Sudhirkumarpannalal Pratibha

Tragedy

2.5  

Sudhirkumarpannalal Pratibha

Tragedy

वह बेवफा थी।

वह बेवफा थी।

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"इस सफर का अन्त कहाँ हैं बिनय बाबू ?"

"अभी थक गई, अभी दूर बहुत दूर चलना है।---यह अन्त हीन सफर है--इस सफर में ठहराव है,पड़ाव है मंजिल कहाँ हैं? "

 "कही तो होगी?"

 "जिसे हम मंजिल कहते है वह बस पड़ाव है "

"मै कुछ समझी नही --समझाइये न ---मेरा खुद का घर मेरी मंजिल नही है?"

 "नही---सफर कभी खत्म नहीं होती ---घर आ जाने के बाद भी तो भूख लगेगी---भूख शान्त करने के लिये रोटी का जुगाड़ करना पड़ेगा---फिर सफर का शुरुवात हो जायेगा---जिंदगी भी तो एक सफर है।"

   "हाँ ! मै समझ गई।

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लॉक डाऊन हो जाने के बाद बिनय की कम्पनी बन्द हो गई थी। नौकरी छुट जाने के बाद बिनय घर में ही पड़ा रहता---लेकिन कर भी क्या सकता था?काम करने वालो को अगर दंड देना है तो, उसे खाली बैठा दिजीये वो तड़पने लगेगा।

 एक महीना----दो महीना ---लेकिन लाक डाऊन खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था । घर मे रखा सारा समान खत्म हो गया ।खाने-पीने का समान भी अब खत्म के कगार पर था ।रुम रेंट,बिजलिबील,और भी दैनिक खर्चे।रुकते कहाँ?---जिंदगी चलती हैं, तो साथ मे चलना पड़ता हैं। विनय कुछ समझ में नहीं आ रहा था , क्या करें---- क्या ना करें? यहां रहेगा भी तो खाएगा क्या ? अगर घर चला जाता है तो, कुछ दिन के लिए तो राहत मिल ही जाएगी । गमो के अंधड़ भी चले भी तो यह जीवन तो चलता ही रहता है। समय और जिंदगी दोनों ही एक दूसरे के पूरक है यह ठहरते ही कहां है ।जब तक सांस है । तब तक निरंतरता बनी रहती है ।

बिनय अपनी पत्नी रूपा को आवाज दिया," अरे सुनती हो,भाग्यवन आगे की दाल रोटी कैसे चलेगी ?"

बिनय की एक आवाज पर बिनय की पत्नी रुपा रूम से बाहर निकली।

" मैं क्या बताऊं,आप जो कहेंगे वैसा ही होगा मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा हैं।" रूपा के चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट झलक रही थी।

विनय बोला,"मैं अब निर्णय ले चुका हूं। हम लोग को यहां एक पल भी नहीं रुकना चाहिए,हम लोग को तुरंत अपने गांव निकल जाना चाहिए। वहां कुछ दिनों के लिए दाल रोटी की तो व्यवस्था हो जाएगी ।---- नहीं तो फिर यहां पर भूखे सोना पड़ेगा।"

" मगर जाएँगे कैसे,वाहन तो चल नही रहे है?" रूपा जिज्ञासा भरे लहजे में विनय से पूछी।

"पैदल--- पैदल ही एकमात्र विकल्प है।--- मै तो चल लूंगा --- तुम अपने बारे में सोचो, क्या तुम चल सकती हो?" विनय बोला।

रूपा एक ही सांस में बोली ,"जब एकमात्र रास्ता हि बचा हैं, विकल्प है ही नहीं, तो फिर सोचना क्या है और करना क्या?--- चलना है तो चलना है, उठते- बैठते,आराम करते घर तक तो पहुंच ही जाएंगे।"

विनय बोला ,"तो फिर देर किस बात की----अभी तैयारी शुरू कर देते हैं। और अगले दिन पौ फटने से पहले निकल चलते हैं ।

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"मैं थक गई हूं विनय बाबू। चला नहीं जा रहा है । थोड़ा आराम कर लेती। ऊपर से यह बहुत बड़ा बैग । कहीं छांव देख कर दो घड़ी बैठ जाते ।.... आप भी तो थक गए होंगे ना?... आपका बैग तो मेरे बैंग से भी ज्यादा भारी है।"रूपा लंबी सांस लेते हुए बोली।

"मैं भी तो हमसफर हूं ,मुझे भी थकान हो चुकी है। मैं भी आराम करना चाहता हूं।"विनय बोला।

दोनों सड़क के किनारे पीपल के नीचे चबूतरे पर बैठ गए।.... विनय अपना सर पीपल के तने से टीका लिया।...रूपा ईतनी थक गई थी कि ,कुछ देर के बाद ही अपना सर विनय के गोद में रख कर चबूतरे पर हि लेट गई।

मंद मंद हवा के झोंकों के बीच दोनों को काफी सुकून महसूस हुआ दोनों मंत्रमुग्ध हो गए । विनय रूपा के सर को सहलाते हुए बोला ,"जानती हो रूपा , यहां से कुछ ही दूरी पर एक बहुत ही खूबसूरत झरना, तलाब ,पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, और एक छोटा सा बगीचा है । अनेकों प्रकार के फूल -फलो के पेड़ भी हैं। दिल को छू जाने वाली जगह है ।"

"वही चलते हैं ना । यहां से कितनी दूर होगी ? दिल करता है, वहां की प्रकृति से आत्मसात करू।"रूपा जिज्ञासा भरे लहजे में बोली।

"थोड़ी देर सुस्ता ले, फिर वहां चलेंगे... यहां से 10 किलोमीटर आगे हैं।... और वहां से फिर हमारा घर 40 किलोमीटर।.... वहीं पर एक बस्ती भी है , जहां हम रात बिता सकते हैं।... और अगले सुबह घर के लिए निकल पड़ेंगे।"

"पहले कभी आप यहां आए हैं क्या?... इतनी अच्छी और सटीक जानकारी आपको कैसे है?.. उस बस्ती में आप रुके है क्या ?"रूपा प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

रूपा को जवाब दिया,"जब हम पढ़ते थे ,तो मेरा दोस्त राजेश जो कि मेरे साथ हीं पड़ता था , उसी शहर का था।... मैं उसके यहां उसके शादी में गया हूं , रात को ठहरा भी हूं। उस झरने के पास भी गया हूं... मन खुश हो जाता है..सोच रहा हूं पहले हम लोग झरने के पास चलें। फिर दोस्त के घर जाकर रात बिताएंगे। फिर अगले दिन अहले सुबह अपने घर की तरफ निकल चलेंगे।.... कैसा विचार है?"

"बहुत बढ़िया...."रूपा सहमति जताते हुए बोली। मैं यहां कुछ समय बिताना चाहूंगा

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"प्रकृति के गोंद में कितना अच्छा लगता है ना... ? ये कल–कल की ध्वनि के साथ बहती नदी...ये झरना , पेड़– पौधे ,पशु –पक्षी वाकई ये जगह स्वर्ग से कम नहीं है।... मैं यहां कुछ समय बिताना चाहूंगी।.."रूपा विनय से बोली ।

चलो बढ़िया है, जितना देर रुकना है रुको ।इस लौक डाउन में हम लोग का हनीमून भी मन गया।... तुम बार-बार ताने मार रही थी, हम लोग शादी के बाद से अब तक  हनीमून पर नहीं गए।".... विनय बोला।

"हनीमून ? वाली जगह इतनी खूबसूरत नहीं हो सकती जितनी ये है । मैं काफी प्रफुल्लित हूं।और उत्साहित भी हूं।"रुपा खुश होते हुए बोली।

"बिन पैसे वाले हनीमून पर इतनी खुश हो रूपा ?"

विनय के प्रश्नों का रूपा ने जवाब दिया,"पैसों में खुशी नहीं छिपी है विनय बाबू... खुशी हमारे और आपके भीतर है जो ना ही खरीदी और ना ही बेची जा सकती है। हम दोनों का प्यार भी विनय बाबू अनमोल है... इसमें पैसा कहीं नहीं है।"

" विनय बाबू आप यहीं बैठे , मै नदी के किनारे जा रही हूं , फ्रेश भी हो लूंगी।"

" नदी में धारा तेज है संभल के जाना।" 

" विनय बाबू आप चिंता ना करें , मैं तैरना जानती हूं।" यह कहते हुए रूपा नदी के किनारे चली गई।

" आ…. अ... आ... आ... अरे..! विनय बाबू!"

अरे यह तो रूपा की आवाज है। विनय घबड़ाते हुए नदी के किनारे दौड़ा। उसे रूपा नजर नहीं आई। उसका दिल धड़कने लगा।....रूपा....रूपा....रूपा..... विनय की आवाज लौटकर आ जाती।.... वह दूर दूर तक नजर दौड़ाया। रूपा कहीं नजर नहीं आई। वह नदी की धारों में देखने लगा।.... बुरी तरह घबरा कर चिल्लाने लगा।... लॉक डाउन की वजह से दूर-दूर तक कोई नजर भी नहीं आ रहा था। वो पागलों की तरह कभी झाड़ियों में कभी पेड़ों के पीछे तो कभी नदी के किनारे तो कभी झरने के पास, जाकर देखता।....एक घंटा ,दो घंटा ,तीन घंटा, शाम ढलने को आई लेकिन रूपा कहीं नजर नहीं आई। विनय निराश होकर दोस्त के घर की तरफ तेज क़दमों से बढ़ गया।

लॉकडाउन के वजह से, दोस्त घर पर ही मिल गया । वो अपने दोस्त को सारी घटना को विस्तार से बताया । आनन-फानन में उसका दोस्त, गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा करके नदी किनारे पहुंचा।.... शाम ढलने वाली थी, कुछ ही देर के बाद घुप अंधेरा हो जाएगा। गांव के ही कुछ तैराक लोग नदी में जाकर खोजबीन चालू की। लेकिन रिजल्ट ढाक के तीन पात ही निकला ।.. विनय का रो रो कर बुरा हाल हो चुका था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?उसके साथ वो वादा की थी वह हमसफ़र बन के जीवन भर उसके साथ चलेगी , और बीच रास्ते में हीं सफर छोड़कर चली गई ! वह बेवफा है, जिंदगी के सफर में जो साथ छोड़ कर चला जाता है,उसे बेवफा ही तो कहते हैं ना! क्यों वो मेरे साथ जीने मरने का वादा की थी? आखिरी सांस तक चलने का वादा कि थी?... फिर बीच में छोड़कर जाने का क्या मतलब? ... और अगर गई भी तो मुझे साथ लेकर चलती । हम दोनों दो कहां थे। हम दोनों एक ही तो थे । मंजिलें एक थीं , रास्ते एक थे फिर वो दूसरा रास्ता क्यों चुना ?... या भगवान मेरी प्रेम को मुझे लौटा दो....मैं उसके बगैर नहीं रह सकता। जीते जी मर जाऊंगा , जिंदा लाश मै बन जाऊंगा । मेरा उसके सिवा है भी कौन?... उसने सफर का अंत पूछते पूछते अपना ही अंत कर दिया।... भला ऐसा कोई करता है क्या ? वह मुझे छोड़कर नहीं जा सकती है ।मैं उसके बगैर नहीं रह सकता ...वह मेरे बगैर नहीं रह सकती, उसकी आत्मा कैसे रह सकती है, मेरे बगैर । मुझे छोड़ कर मत जाओ रूपा, मेरे पास आ जाओ । अगर मेरा प्यार सच्चा है तो तुम लौट आओ ।

विनय चिल्ला चिल्लाकर पागलों की तरह रो रहा था । उसका दोस्त उसे ढांढस बंधा रहा था । रात होने को आई थी । कुछ लोग अभी भी पानी के भीतर जाकर लाश को ढूंढ रहे थे । अंततः थक हार कर सारे लोग पानी से बाहर निकल गए। गांव के सब लोग अपने अपने घर चले गए । विनय को भी उसका दोस्त राजेश घर लेकर आया । विनय रातभर टहलते हुए और रोते हुए बिताया । काश!मेरी पत्नी मुझे जिंदा मिल जाती, तो कितना अच्छा होता ।

सब कुछ तो ठीक ही चल रहा था , लॉकडाउन हो जाने के वजह से ये हादसा हो गया। अगर लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो, आज वो अपनी पत्नी के साथ रहता । विनय लगातार अंतर्द्वंद कर रहा था । वह परेशान था ।दिल की धड़कने तेज चल रही थी । आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे । यह जिंदगी अब तुम्हारे बगैर पहाड़ की तरह होगी । वह कैसे जिएगा ?.....

सुबह होते ही बस्ती के सारे लोग राजेश और विनय के साथ गए।... जाल डाला गया... गोताखोर पानी में डूब–डूबकर लाश को ढूंढ रहे थे।... काफी मशक्कत के बाद, आखिर लाश मिली। विनय रूपा की लाश पर दहाड़ मारकर रोने लगा।... राजेश विनय को ढाढस बंधाने लगा।

विनय को कभी न खत्म होने वाला दर्द मिल चुका था।

अपने दोस्त के मदद से वो लाश लेकर घर आया।.. विनय के मां-बाप ने जब लाश को देंखा तो पछाड़ खाकर गिर गए।.... किसी तरह,इस विपरीत परीस्थिति को विनय ने संभाला।... लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियां होती है जिसमें बदलाव नहीं होता है, उसी परीस्थितियों के साथ जीना पड़ता है।विकल्पहिन रास्तों में समझौते करने पड़ते हैं। विनय के साथ भी ऐसा ही हुआ था।... उसे तो जीना ही पड़ेगा,....रूपा की यादों के सहारे ही सही ।...अपने मां-बाप के खातिर ।

इस हादसे को 3 महीना हो गया था । लॉकडाउन खत्म हो चुका था । अनलॉक प्रक्रिया चालू हो गई थी।...जिंदगी चलने का नाम है।घर की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमरा गई थी।... बिनय ही एकमात्र मां-बाप का सहारा था। उसे फिर नौकरी पर जाना पड़ा। वह अनमने ढंग से, मां-बाप का पैर छूकर, दिल में असीमित दुख लेकर ,नौकरी की तलाश में निकल पड़ा ।

बस के किनारे वाली सीट पर वो बैठा हुआ था। बस अपने रफ्तार से चल रही थी। तभी अचानक वह नदी आ गई । जहां रूपा डूब कर मरी थी ।... विनय ड्राइवर से बस रोकने को बोला।... बस रूक गया और विनय उतर गया ।...नदी के किनारे जाकर बैठ गया । विनय खुद से और रूपा की आत्मा से बात करने लगा।,"तुम छोड़कर क्यों चली गई रूपा ?.... क्या मैं सचमुच बहुत बुरा था ?... तुम तो छोड़ कर कभी भी ना जाने का वादा की थी।...फिर एकाएक, अचानक ऐसा क्यों?..."

उसके प्रश्नों को न कोई सुनने वाला था ,और ना ही कोई जवाब देने वाला था।.. वो चेतनाशून्य हो गया.....और फिर निशब्द भी हो गया।.... कुछ घंटों तक बिनय यूं ही बैठा रहा।... फिर उठा.. सड़क पर आया,और आने वाली बस को रुकवाया ,और खाली सीट पर जाकर बैठ गया।..वो एक अंजान सफर पर निकल पड़ा ।

        


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