Ramashankar Roy

Tragedy

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Ramashankar Roy

Tragedy

उजडमल

उजडमल

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आज तीसरा महीना है जब मानस होम लोन का EMI नहीं भर पाया क्योंकि कोरोना काल मे केवल 50% ही सैलरी मिल रही है। ऊपर से बीबी पहली बार उम्मीद से है और यह पाँचवा महीना चढ़ा है।

आमदनी आधी से भी कम हो गयी और फिक्स खर्चे अपनी जगह पर मुंह खोले खड़े हैं। इस कोरोना काल में उनकी जिन्दगी बहुत दयनीय हो गयी है जो इन्स्टालमेन्ट के भरोसे हैसियत से उँची उड़ान भर रहे थे। उनको इस कहावत का सही अर्थ समझ में आ रहा है कि चादर की लंबाई देख कर ही पैर फैलाना चाहिए।

मानस ने पिछले साल ही अपने गाँव का  धुरे- धुर जमीन जायदाद बेचकर पचपन लाख में मुम्बई में फ्लैट खरीदा था। यहाँ के पहचान वाले उसके इस उपलब्धि पर बधाई दे रहे थे। कितने कम समय में उसने इतना बढ़िया फ्लैट खरीद लिया। दूर के रिश्तेदार भी उसकी सराहना कर रहे थे।

लेकिन गांव में उसका नामकरण उजडमल हो गया। क्योंकि पिताजी के मृत्यु के बाद उसने बड़े भाई से अपना हिस्सा ले लिया। यह कोई बड़ी बात नहीं। यह सांसारिक और व्यवहारिक बात है। दो भाई है तो बटवारा भी होगा ही। लेकिन उसने पुश्तैनी घर भी बेच दिया। वह तो अच्छी कीमत की लालच में अपने आँगन में मलेछ को बसा रहा था। गाँव वालों के दबाव में उसने वही कीमत लेकर अपना हिस्सा भाई को बेचा। इसी कारण से गाँव में उसका नाम उजडमल पड़ गया।

मानस का जन्म एक निम्न मध्यमवर्गीय ग्रामीण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पुश्तैनी छः बीघा जमीन और एक आठ कमरे का अधपका मकान था। पिताजी पंडिताई करते थे और बड़ा भाई गाँव में ही सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक है। वह मुम्बई में किसी प्राइवेट कंपनी में सेल्स का जॉब करता है और पचास हजार का महीना कमा लेता है। इसमें उसका इंसेंटिव भी शामिल है। अतः शादी भी पढ़ी लिखी आधुनिक लड़की से हो गयी। उसको हस्बैंड के अलावा ससुराल के सभी रिश्तेदार बोझ लगते थे और उनसे संबंध रखने में उसको कोई दिलचस्पी नहीं थी।

बहुत सहनशील और समझदार पत्नी भी घरेलू मामले में पति की तभी तक सुनती है या झेलती है जबतक वह माँ नहीं बन जाती है। माँ बनते ही कंचन कामिनी से शेरवाहिनी चंडी बन जाती है। घर गृहस्थी में जो भी होगा उसकी मर्जी से ही होगा। अच्छा हुआ तो श्रेय उसको मिलना चाहिए और गलत हुआ तो जिम्मेदारी पति को लेना होगा नहीं तो अशांति फैलाना तय है।

अपने हिस्से का घर जमीन बेचकर तीस लाख रुपया गाँव से लाया था और बीस लाख का होम लोन लिया था जिसका बीस हजार मंथली इन्स्टालमेन्ट आता था।

इन्स्टालमेन्ट भरने के बाद भी जिंदगी आराम से कट रही थी। लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया। अब स्थिति यह हो गयी कि जरूरी खर्चे निकलना भारी हो गया। EMI तो गले की हड्डी बन गयी थी। प्रॉपर्टी का भाव इतना नीचे गिर गया है कि बेचने पर लोन भी शायद चुकता नहीं हो पाएगा।

ऊपर से कम्पनी ने कहा दिया कि यदि लॉकडाउन जारी रहा तो अगले महीने से कोई भी सैलरी नहीं मिलेगी। अब मानस मिश्रा को दिन में तारे नजर आने लगे। ससुराल वालों ने कोरोना का बहाना करके अपने यहाँ रखने से मना कर दिया। वैसे भी मायके में तभी तक पूछ रहती है जबतक माँ जिंदा होती है। इसीलिए कहा जाता है - "नानी मरल नाता टूटल"।

अब अपने गाँव लौटने का नैतिक बल मानस के पास नहीं था। वह अपने पैतृक घर लौटने की सोचे भी तो कैसे सोचे। उसके मनु भैया बिना लिखा पढ़ी के उसको पांच लाख रुपया दे रहे थे और चिरौरी कर रहे थे कि आंगन गैर मजहबी को मत बेचो। तुम पैसा ले जावो और जब तुम्हारे पास होगा तो लौटा देना , नहीं होगा तो मत देना। लेकिन पत्नी की जिद के चलते तीन लाख रुपया में घर को भी भाई के हाथ बेंच दिया था।

आज किस मुंह से उस अपने बचपन के घर में लौटे लेकिन अपनी होने वाली संतान को बचाने के लिए उसके पास दूसरा विकल्प भी नहीं था। मजबूरी भी कभी कभी रिश्तों को पुनर्जीवित करने में सहायक होती हैं।

अछता- पछता कर मानस मिश्रा अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर अपने गाँव मिसरौली पहुँचे। उनको देखते ही उनके भतीजा- भतीजी जिनकी उम्र क्रमशः सात साल और पाँच साल थी खुशी से झूम उठे। उनके लिए तो बस चाचा - चाची आए हैं। दोनों चाची का हाथ पकड़कर सीधे आँगन में ले गए। जेठानी ने पीढ़ा पानी दिया और बोला बहुरानी अगर आने का खबर की होती तुम्हारे कमरा के ओढना - बिछावन सहेज दिया होता।

इधर मानस भैया के गले लग के रोता जा रहा था। भाई ने उसको चुप कराया और हाल चाल पूछा। उसकी आत्मग्लानि और व्यथा सुनकर मनु भैया ने कहा पगले मन छोटा मत कर तेरा बड़ा भाई अभी जिन्दा है। जाकर बहु को संभाल उसका खुश रहना बहुत जरूरी है नहीं तो आने वाले बच्चे पर असर पड़ेगा। अभी भी तुम्हारा कमरा "छोटी बहू" के ही नाम से जाना जाता है। देखो हमारे यहाँ बेटी को पलंग शायद इसीलिए दिया जाता था कि जिस रुम में उसको रख दिया गया घर का वो कमरा उसके नाम से जाना जाता है। पलंग औरत के लिए माँ की गोद की तरह होती है जिसके साथ वह अपना सुख - दुख दोनों साझा करती है। चलो , "बीती ताहि बिसार दो आगे सुधि लेई"।

भैया - भाभी ने उन दोनों का ऐसे स्वागत किया जैसे कुछ हुआ ही नहीं था। वही प्यार वही अपनापन लेकिन उजडमल बन जाने का मलाल दिल को कचोट रहा था।



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