तुम्हारा आख़िरी ख़त
तुम्हारा आख़िरी ख़त
दिसम्बर की हल्की गुलाबी ठंड शुरू हो गई थी। लाॅन में बैठी रचना आकाश में अपने घोंसले की ओर जाते पंछियों को देख रहीं थी उसे अहसास ही नहीं हुआ कि शाम गहरा गई है।
बिटिया!!" आप बाहर ठंड में बैठी हुईं हैं बिना शाल ओढ़ ?" उसके घर में काम करने वाली राधा चाची ने उसे डांटते हुए कहा और उसके कंधे पर शाल डाल दिया।
" क्या करूं चाची जब भी मैं आकाश में उड़ते हुए पंछियों को देखने लगतीं हूं मुझे समय का होश ही नहीं रहता" रचना ने हंसते हुए जवाब दिया।
" चलो बिटिया अब अंदर चलो यहां ठंड बढ़ रही है" राधा चाची ने कहा,
रचना बिना कुछ कहे उठकर अंदर आ गई हाल में सोफे पर बैठते हुए उसने टी वी खोला न्यूज चैनल लगाया वहां ऐसी कोई ख़बर नहीं आ रही थी जिसे देखा जा सकें।
रचना ने चैंनल बदलकर एक सीरियल लगाया वह कभी सीरियल नहीं देखती थी क्योंकि उसके पास इतना समय ही नहीं रहता था।
उसका तो सारा समय पढ़ने लिखने में ही चला जाता था। आज उसका कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था इसलिए उसने सीरियल देखने का मन बना लिया।
सीरियल का नाम था तुम्हारा आख़री ख़त सीरियल की नायिका अस्पताल के बेड पर लेटी हुई थी, और नायक उसके हाथों को अपने हाथों में पकड़कर उसके पास बैठा हुआ था उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
नायक ने रोते हुए पूछा" तुमने मुझसे मिलने की कोशिश क्यों नहीं की?"
नायिका ने दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया " तुम्हारे ख़त ने मिलने की गुंजाइश कहां छोड़ी थी"
" तुमने उस ख़त पर विश्वास कैसे कर लिया?" नायक ने पूछा
" तुम्हारी लिखावट थी विश्वास कैसे न करती?" नायिका ने व्यंग से मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
" हां वह लिखावट मेरी ही थी क्योंकि वह ख़त मेरा ही लिखा हुआ था पर वह ख़त मैंने तुम्हें नहीं तुम्हारी सहेली प्रिया के लिए लिखा था"
नायक ने दृढ़ता से जवाब दिया।
रचना इससे आगे नहीं देख सकीं और उसने टीवी बंद कर दिया सीरियल देखने के बाद उसका दिमाग सांय-सांय करने लगा उसकी सांसें तेज तेज चलने लगी जैसे वह कहीं से दौड़ कर आईं हो।
" रचना को आज से 15साल पहले की घटनाएं याद आने लगी उसने सोचा कहीं वह ख़त भी तो गौरव ने किसी और के लिए, कहीं रिया के लिए तो नहीं लिखा था" क्योंकि गौरव का ख़त उसे रिया ने ही ला कर दिया था।"
रचना इससे ज्यादा कुछ नहीं सोच सकीं " नहीं नहीं यह क्या मैं सोच रही हूं रिया मेरे साथ ऐसा क्यों करेंगी?" यह तो सीरियल है हक़ीकत थोड़ी है"
रचना ने अपने मन को बहलाने की कोशिश की,
तभी उसका फोन बज उठा उसने फोन उठाया और देखा तो फोन उसकी सहेली निशा का था।
" हेलो डाक्टर निशा!! आज इस नाचीज़ की याद कैसे आ गई?" रचना ने हंसते हुए अपने पुराने अंदाज में कहा।
" लेखिका महोदया यह सवाल तो मेरा होना चाहिए था?" निशा ने नाटकीय ढंग से जवाब दिया।
" दोनों खिलखिला कर हंस पड़ी" आज वर्षों बाद रचना इस तरह खुल कर हंसी थी।
फिर रचना ने पूछा " आज कैसे याद किया?"
" अरे कल अपने कालेज में पुराने स्टुडेंट्स का गेट टू गेदर है क्या तुझे सूचना नहीं मिली?" निशा ने आश्चर्य से पूछा
फिर निशा ने खुद ही कहा " हो सकता है कालेज वालों के पास तेरा पता न हो"
" चल कोई नहीं अब तो तुम्हें पता चल गया कल मैं ठीक 5 बजे तुझे लेने आऊंगी तैयार रहना " निशा ने कहा।
" लेकिन!!" रचना ने कुछ कहना चाहा इससे पहले वह कुछ कहती निशा ने कहा " कोई लेकिन नहीं आज तेरा कोई बहाना नहीं चलेगा कल तू तैयार रहना मैं आ रही हूं।" इतना कहकर निशा ने फोन काट दिया।
फोन रखने के बाद रचना फिर सोच में डूब गई,
कालेज के समय से ही रचना को कविताएं लिखने का शौक था या यूं कहें कि उसे कविता और कहानियां लिखने का ज़ुनून था।
एक बार कालेज के प्रोग्राम में उसने कविता सुनाई थी तभी से गौरव उसके करीब आ गया था क्योंकि गौरव को भी कविता और कहानियों को पढ़ने का शौक था।
धीरे धीरे रचना और गौरव करीब आते गए वह दोनों इतने करीब आ गए कि, एक दूसरे से बेइंतहा प्यार करने लगे।
इन दोनों की एक कामन दोस्त थी रिया रचना अपने मन की सभी बातें रिया को बताती थी रचना ने एक दिन अपने प्यार के बारे में बता दिया पर गौरव का नाम नहीं बताया पर रिया को पता चल गया था परंतु उसने जाहिर नहीं होने दिया।
उसके बाद से रिया रचना से कुछ उखड़ी उखड़ी रहने लगी पर रचना ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
उन लोगों के कालेज का आखिरी साल था उन की परीक्षाएं समाप्त हो गई कालेज का आखिरी दिन था उस दिन कालेज में विदाई समारोह आयोजित किया गया था।
उसमें रचना गौरव और रिया भी शामिल हुए थे।
अपनी सभी दोस्तों से घिरी हुई रचना गौरव से नहीं मिल सकी थी दोनों ने दूर से ही एक-दूसरे को देखा और मुस्कुरा दिए थे।
रचना ने सोचा कि वह प्रोग्राम खत्म होने के बाद गौरव से मिलेंगी पर उसके बाद वह गौरव से कभी नहीं मिल सकी क्योंकि रिया ने उसे गौरव का एक ख़त दिया था।
जिसको पढ़ने के बाद रचना को ग़ौरव से मिलने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि गौरव ने उस ख़त में लिखा था कि उसके जीवन में कोई और आ गई है इसलिए वह रचना से दूर जाना चाहता है वह यह बात सामने आ कर नहीं कह सकता इसलिए ख़त लिख कर बता रहा है।
ख़त पढ़ते ही रचना बिना गौरव से मिले कालेज से घर आ गई और दूसरे दिन वह अपनी मौसी के घर चली गई।
वह अपने घर तीन महीने बाद लौटी तब उसे पता चला कि रिया और गौरव विदेश चले गए हैं, शाय़द दोनों ने शादी कर ली है।
उस ख़त को रचना ने आज भी बहुत संभाल कर रखा है।
गौरव की बेवफ़ाई के बाद रचना का प्यार से विश्वास उठ गया और उसने कभी शादी न करने का फ़ैसला किया।
रचना के मम्मी पापा ने बहुत कोशिश कि वह शादी कर ले पर रचना शादी के लिए तैयार नहीं हुई।
उसने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया। रचना ने अपने दिल का दर्द कागज पर पर उतारना शुरू किया और आज भी वह इसी कार्य को कर रहीं हैं, लोग उसकी लिखीं ग़ज़लों, कविताओं और कहानियों को बहुत पसंद करतें हैं।
" बिटिया आज तुम्हें खाना नहीं खाना है क्या?"
राधा चाची ने पूछा
" भाभी जी के न रहने पर तुम बिल्कुल अपने लिए लापरवाह हो जाती हो बिटिया" राधा चाची ने कहा राधा ने भाभी जी का सम्बोधन रचना की मम्मी के लिए किया था जो इस समय अपनी बहन के घर गई हुई थी।
रचना ने हंसते हुए कहा" ऐसी बात नहीं है चाची
मैं एक कहानी के बारे में सोच रहीं थीं इसलिए समय का ध्यान ही नहीं रहा"
" अब चलिए खाना खाते हैं" रचना ने कहा और डाइनिंग टेबल पर बैठ गई।
रात भर रचना करवटें बदलती रही उसे ठीक से नींद नहीं आई सुबह उसकी आंख जल्दी खुल गई पूरे दिन वह अनमनी सी रही उसका कालेज जाने का मन नहीं था पर वह यह भी जानती थी कि निशा मानने वालीं नहीं है इसलिए वह प्रोग्राम में जाने के लिए तैयार होने लगी।
रचना ने अपनी अलमारी खोली उसका हाथ खुद-ब-खुद लाल रंग के बार्डर और क्रीम रंग की कांचीवरम साड़ी पर ठहर गया उसने वहीं साड़ी निकाली उसने आज वही साड़ी पहनी बालों का ढ़ीला जूड़ा बनाया मांथे पर लाल रंग की बिंदी लगाई होंठों पर हल्के मैरून रंग की लिपस्टिक लगाई जब वह तैयार होकर शीशे के सामने खड़ी हुई तो वह स्वयं को ही नहीं पहचान सकीं आप वर्षों बाद उसने इतना श्रृंगार किया था।
रचना खुद को शीशे में देखकर शरमा गई तभी उसके कानों को ग़ौरव की आवाज सुनाई दी" इस साड़ी में तुम स्वर्ग से उतरी अप्सरा लगती हो"
रचना ने चौंककर पीछे मुड़कर देखा वहां कोई नहीं था उसने गहरी सांस ली और अपने कमरे से बाहर निकल आईं।
" अरे बिटिया आज तो तुम बहुत सुंदर लग रही हो?" किसी की नज़र न लगे राधा चाची ने बलाएं लेते हुए कहा
" क्या बात कर रही हो चाची!! इस उम्र में किसकी नज़र लगेंगी?" रचना ने हंसते हुए पूछा
तभी बाहर गाड़ी का हार्न सुनाई दिया," चाची मैं चलती हूं मुझे आने में देर हो सकती है आप खाने पर मेरा इंतजार न कीजिएगा" रचना कहते हुए घर से बाहर निकल गई।
जब वह गाड़ी के पास पहुंची तो निशा ने दरवाजा खोला और बोली" मैडम लेखिका किस पर आज बिजली गिराने का इरादा है।"
रचना ने शरमा कर कहा" तुम भी चिढ़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ती हो"
" नहीं यार सच में आज तू बहुत ही सुन्दर लग रही है" निशा ने रचना की प्रसंशा करते हुए कहा और दोनों हंसने लगी।
रचना के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी कुछ देर बाद उनकी कार कालेज कैंपस में खड़ी हुई थी।
कार से उतर कर निशा और रचना कालेज को बहुत हसरत भरी निगाहों से देखने लगी उन्हें अपने कालेज के दिनों की याद आने लगी।
अंदर पहुंचकर सभी एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश हो रहे थे सभी एक-दूसरे के बारे में पूछ रहे थे तभी रचना ने देखा कि रिया और गौरव वहां आ रहें हैं निशा ने भी उन लोगों को देख लिया था रचना ने देखा वह दोनों उन्हीं के पास आ रहें हैं।
उन्हें देखकर रचना के सुखें घाव हरे हो गए उसकी आंखों में अनायास आंसू आ गए वह वहां से जाने लगी तभी रिया ने उसका रास्ता रोक लिया।
" नहीं रचना आज तुम कहीं नहीं जाओगी मुझे तुम्हें कुछ बताना है रिया ने रचना का हाथ पकड़कर कहा।"
रचना, निशा, और गौरव आश्चर्य से रिया को देखने लगे।
" क्या बताना चाहती हो?" रचना का दिल जोर जोर से धड़कने लगा।"
रचना को पता नहीं क्यों सीरियल की कहानी याद आ गई।
" रचना मैं तुम्हारी और गौरव की गुनेहगार हूं वह ख़त गौरव ने तुम्हारे लिए नहीं लिखा था वह ख़त उसने मुझे लिखा था पर मैंने उस ख़त में फेरबदल करके तुम दोनों को गुमराह कर दिया क्योंकि मैं भी ग़ौरव से प्यार करने लगी थी और उससे शादी करना चाहती थी।"
गौरव ने आश्चर्य से पूछा" रिया!!यह तुम क्या कह रही हो?"
" मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है मुझे पूरी बात बताओं?" गौरव ने गम्भीरता से पूछा
" हां गौरव जब मैंने तुमसे कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूं और तुमने मुझसे कहा कि तुम किसी और से प्यार करते हो मैं जान गई थी कि तुम रचना से प्यार करते हो पर मैंने यह बात तुम पर और रचना पर जाहिर नहीं किया, तुमने जब वह ख़त लिख कर मुझे बताया कि मैं तुम्हारे रास्ते में ना आऊं तो मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं ईर्ष्या में जल उठी फिर मैंने एक चाल चली और वह ख़त मैंने रचना को दे दिया और उससे कहा कि यह ख़त तुमने उसे दिया है मैं जानती थी कि वह ख़त पढ़कर रचना तुम से नफ़रत करने लगेंगी और मैं तुम्हारे नज़दीक आ जाऊंगी पर बाद में मुझे पता चला कि मैं गलत थी मैंने तुम लोगों के बीच गलतफहमी तो पैदा कर दी पर मैं तुम्हें पा नहीं सकीं क्योंकि तुम रचना को दिल की गहराइयों से प्यार करते थे उसकी बेवफाई को सुनकर भी तुम उससे नफ़रत नहीं कर सकें और अपनी आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले गए।"
रिया ने कहना जारी रखा " तुम्हारे अमेरिका जाने के बाद मेरी आत्मा मुझे धिक्कारती रही और मैं भी यहां नहीं रह सकी मैं भी अमेरिका चली गई वहां मेरी अमित से मुलाकात हुई और हम दोनों ने शादी कर ली कुछ दिन पहले हम लोग भारत आ गए यहीं फिर मेरी मुलाकात तुम से हुई मैंने रचना के बारे पता लगाया तब पता चला कि तुम्हारी तरह उसने भी अभी तक शादी नहीं की है।
मैं फिर से तुम दोनों को एक करना चाहती थी जिससे मैं अपने गुनाहों का प्रायश्चित कर सकूं, तभी मुझे पता चला कि हम लोगों को कालेज में बुलाया गया है यह मेरे लिए अच्छा मौका था तुम दोनों को फिर से मिलवाने का और मैंने निशा से कहा कि वह रचना को लेकर कालेज आए और तुम्हें मैं यहां लेकर आई अब तुम दोनों मुझे जो चाहे सजा दो चाहें हमेशा के लिए मुझसे सम्बन्ध खत्म कर दो पर तुम दोनों एक-दूसरे से दूर न रहों।"
रिया ने रोते हुए कहा और हाथ जोड़कर विनती करने लगी।
रिया की बातें सुनकर रचना और गौरव स्तब्ध रह गए और एक दूसरे को देखने लगे उनकी आंखों में आज भी एक दूसरे के लिए प्यार दिखाई दे रहा था रचना से रिया की हालत देखी नहीं जा रही थी उसने रिया का हाथ पकड़कर कहा" नहीं रिया तुम रोओं नहीं तुम्हें देर से ही सही अपनी गलती का अहसास हो गया है इसलिए हम तुम्हें माफ़ करतें हैं।"
अचानक निशा ने खुशी से उछल कर कहा" अरे रिया आज़ तो ज़श्न मनाने का दिन है तुमने दो बिछड़े प्रेमियों को फिर से मिलवा दिया।"
तभी गौरव के गाने की आवाज सुनाई दी,
" लिखा नहीं जो ख़त तुम्हें वो तुम्हें मिल गया"
गौरव का गाना सुनकर निशा और रिया हंसने लगी रचना ने शरमा कर अपने नज़रें झुका ली।