Kunda Shamkuwar

Abstract Others

4.0  

Kunda Shamkuwar

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वेवलेंथ

वेवलेंथ

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कभी कभी न जाने क्यों ढ़ेर सारी बातें करने का मन करता है।

लेकिन हर बात क्या हर किसी के साथ हो सकती है भला ?

मैंने बात करने के मकसद से कैलाश जो मेरे कलीग है उन को फ़ोन किया.... लेकिन वह आज कही गए थे। 

फिर क्या? कोई बात नहीं हुयी क्योंकि जो बात कैलाश से हो सकती थी वह और किसी के साथ कैसे हो सकती थी ? आप जानते है कि हर बात की एक खास बात होती है। हर बात का एक तय वक़्त होता है...और तय वक़्त में ही वह बात भी बनती है....कैलाश के साथ होनेवाली मेरी वह सारी बातें जैसे ख़त्म हो गयी थी।

बात करने के लिए फिर मैंने मेघना से बात करनी चाही। लेकिन पता चला की वह आज रिकॉर्डिंग में बिजी है। फिर मेघना के साथ करने वाली वह बात भी ख़त्म हो गयी।

मैं अपने आसपास के और लोगों के बारे में सोचने लगी जिनसे मैं बात कर सकती थी। कई सारे लोग थे लेकिन उनके साथ बातचीत में 'वह' बात तो नहीं होती न? वहाँ बात होती फैशन की...टीवी की.... सिनेमा की....पड़ोस की...और भी इसी तरह की सतही बातें।  लेकिन बातों में जो गहरायी होती है वह तो नही होती... क्योंकि वेवलेंथ भी तो हर एक से मैच नहीं होती है..... 

कभी लोग कहा करते थे रोटी, कपड़ा और मकान ही इंसान की बुनियादी ज़रूरतें होती है। लेकिन आजकल यह बदल गया है। इंटरनेट के इस जमाने मेंं बात करने के लिए लोग चाहिए होते है जो महानगरों की दुनिया में कम ही मिलते है। उनके पास वक़्त की कमी होती है।और जिंदगी की आपाधापी में वे व्यस्त होते है।

आज बात सुनने वाला कोई नहीं है और न ही बात करने वाला भी। कुछ पाठक पढ़कर हँसेंगे और कहेंगे की ये लेखक कुछ भी आयँ बायँ लिखते रहते है। लेकिन आप जैसे समझदार पाठक इस बात को समझ जाएँगे....  


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