वह अजनबी महिला
वह अजनबी महिला
चंदू एक दिन अपनी बुलेरो की सर्विसिंग कराने हल्द्वानी गया था। वहीं जब वह गाड़ी सर्विस सेंटर में देकर बुद्धा पार्क आराम फरमा रहा था, तभी उसे पार्क में एक सजी-संवरी महिला अकेली बैठी दीखती है। चंदू को लगता है कि वह महिला उससे कुछ कहना चाह रही है। वह उसके पास जाकर बैठ जाता है- "हाय।"
"हाय, कैसे हो ?" महिला ने रिप्लाई किया।
"ठीक हूँ। और आप ?"
"बस अच्छी हूँ।"
"यहीं रहती हैं आप ?"
"हाँ।"
"और आप ?"
"मैं अल्मोड़ा से हूँ।"
"अच्छा।"
"यहाँ कैसे ?"
"रिश्तेदारी में आया हूँ।" चंदू ने झूठ बोला।
"अच्छा, काम क्या करते हो ?"
"बिजनेसमैन हूँ।" चंदू ने इंप्रेस जमाने के लिए पुनः झूठ बोला।
"अच्छा, लगते तो नहीं हो।"
"आपको कैसे मालूम ?"
"आपको पता है मेरी उम्र क्या होगी ?"
"यूँ ही लगभग तीस-बत्तीस।"
महिला हँसने लगी- "पचपन साल की हूँ मैं। अनुभव है मेरे पास। इसलिए पहचान जाती हूँ।"
"हैं !" चंदू चौंका।
"हाँ, लेकिन अभी तक मैंने शादी नहीं की। पता है, मैं तुम्हारी ओर क्यों देख रही थी ?"
"नहीं।"
"इसलिए कि तुम मुझे अच्छे लगे। अच्छा लगने का मतलब तुम गलत मत समझना। प्रेम का मतलब केवल शारीरिक इच्छा पूर्ति नहीं होता। प्रेम तो हृदय की भावना है। प्रेम में हृदय का हृदय से संबंध स्थापित होता है। मैं सही कह रही हूँ ना ?"
"हाँ।"
"प्रेम तो जीवन में एक बार ही होता है। तुम्हें हुआ कभी प्रेम ?"
"जी जी..... जी नहीं।"
"फिर झूठ, दिखने से तो सिरफिरे आशिक लग रहे हो।"
चंदू फिर चौंका। कहाँ तो पहले उसका मन उस महिला के करीब जाने का कर रहा था और अब उसकी बातें सुनकर वह उससे दूर जाना चाह रहा था। आखिर उससे रहा नहीं गया- "मुझे देर हो रही है। अभी चलता हूँ।"
"अरे, सुनो तो सही। आप अच्छे आदमी लगते हो। अपना मोबाइल नंबर दे दो। कभी बातें करने का मन होगा तो फोन कर लूंगी। वैसे भी कमरे में अकेले बोर हो जाती हूँ।" महिला ने रोककर कहा।
"ओके ठीक है। नोट कर लीजिए। सेवन फोर टू वन ऐट सिक्स........।"
महिला ने नंबर नोट किया और चंदू उसके बाद वापस चला आया।
इस महिला का फोन भी चंदू के पास हफ्ते में एक बार जरूर आता था। पचपन साल की होने के बावजूद उसकी बातें बच्चों की जैसी होती थीं। कभी वह चंदू से हल्द्वानी आने और मिलकर साथ बैठकर आइसक्रीम खाने का आग्रह करती, कभी चंदू को लूडो में हराने का चैलेंज देती, तो कभी नैनीताल चलकर नैनी झील में बोटिंग करने का निवेदन करती।
वह चंदू से काफी देर-देर तक बातें करती। कभी-कभी तो वह एकतरफा ही बोलती जाती। चंदू उसकी बातों से अकसर बोर हो जाया करता था और कहता था- "ये बुढ़िया तो पका-पका के मेरा दलिया बना देगी यार।"
मैं भी उसे चिढ़ाता- "यार शादी कर ले ना उससे। तुझे अच्छा मानती है।"
चंदू झल्लाता- "तू कर ले ना यार। तेरी और उसकी बातें एक ही जैसी होती हैं। जोड़ी खूब जमेगी तुम दोनों की।"
"अरे यार। भारत में अभी लड़कियों की इतनी भी कमी नहीं हुई है, जो उससे शादी कर लूँ। तेरे लिए ठीक है। मेरे लिए तो वो माँ समान है।"
"हे गांधी बाबा तुम धन्य हो।" ऐसा कहकर चंदू चलता बना।