वातावरण को अपना समर्पण
वातावरण को अपना समर्पण
सुनाई देती हैं आवाज़े जुगनुओं कि तरह,
नींद नहीं आती रातों में बैचेनियों कि तरह,
कैसे सौंदर्य में खोऊँ कैसी करुणा में सोऊँ,
तृष्णा,कृन्दन औऱ करुणा का कैसे मैं वर्णन करूँ।।
सौंदर्य वातावरण कि ख़ूबसूरती,
ताज़ी ताज़ी ठंडी हवाओं का बहना,
ऊपर मिलों दूर चाँद सितारों को निखरना,
किस प्रकार से उस मिलों तलक पहुँचूँ।।
सोचता हूँ कैसे अपनी दिनचर्या को निखार लाऊं,
कैसे अपनी ही गतिविधियों को गतिशील करूँ,
शत प्रतिशत अपने ढँग से एक दूसरे का प्रयोग करूँ,
अपनी ही बातों को लेकर काफी देर तक सोचता हूँ।।
सुंदर से सुंदर रूप को प्रफ्फुलित करूँ,
अपनी ही औऱ से ह्रदय तल से आग़ाज़ करूँ,
करुणा, निधि, दया का सौंदर्य निर्माण करूँ,
प्रकृति के स्थित वातावरण को अपना समर्पण करूँ।।
