क्योंकि मैं बेटी थी
क्योंकि मैं बेटी थी
प्रतीक्षा के गहन अंधकार को पार कर माँ की कोख मिली। घर में सभी के दिलों में बहुत उत्साह था , खुशी का माहौल था, सभी चहक रहे थे, घर को सजाया जा रहा था ,मुझे सुख देने वाली चीजें खरीदी जा रही थीं,सबकी उम्मीद जो पूरी होने वाली थी।
माँ के चेहरे पर सुकून के भाव , आँखों में इंतजार, शरीर के एक अंग में हलचल, सबकी परवाह और ढेर सारा प्यार , इतना सब एक साथ पाकर माँ भी खुद को भाग्यशाली मान रही थी।
पर जैसे ही मालूम चला की मैं कौन हूँ तभी उत्सव, मातम में बदल गया।
फिर अचानक बहुत सी आवाजें आईं, उसमें से किसी ने कहा
"इसे शरीर से निकाल दीजिये जितनी जल्दी हो सके"।
कुछ तीखी तेज आवाजें, फिर जोर से कुछ चुभा, कतरा-कतरा टूट रही थी मैं, उस गर्माहट से दूर होती जा रही थी और फिर एक चीख के साथ सब शाँत।
