नेह का बंधन
नेह का बंधन
रिचा का किडनी का आपरेशन सफल रहा था घर के सभी लोग बहुत खुश थे। आराम कर रही रिचा के रूम में अचानक संदीप ने दस्तक दी। "कौन है आ जाओ " कह कर रिचा ने करवट ली। कुछ देर तक कोई आवाज नहीं आई तो रिचा ने पलट कर देखा । संदीप को देखकर उसकी आँखे में दर्द का सैलाब उमड़ पड़ा ।
"अरे तुम रो मत " रिचा ! डाॅक्टर्स नाराज होंगे" कहते हुए संदीप ने रिचा को सहलाते हुए कहा।
रिचा पश्चाताप के भँवर से निकल नहीं पा रही थी, खुद को सम्हालते हुए उसने संदीप से कहा,.... "....मैंने अपने कैरियर को अपने परिवार से बहुत ज्यादा महत्व दिया, तुम्हारी एक न सुनी और एक ही पल में सबको छोड़कर दिल्ली में रहने का निर्णय ले लिया। निशांत, जो की दूध पीता बच्चा था , उसकी भी परवाह न की मैंने ? कितनी स्वार्थी हूँ मैं" ... ..तलाक तक ले लिया मैंने और आज तुमने ही मुझे अपनी किडनी डोनेट की , मुझे मरने से बचाया , कहकर रिचा जोर जोर से रोने लगी।
क्या हुआ रिचा , कागजी रिश्ता बस ही तो नहीं था हमारे बीच। पर अब भी तुम मेरे बेटे निशांत की माँ हो , और मेरे दिल ने तो किसी और को वो जगह दी ही नहीं जो तुम्हारी है और हमेशा रहेगी भी।
नेह के बंधन तो दिलों से जुड़े होते है , कागजों से नहीं , कहते हुए संदीप ने रिचा को गले से लगा लिया।
