रेडियो के गानों से प्यार का इज
रेडियो के गानों से प्यार का इज
मुग्धा की सहेलियां बारात देखने के लिए जैसे ही कमरे से बाहर निकलीं, मुग्धा आईने के सामने खड़ी हो गई और ख़ुद को आईने में देखकर मुस्कुराने लगी। आज दुल्हन के रूप वह स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी।
तभी उसे लगा की जैसे आकाश उसके पीछे खड़ा है और गुनगुना रहा है---" देखती ही रहो आज दर्पण न तुम प्यार का ये मुहूर्त निकल जाएगा------" मुग्धा ने चौंककर पीछे देखा तो वहां कोई नहीं था अपनी इस बेखुदी पर मुग्धा मुस्कुरा उठी।
तभी उसकी सहेलियां कमरे में आ गई,
"अभी तो बारात आई नहीं है वह तो बाजे वाले थे उसकी आवाज सुनकर हमने समझा बारात आ गई। तेरे होने वाले पतिदेव अभी पता नहीं कितना और इंतज़ार कराएंगे कहीं तेरा यह मनमोहक सौंदर्य उनके इंतज़ार में मुरझा न जाएं"
मुग्धा की सहेली कनक ने उसे छेड़ते हुए कहा--"।
"इसके पिया को जल्दी बुलाने का तरीका मैं बताती हूं वह रेडियो स्टेशन पर फरमाइशी गाने सबको सुनवाते हैं अब अगर मुग्धा अपने मन की बात को गाने की फरमाइश के रूप में कह दें तो तुम लोगों के जीजाजी और मेरे भैया समझ जाएंगे और अपनी दुल्हन के पास जल्दी से चले आएंगे---" मुग्धा की सहेली पारूल ने मुग्धा को छेड़ते हुए कहा--।
"जिया बेकरार है आई बहार है आजा मेरे बालमा तेरा इंतज़ार है--" इस गाने की फरमाइश मुग्धा तू कर दे पारूल ने हंसते हुए कहा--।"
अरे यार यह गाना यहां फिट नहीं बैठता यहां यह गाना ठीक रहेगा---" जो वादा किया हो निभाना पड़ेगा रोके ज़माना चाहे रोके खुदाई तुम को आना पड़ेगा-" दूसरी सहेली ने आंख दबाकर कर कहा--।
" चुप करो!! तुम लोग! मुझे छेड़ने का कोई बहाना नहीं छोड़तीं --"मुग्धा ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा--।
-" इसमें छेड़ने की क्या बात है तुम्हारे और आकाश के प्यार का इज़हार रेडियो के गाने के माध्यम से ही तो हुआ था, और देखो रेडियो आज तुम दोनों को परिणय सुत्र में बांधकर एक कर रहा है-"
- पारूल ने मुग्धा को प्यार से देखते हुए कहा--।
--दूसरी तरफ आकाश दूल्हा बनकर तैयार था उसके दोस्त उसे छेड़ते हुए कह रहे थे---" अरे यार तुम तो बहुत किस्मत वाले हो जो तुम्हें तुम्हारी मुहब्बत मिल गई वरना हर किसी को उसकी मुहब्बत कहां मिलती है--"
"तेरा रेडियो स्टेशन में काम करना तेरी मुहब्बत को पाने का माध्यम बना रेडियो के जरिए एक दूसरे से अपने दिल की बात गानों की फरमाइशों द्वारा कर दिया--"।
आकाश के दोस्त पवन ने कहा---" अब चल बारात तैयार खड़ी है और दूल्हे राजा यहां ख़ुद को निहार रहें हैं। भाभी को और कितना इंतज़ार करवाओगे ?"
आकाश अपने दोस्तों के साथ कमरे से बाहर आ गया उसके कार में बैठते ही कार मुग्धा के घर की ओर चल पड़ी। आकाश अपने और मुग्धा की पहली मुलाकात के विषय में सोचते हुए अतीत की गहराइयों में उतरता चला गया----
आकाश की नौकरी रेडियो स्टेशन में लग गईं थी वह अपनी बुआ के घर में रह रहा था। मुग्धा उसकी बुआ की बेटी पारूल की सहेली थी और सामने वाले घर में रहती थी।
एक दिन मुग्धा पारूल से मिलने आई वह सीधे उसके कमरे में चली गई। क्योंकि उस घर में वह अकसर आती रहती थी इस वज़ह से वह उस दिन भी सीधे पारूल के कमरे आई---" महारानी जी अभी तक सो रहीं हैं जबकि मुझसे कहा था कि मैं समय पर आ जाऊं इतना कहकर उसने रजाई खींच लिया। बिस्तर पर पारूल की जगह किसी लड़के को देखकर मुग्धा घबरा गई।
तभी पारूल की हंसी सुनकर उसने मुड़कर पीछे देखा तो कमरे के दरवाज़े पर पारूल खड़ी हंस रही थी। मुग्धा ने शरमा कर अपनी नज़रें झुका ली , तभी पारूल ने कहा--"मुग्धा यह मेरे मामाजी के बेटे आकाश भैया हैं कल रात आए तो मैंने इनको अपने कमरे में सुला दिया और मैं मां के कमरे में सो गई थी। यहां भैया की रेडियो स्टेशन पर नौकरी लगी है अब यह हमारे साथ ही रहेंगे। तुझे भी तो गाने सुनने का शौक है चाची जी कहती रहती हैं कि तू पढ़ते समय भी रेडियो पर गाने सुनती है। अब भैया से कहकर तू अपनी पसंद के गाने की फरमाइश कर उन्हें सुन सकती है। फिर पारूल ने आकाश से कहा, भैया यह मेरी पक्की सहेली मुग्धा है और गाने सुनने की इतनी दीवानी है कि जब यह रेडियो पर अपनी पसंद के गाने सुनने लगती है तो सब कुछ भूल जाती है---"--- पारूल ने मुग्धा और आकाश का एक दूसरे से परिचय करवाते हुए कहा--।
आकाश मुग्धा की सुन्दरता को देखता रह गया आकाश का दिल मुग्धा के लिए धड़क उठा मुग्धा भी आकाश की पर्सनालिटी से प्रभावित लग रही थी।
उसके बाद अकसर आकाश और मुग्धा का आमना-सामना होने लगा। आकाश और मुग्धा एक दूसरे को प्यार करने लगे पर वह इसका इज़हार नहीं कर पा रहे थे। पारूल आकाश और मुग्धा के प्रेम की राजदार भी थी।
उसने ही मुग्धा से कहा की वह अपने प्यार का इज़हार आकाश से करने के लिए फरमाइशी गाने का सहारा ले मुग्धा ने वही किया। आकाश भी बीच, बीच में अपने प्यार के इज़हार के लिए अपनी पसंद के गाने भी सुनवाता था। वह जानता था कि मुग्धा गाने जरूर सुनेगी।
एक दिन आकाश ने गाना सुनवाया--" न कज़रे की धार न मोतियों का हार न तुमने किया श्रृंगार फिर भी कितनी सुन्दर हो--"
इस गाने के जरिए आकाश ने मुग्धा के सौन्दर्य की तारीफ की थी।
इसके जवाब में मुग्धा ने अपनी पसंद के गाने की फरमाइश की---" तुम्हीं मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा तुम्हीं देवता हो--"
मुग्धा ने अपने प्यार का इज़हार कर दिया था, इस तरह दोनों एक-दूसरे से गानों के माध्यम से प्यार का इज़हार करते रहें और जब इसका पता दोनों के घर वालों को चला तो बहुत हंगामा हुआ क्योंकि दोनों परिवारों की जाति अलग थी। दोनों परिवारों में बहुत विरोध हुआ पर उनके सच्चे प्यार के आगे उन्हें झुकना पड़ा और अंत में दोनों परिवार वाले इस शादी के लिए राजी हो गए।
" दूल्हे राजा अब कार से बाहर आओगे की यहीं बैठे रहने का इरादा है--?"आकाश के दोस्तों ने हंसते हुए कहा तब आकाश चौंककर अतीत के भंवर से बाहर निकल आया और मुस्कुराते हुए कार से बाहर आया।
द्वार पूजा की रस्म के बाद आकाश को स्टेज़ पर लाया गया स्टेज़ को लाल गुलाब और बेला के फूलों से सजाया गया था। आकाश ने सामने देखा मुग्धा हाथ में जयमाला लेकर उसकी ओर आ रही थी।
तभी आकाश के दोस्तों ने रेडियो खोल दिया उस पर गाना बज उठा--" बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है--"
मुग्धा स्टेज़ पर पहुंच गई आकाश और मुग्धा हाथ में जयमाला लिए एक दूसरे को प्यार से निहार रहे थे उन्होंने एक दूसरे को जयमाला पहनाई और उस समय रेडियो पर गाना बज रहा था---" जन्म जन्म का साथ है तुम्हारा हमारा अगर न मिलते इस जीवन में लेते जन्म दुबारा---"
स्टेज़ तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा, आज दो प्रेमियों का मिलन रेडियो के गानों ने कराया था।