उबटन
उबटन
अदिती ! जल्दी आओ बेटा उबटन लगवा लो ,कहते हुए चाची मंडप की ओर चली गई।
अदिती की माँ बड़े लाड़ और दुलार भरी नजरों से अपनी लाडो को निहार रही थी।
माँ, माँ!! आप भी यहाँ आकर बैठो न..... अदिती की आँखों से सबसे दूर जाने का दर्द छलक पड़ा ।
माँ : अदिती ,आज उबटन लगवाना है तुम्हें, निखार और कांति के लिए । ऐसा निखार आना चाहिए जो ताउम्र खत्म न हो।
मतलब! ......कहते हुए अदिती, माँ को अचरज भरी नजरों से देखने लगी।
आज और कल में बहुत कुछ बदल जाएगा बेटा! तुम अदिती शर्मा से अदिती मिश्रा हो जाओगी तो इस बदलाव के लिए तुम्हें मानसिक रूप से तैयार होना होगा।
चेहरे पर चंदन, हल्दी का उबटन तो लगाओ ही पर साथ में दया, प्रेम , समझौते, समर्पण और विनम्रता का लेप भी लगा लो । घृणा, द्वेष , हठ , अभिमान ये सब बुराईयों और कमियों के मैल को आज से उतार फेंकों , और हाँ, स्वाभिमान की महक हमेशा तुम्हारे व्यक्तित्व में जरूर हो,उसमें कमी कभी मत आने देना।
फिर देखना, ये अद्भुत अनोखा उबटन तुम्हारे चेहरे की आभा को सूरज, चाँद की तरह निखार देंगा ,इसकी दमक हमेशा तुम्हारे साथ भी रहेगी, और तुम्हारे बाद भी....कहते हुए माँ की हथेली अदिती के गालों को सहलाने लगी।
