रयास कर रहा था परंतु मुख से बहुत धीमी आवाज़ निकल रही थी। सहसा उसके पैर से टकरा कर एक पत्थर नीचे की ओर लुढ़का तो चंगू उसी दिशा में ऊपर की ओर दौड़ पड़ा। पीछे पीछे सभी थे। मंगू मिल गया था, चंगू ने उसकी आँखें व हाथपैर खोल दिए और उसे गले से लगाया पर मंगू ने उसे पीछे धकेल दिया।


शिक्षक को विस्तार से सब बताते हुए उसने कहा कि उसे जिसने भी बाँधा उसके पास चंगू का फोन आया था और उसी ने ऐसा करने को कहा था।


सावधानी से फोन चेक किया गया, मंगू के बताए अनुमानित समय पर वास्तव में चंगू के फोन से फोन किया गया था और ये फोन मोहित को किया गया था।

मोहित ने अपने फोन से तो कॉल डिटेल मिटा दी थी परंतु चंगू के फोन से वह ऐसा नहीं कर सका था, उससे पूर्व ही फोन गुम हो गया था। उसने घबरा कर कहा


"कुछ देर तक मैंने अपना फोन चंगू को ही दिया था। मुझे नहीं पता इसने क्या किया।"


"पर मैं तो क्रिकेट खेल रहा था। तुमने मुझे फोन कब दिया था?"


चंगू तो इस इल्जाम से आहत होकर रोने लगा था। मोहित और उसके साथी चंगू को फँसाने के लिए शिक्षक को मनगढ़न्त कहानियाँ सुना रहे थे। पर शिक्षक को अब भी पूरा भरोसा था कि चंगू ऐसा नहीं कर सकता। मन तो मंगू का भी यह मानने को तैयार नहीं था कि चंगू ऐसा कर सकता है परंतु परिस्थितियाँ इसी ओर इशारा कर रही थीं।


"सर चंगू के फोन पर फिंगरप्रिंट होंगे न? आप उसकी जाँच करवाइए। सच पता चल जाएगा।"


मंगू जो अब तक कुछ सहज हो चुका था, उसने अपनी राय रखी।


"मैं भी यही सोच रहा था और इसीलिए मैंने फोन को बिना छुए रखा है। यहाँ से सीधे जाँच के लिए चलेंगे फिर सब अपने अपने घर जाएँगे।"


शिक्षक ने फरमान सुनाया तो गोपाल रोने लगा। उसे रोता देख शिक्षक ने सख्ती से पूछताछ की तो उसने मोहित के प्लान में शामिल सभी बच्चों के नाम व सारी बातें विस्तार से बता दीं। साथ ही यह भी बताया कि वापस लौटकर चंगू का फोन उसी तरह उसकी जेब में रखना था जैसे कि उसने चुपके से निकाला था परंतु जल्दबाजी में फोन कहीं गिर गया।


मंगू ने रोते हुए चंगू से क्षमा माँगी। दोनों मित्र गले लगकर खूब रोए और फिर कभी एक दूसरे पर संदेह न करने का वचन लिया।

प्लान में शामिल सभी बच्चों को सजा हुई परंतु मोहित का अपराध छोटा नहीं था अतः उसे विद्यालय से ही निकाल दिया गया।


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