दीवाली पर जले खुशियों के दीप
दीवाली पर जले खुशियों के दीप
नीलिमा दीपावली पर खरीदें जाने वाले सामानों की लिस्ट बना रहीं थीं। बच्चों के लिए पटाखें, दिए, मोमबत्तियां, सजावट के सामान मिठाइयां घर के सदस्यों के कपड़े सभी सामानो की लिस्ट बना कर नीलिमा ने जब सभी का हिसाब लगाया तो बजट़ से ज्यादा खर्चा हो रहा था। उसने सामन में से अपने कपड़े को काट दिया उसने सोचा उसका क्या है कुछ भी पहन लेगी पर बच्चों और सास ससुर के लिए कपड़े ज़रूरी हैं नहीं तो बच्चे उदास हो जाएंगे और सास ससुर को भी बुरा लग सकता है क्योंकि उन्होंने भी जीवन में अपनी खुशियों के लिए बहुत समझोतें किए हैं यह बात उससे छुपी नहीं हुई थी। उसने लिस्ट पर्स में डालीं और अलमारी से पैसे निकाल कर गिनने लगी। फिर उसने लम्बी सांस लेकर स्वयं से बड़बड़ाते हुए कहा हर बार मैं सोचती हूं कि कुछ ज्यादा बचत करके दिवाली पर अपने लिए सोने के कंगन लूंगी पर हर बार कुछ ऐसा हो जाता है कि वह अपने लिए एक अच्छी साड़ी या सूट भी नहीं ले पातीं। शादी से पहले भी उसका जीवन अभावों में ही बीता था।
अपने मन का कभी कुछ नहीं कर पाई थी तब वह सोचती थी कि शादी के बाद वह अपने मन की हर इच्छा पूरी करेंगी पर ससुराल में जिम्मेदारियां इतनी थी कि अपने बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला ऐसा नहीं था कि उसके सास-ससुर और पति उसे किसी चीज के लिए मना करते थे पर आमदनी से ज्यादा खर्च रहता था इसलिए कभी उसने अपने मन की इच्छा किसी से बताई ही नहीं कि उसका भी मन अपनी सहेलियों की तरह कभी कभी महंगी साड़ियां और गहने पहनने का मन होता है। जब से वह बड़ी हुई थी तब से उसका मन एक मंहगी कांचीवरम साड़ी और सोने के बाघमुहें मोटे मोटे कंगन पहने का बहुत शौक था। परंतु नीलिमा का यह शौक ना मायके में पूरा हुआ और ना ही ससुराल में वह हर बार घर खर्च में कटौती करके पैसे बचाने की कोशिश करती पर कोई न कोई ऐसा काम पड़ जाता कि उसके बचत किए हुए पैसे ख़र्च हो जातें। पिछली बार जो पैसा उसने बचाया था वह ननद के बेटे की पढ़ाई के लिए दे दिए सासू मां ने बहुत संकोच में यह बात कही थी कि अगर समय पर ननद के बेटे की फीस नहीं भरी गई तो उस कालेज में उसका एडमिशन नहीं हो पाएगा जहां वह पढ़ना चाहता है ननद के पास उतने पैसे नहीं हैं। तब नीलिमा ने खुशी खुशी अपनी बचत के पैसे ननद को दे दिए थे वह पैसे पा कर खुशी से रो पड़ी और ढेरों शुभकामनाएं और आशीर्वाद मुझे और मेरे बच्चों को दे दिया था।
उनकी खुशी के आगे मुझे अपनी इच्छा गौड़ लगी और उनकी मदद करके मेरे मन को जो खुशी मिली थी उसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। इस बार की दिपावली पर भी ज्यादा बचत नहीं हो पाईं है बस सब कुछ अच्छे से निपट जाएगा इस बात की खुशी है। नीलिमा ने सोचा वह अपनी सहेली रेखा के साथ खरीदारी करने जाएंगी अकेले जाना उसे अच्छा नहीं लगता इसी बहाने रेखा से मिलना भी हो जाएगा। उसने अपनी सास से कहा मां जी मैं बाजार जा रहीं हूं आप लोगों को कुछ चाहिए तो मुझे बता दीजियेगा। तभी उसकी सास ने कहा बहू मैं और तेरे पिता जी आज इनके दोस्त के घर जा रहें हैं अगर तुम्हें ज्यादा जरूरी ना हो तो तुम कल बाजार चली जाना। ठीक है मां जी मैं कल चली जाऊंगी अभी तो दो तीन दिन का समय है नीलिमा के सास ससुर बाहर चले गए और नीलिमा ने रेखा से फोन कर के दूसरे दिन बाजार जाने का प्रोग्राम बना लिया। दूसरे दिन नीलिमा और रेखा ने मिलकर दिपावली की शापिंग की घर आकर सभी सामान घर वालों को दिखाया बच्चे अपने कपड़े और पटाखें देखकर खुश हो गए सास ससुर ने भी उसे खुश होकर ढेरों आशीर्वाद दिया। दिपावली के दिन सुबह से ही घर में रौनक लगी हुई थी रसोई से पकवानों की खुशबू आ रही थी। शाम को सभी तैयार हो कर लक्ष्मी पूजन की तैयारी में लग गए। बच्चे, पतिदेव सभी घर को सजाने में लगे हुए थे तभी नीलिमा की सास ने कहा बहू तुम भी जाकर जल्दी से तैयार हो जाओ नहीं तो पूजन का मुहूर्त निकल जाएगा। जी मां जी मैं बस तैयार होने ही जा रही हूं यह कहकर नीलिमा अपने कमरे में जाने लगी तभी उसकी सास ने कहा बहू रूकों उसने कहा कुछ और काम है क्या मां जी ?
नहीं बहू काम नहीं है यह लो हमारी तरफ़ से अपनी दिवाली का तोहफा हर साल तुम हमें तोहफ़ा देती हो इस बार हमने सोचा हम तुम्हें कोई तोहफ़ा दें नीलिमा की सास ने मुस्कुराते हुए कहा,इसकी क्या जरूरत थी मां जी नीलिमा ने कहा, जरूरत थी बहू तुम हम लोगों की खुशियों का इतना ध्यान रखतीं हो तो हमें भी तो तुम्हारी खुशी का ध्यान रखना चाहिए नीलिमा की सास ने कहा। बहू लो आज़ यहीं साड़ी तुम पहनना नीलिमा कीसास ने पैकेट देते हुए कहा नीलिमा ने पैकेट ले लिया,बहू खोलकर देख लो तुम्हें तोहफ़ा पसंद है कि नहीं?? सास ने कहा, नीलिमा ने जैसे ही पैकेट खोला उसमें उसकी पसंद की लाल बार्डर और क्रीम रंग की कांचीवरम साड़ी थी और दूसरे मखमली पैकेट को खोलते ही नीलिमा की आंखों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई उसमें बाघमुंह वाले सोने के मोटे मोटे कंगन थे। नीलिमा ने चौंककर सास की ओर देखा वह मुस्कुराते हुए उसे ही देख रही थी। नीलिमा ने पूछा मां जी इतना महंगा तोहफ़ा इतने पैसे कहां से आएं ?
बहू तुम्हारे ससुर की एक एफ डी पूरी हुई थी उसी से हम तुम्हारे लिए यह तोहफ़ा लाएं हैं सास से जवाब दिया। नीलिमा की सास ने गम्भीर होकर कहा बहू तुमने हमेशा हमारी खुशी के लिए अपनी खुशी को नजरंदाज किया तो हमारा फ़र्ज़ भी तो है कि हम तेरी खुशी को पूरा करें। जिस दिन तुमने अपनी बचत के पैसे अपनी ननद को दे दिया था। उस दिन तुम्हारी सहेली ने तुम से कहा था कि, तुम ने वह पैसे अपने कंगन और साड़ी के लिए बचाएं थे तो ननद को क्यों दे दिया??तब तुम ने जवाब दिया था कि इस पैसे की जरूरत ननद को ज्यादा थी मेरा शौक फिर कभी पूरा हो जाएगा यह बात मैंने सुन लीं थीं इसलिए मैंने सोचा आज जब हमारे पास पैसे आ गए हैं तो मैं तुम्हें वह खुशी दे दूं क्योंकि तुमने तो हमेशा हमारी खुशियों को पूरा किया है इसलिए आज एक मां अपनी बेटी की खुशी को पूरा करना चाहती है। नीलिमा की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे और वह अपनी सास से लिपट गई उसका मन खुशियों से जगमगा उठा आज की दिवाली नीलिमा के लिए दिलवाली दिवाली बन गई थी। मेरी कहानी अगर आप लोगों को पसंद आए तो कमेंट जरुर कीजिएगा और फोलो भी धन्यवाद