मैं फिर आऊँगा

मैं फिर आऊँगा

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इतने सारे मासूम चेहरे एक साथ देखते ही आराध्या के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। 

माँ! आप मुझे लेने आईं हैं ? दुपट्टा खींचते हुए मासूम आवाज ने आराध्या का ध्यान अपनी ओर खींचा।

"माँ"  इस सम्बोधन को सुनने के लिए आराध्या ने कई दिन और कई रातें इंतजार में बिताईं हैं। उस भोले चेहरे को अपने काँपते हाथों से छूते हुए सहसा वह बीते दिनों में पहुँच गई......

पाँच अबार्शन के बाद रवि नहीं चाहता था की आराध्या फिर कन्सीव करे और हर बार उसी दर्द से गुजरे। डाॅ. भी नहीं समझ पा रहे थे की क्या कमी है, क्यों बच्चा बार बार गर्भ में ही ..... 

रानू के इकलौते बेटे से बहुत लगाव हो गया था आराध्या को, घुँघराले काले काले बाल, साँवला चेहरा, मीठी मुस्कान, चंचल, शरारती देव के साथ आराध्या का समय पँख लगाकर उड़ जाता था।

रवि भी आराध्या को खुश देखकर खुश था, पर अचानक पति की मौत हो जाने से रानू को आराध्या के घर का काम छोड़कर अपनी माँ के पास गाँव जाना पड़ेगा, ये सुनते ही आराध्या के पैरों तले से जमीन खिसक गई।वह देव के बिना कैसे रह पाएगी, आदत बन गया था वह आराध्या की।अपने हाथ से उसके बाल बनाना सुंदर तैयार करना उसके साथ लुका छिपी खेलना। देव भी गाँव चला गया तो वह कैसे जी पाएगी, रो रो कर आँखे सूजा ली थीं। 

घर के मंदिर में रोज कान्हा जी की मूर्ति को सजा कर,उनका बिस्तर लगाकर खुद सोने जाती थी आराध्या, कितना भी व्यस्त रखे खुद को,पर फिर भी देव का चेहरा उसकी आँखों से जाता न था।एक दिन घर के मंदिर में ही रोते रोते आराध्या की आँख लग गई, गोद में कान्हा जी थे।

"मैं फिर आऊँगा" कहकर देव मुस्कुराता और हाथ हिलाता हुआ दूर जाता दिखा। बैचेन आराध्या ने कहा "मत जाओ देव, तुम्हारी बड़ी माँ जी नहीं पाएगी", ......

आँख खुली तो खुद को भींगा हुआ पाया आराध्या ने। 

रवि से यह दशा देखी नहीं गई उसने बिना बताए आराध्या को अनाथ आश्रम में लाकर खड़ा कर दिया, उसे हर चेहरे में देव दिखाई दे रहा था और उसके शब्द गूँज रहे थे..."मैं फिर आऊँगा।"


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