उस शाम की बरसात
उस शाम की बरसात
शांभवी टैक्सी स्टैंड पर खड़ी टैक्सी का इंतज़ार कर रही थी।उसे खड़े हुए काफ़ी समय बीत गया था पर अभी तक उसे कोई टैक्सी या आटो दिखाई नहीं दिया था।शाम गहराने लगी थी बरसात का मौसम था आसमान पर काले बादल मंडरा रहे थे रह-रहकर बिजली भी कड़क रही थी मौसम का मिजाज देखकर शांभवी मन ही मन डरी हुई थी।
क्योंकि बारिश कभी भी हो सकती थी आज उसे स्कूल से निकलने में देर हो गई थी सरकारी स्कूल होने के कारण आज स्कूल में सरकारी इंस्पेक्शन था।उसका स्कूल भी शहर से थोड़ा बाहर था शांभवी प्रत्येक दिन यहीं से टैक्सी या आटो पकड़कर अपने घर जाती थी हर रोज उसे सवारी मिलने में कोई असुविधा नहीं होती थी।
पर आज पता नहीं क्या हो गया है कि, कोई सवारी का साधन ही नहीं मिल रहा है।तभी बारिश शुरू हो गई शांभवी ने बारिश से बचने के लिए आसपास नज़र दौड़ाई तो सड़कें के किनारे एक पीपल का पेड़ दिखाई दिया शांभवी दौड़कर उसके नीचे चली गई वहां ज्यादा भीड़-भाड़ भी नहीं थी क्योंकि यह ग्रामीण इलाका था।
धीरे-धीरे बारिश तेज़ होने लगी थी आज सुबह जल्दी-जल्दी में शांभवी अपना मोबाइल भी घर में भूल गई थी।बारिश की तेज़ होती रफ्तार को देखकर शांभवी के चेहरे पर चिंता और घबराहट साफ़ दिखाई दे रहा था क्योंकि बारिश तेज़ होती जा रही थी और अंधेरा गहराने लगा था शांभवी वैसे तो डरती नहीं थी फिर भी बारिश और अंधेरे के कारण उसे डर लग रहा था।शांभवी कुछ सोच नहीं पा रही थी कि,वह क्या करे तभी एक लम्बी विदेशी गाड़ी सड़क के किनारे आकर रूकी कार का शीशा नीचे हुआ उसमें से एक नवयुवक ने शांभवी को देखकर आवाज लगाई " शांभवी!!उस युवक के मुंह से अपना नाम सुनकर शांभवी चौंक गई उसने जब उस युवक को ध्यान से देखा तो शांभवी के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई वह युवक उसका क्लासमेट विक्रान्त था।
" वहां खड़ी क्या सोच रही हो क्या इसी पेड़ के नीचे बारिश का आनंद उठाते हुए रात बिताने का इरादा है"?? विक्रान्त ने हंसते हुए पूछा।
शांभवी अपने पर्स को सिर पर रख कार की तरफ़ दौड़ पड़ी विक्रान्त ने कार का दरवाजा खोल रखा था शांभवी के कार में बैठते ही विक्रान्त ने गाड़ी आगे बढ़ा दी थोड़ी देर में ही विक्रान्त की कार सड़क पर दौड़ने लगी बारिश ने भी अपने बरसने की रफ़्तार तेज़ कर दी।
"शहर से बाहर इस ग्रामीण इलाके में तुम क्या कर रही हो समाज सेवा करने का भूत अभी तक उतरा नहीं है तुम्हारे सर से"? विक्रान्त ने हंसते हुए पूछा"
समाजसेवा मेरा शौक है पर मैं यहां समाजसेवा करने नहीं आई थी बगल में मेरा स्कूल है जहां मैं पढ़ाती हूं आज सवारी नहीं मिली इसलिए यहां खड़ी थी" शांभवी ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया।"
यह समाजसेवा नहीं तो क्या है मैडम शांभवी तुम यहां के ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी स्कूल में लड़कियों को पढ़ाती हो जबकि यदि तुम चाहती तो शहर के किसी भी अंग्रेजी मीडियम स्कूल में नौकरी कर सकती थीं लेकिन तुमने अपनी शिक्षा का उपयोग उन बच्चों पर करना ज्यादा उचित समझा जो महंगे-महंगे स्कूलों में नहीं जा सकते यह भी तो एक तरह की समाज सेवा ही है" विक्रांत ने हंसते हुए कहा।"
तुम ठीक कह रहे हो विक्की गरीब घरों के बच्चे महंगे स्कूलों में नहीं जा सकते पर हम जैसे पढ़े-लिखे लोग तो ऐसे स्कूलों में आ ही सकते हैं जहां उन बच्चों को हमारी जरूरत है" शांभवी ने गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।
"तुम बिल्कुल भी नहीं बदली अच्छा यह बताओ सूरज कैसा है तुम दोनों ने तो शादी करने के बाद कालेज के दोस्तों को भुला ही दिया" विक्रांत ने कार चलाते हुए कहा।
सूरज का नाम सुनकर शांभवी के चेहरे पर उदासी के बादल छा गए उसकी आंखें डबडबा गई।एक लम्बी सांस लेकर शांभवी धीरे से कहा" सूरज मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़कर दूसरी दुनिया में जा चुका है"
शांभवी की बात सुनकर विक्रांत ने चौंककर अचानक गाड़ी का ब्रेक लगा दिया यह इतना अचानक हुआ कि, शांभवी स्वयं को संभाल नहीं सकी वह लुढ़ककर विक्रांत के ऊपर गिर गई। शांभवी के बदन का स्पर्श पाकर विक्रांत के पूरे शरीर में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया शांभवी ने भी अपने शरीर में झुरझुरी सी महसूस की फिर जल्दी से स्वयं को संभाल लिया और ठीक से बैठ गई।
" क्या कहा तुमने"? विक्रान्त ने आश्चर्यचकित होकर शांभवी से पूछा।
" हां विक्की सूरज एक लड़की की इज्जत बचाते हुए एक गुंडे के हाथों मारा गया मैंने सूरज की आखिरी इच्छा का मान रखते हुए उस बदमाश को जेल भिजवाया और यही जहां सूरज ने अंतिम सांस ली थी यही के सरकारी स्कूल में पढ़ाने लगी मैं यहां की लड़कियों को आत्मरक्षा की शिक्षा भी देती हूं।अब मेरी मेहनत रंग लाई है इस बालिका विद्यालय में लड़कियां आत्मरक्षण में निपुण हो रहीं हैं।इस स्कूल का दूर-दूर तक नाम हो रहा है आज इसी बात को जानने समझने के लिए सरकार ने एक सरकारी टीम को इंस्पेक्शन के लिए भेजा गया था इसीलिए आज मुझे स्कूल में देर हो गई थी" शांभवी ने गम्भीर लहज़े में कहा।
विक्रान्त कुछ और कहता या पूछ्ता तबतक शांभवी का घर आ गया शांभवी ने विक्रांत को भी अंदर आने के लिए कहा " विक्की अन्दर चलो चाय पीकर जाना मम्मी पापा तुम्हें मिलकर बहुत खुश होंगे"
शांभवी ने विक्रांत से कहा।
बाहर अभी भी मूसलाधार बारिश हो रही थी शांभवी के साथ विक्की को देखकर शांभवी के मम्मी पापा का चेहरा खुशी से चमक उठा क्योंकि आज वर्षों बाद उन्होंने अपनी बेटी के चेहरे पर आत्मिक खुशी देखी थी विक्की को देखकर उसके माता-पिता शांभवी के लिए सुनहरे ख्वाब देखने लगे।यही सोचकर उन्होंने विक्रांत से पूछा "बेटा विक्की तुम्हारे माता-पिता कैसे हैं पत्नी और बच्चे कैसे हैं"??
"आंटी जी मम्मी पापा बिल्कुल ठीक हैं मैंने अभी तक शादी नहीं की है मुझे घुमाफिरा कर बात करना नहीं आता मैं जिस लड़की से प्यार करता था वह किसी और से प्यार करती थी। इसलिए किसी और लड़की से शादी नहीं कर सका वह लड़की कोई और नहीं शांभवी थी मैं आज भी शांभवी से प्यार करता हूं उससे शादी करना चाहता हूं अगर आप लोगों की इजाजत हो और शांभवी चाहे तो " विक्रांत ने गम्भीर लहज़े में कहा।
विक्रान्त की बात सुनकर शांभवी के माता-पिता के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई शांभवी जो चाय लेकर कमरे में दाखिल हो रही थी विक्की की बात सुनकर पहले तो चौंक गई फिर अचानक उसके चेहरे पर शर्म की लाली दिखाई देने लगी विक्की को अपनी तरफ़ देखता पाकर शांभवी की नज़रें शर्म से झुक गई
शांभवी की झुकी नज़रों को देखकर विक्की और शांभवी के माता-पिता समझ गए कि, शांभवी ने शादी की सहमति दे दी है। शांभवी के इज़हार के बाद पूरा घर खुशियों से भर गया बाहर आसमान भी झूमकर बरसते हुए अपनी खुशी का इजहार कर रहा था तभी शांभवी को लगा जैसे सूरज धीरे से उसके कान में कह रहा है "मैं तुम्हारे इस फ़ैसले से बहुत खुश हूं" शांभवी को ऐसा लगा कि, वह शांभवी और विक्रांत को शादी का आशीर्वाद दे रहा हो शांभवी के होंठों पर दर्द भरी मुस्कुराहट फ़ैल गई।

